Ras Kise Kahate Hain | रस किसे कहते हैं

By | July 30, 2022
Ras Kise Kahate Hain

इस पोस्ट में हम आपको बतायेंगे Ras Kise Kahate Hain और देंगे रस से जुडी जानकारी उदहारण सहित. साथ ही हम आपको बतायेंगे वाक्य के बारे में विस्तार से उदहारण सहित. स्टूडेंट्स की परीक्षा में मदद के लिए हमने दिए  हैं कुछ Apathit Kavyansh with Answers.

Ras Kise Kahate Hain

साहित्यिक आनंद को ‘रस’ कहते हैं. साहित्य अथवा काव्य की आत्मा ‘रस’ है. इसी रस का आस्वाद लेने के लिए पाठक, श्रोता या दर्शक साहित्य पढ़ते, सुनते या देखते हैं. यदि कविता या साहित्य में रस ही न मिले तो उसका कोई मूल्य नहीं. इसीलिए संस्कृत के आचार्य विश्वनाथ ने कहा है – ‘वाक्यम रसात्मकं काव्यम’ अर्थात सरस अभिव्यक्ति ही काव्य है.

रस का स्वरूप – साहित्य – रस या काव्य – रस अन्य लौकिक रसों से अलग है. लौकिक रसों की भौतिक सत्ता होती है. उन्हें बर्तन में डालकर जिह्वा से पान किया जा सकता है, किंतु साहित्य – रस भीतरी और मानसिक होता है. इसका पान मन ही मन किया जा सकता है. अतः यह सूक्ष्म अतींद्रीय है. परंतु यह ब्रह्मनंद की तरह अलौकिक नहीं है. भगवान, भक्ति और साधना से प्राप्त आनंद अलौकिक होता है, परंतु साहित्य – रस लौकिक संसार को देख पढ़ सुनकर प्राप्त होता है. अतः यह न तो पूर्णतया लौकिक है, न अलौकिक. यह भावों से उत्पन्न आनंद है, अतः भावात्मक है.

रस का सूत्र – नाट्यशास्त्र के आचार्य भरत मुनि ने रस की परिभाषा देते हुए कहा –
विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिश्पत्तिः
-विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है.
यह रस की सामग्री है. दूसरे शब्दों में रस के अवयव हैं. जिस प्रकार सामने हो किंतु जिह्वा उसका पान न करे जो आनंद नहीं मिल सकता, उसी प्रकार विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी आदि के संयोग से रस तभी प्राप्त होता है जबकि पाठक, श्रोता या दर्शक के मन में स्थित स्थाई भाव उन्हें ग्रहण करने के लिए पूरी तरह तत्पर हों. अतः रस को समझने के लिए पहले स्थाई भाव को समझना आवश्यक है.

स्थायी भाव – प्रत्येक मनुष्य के चित्त में नौ स्थायी भाव वासना – रूप में स्थित रहते हैं. यह सुषुप्त अवस्था में सदा विद्यमान रहते हैं. जब इनके सम्मुख रस की सामग्री प्रकट होती है तो क्रियाशील हो उठते हैं. उस अवस्था में दर्शक का चित्त व्यक्तित्व की निजी सीमाओं को तोड़कर राग – द्वेष रहित हो जाता है. इसी को रामचंद्र शुक्ल ने ‘ह्रदय की मुक्तावस्था’ कहा है. राग – द्वेष और अपना पराया के भेद से ऊपर उठने के कारण रसानुभूति सदा ही आनंदमयी होती है. दुःख और संघर्ष के दृश्य भी मूलतः आनंदित करते हैं.
मनुष्य के ह्रदय में स्थित ये नौ स्थायी भाव ही रस की सामग्री से संयोग करके रस – रूप में परिणत हो जाते हैं. अतः भावों से ही रस बनते हैं. यह कह सकते हैं कि भाव ही परिपक्व होकर (राग – द्वेष रहित प्रक्रिया से गुजर कर) रस बन जाते हैं. नौ स्थायी भाव और उनसे व्यक्त रस इस प्रकार हैं –

भाव रस
रति श्रृंगार
शोक करुण
हँसी हास्य
क्रोध रौद्र
भय भयानक
घृणा वीभत्स
उत्साह वीर
विस्मय अद्भुत

कुछ विद्वान भगवद रति और संतान रति के आधार पर दो अन्य रस भी मानते हैं.
भगवत रति – भक्ति रस
संतति रति – वात्सल्य रस

1.संचारी भाव / व्यभिचारी भाव –
संचारी भाव भी प्रत्येक मनुष्य के मन में उठने गिरने वाले मनोभाव हैं. यह स्थायी न होकर क्षणिक होते हैं. इनकी स्वतंत्र सत्ता नहीं होती. ये किसी न किसी स्थायी भाव संगी – साथी बनकर उनके साथ विचरण करते हैं और उन्हें पुष्ट करते हैं. ये किसी स्थायी भाव के मित्र न होकर अवसर के अनुकूल अनेक स्थायी भावों का साथ देते हैं. इसलिए इन्हें एक ओर ‘संचारी’ अर्थात साथ – साथ संचरण करने वाला कहा गया है तो दूसरी ओर ‘व्यभिचारी’ अर्थात एक से अधिक के साथ रमण करने वाला कहा गया है आचार्य ने इनकी संख्या 33 मानी है. इनके नाम हैं –
1.निर्वेद
2.आवेग
3.दैत्य
4.श्रम
5.मद
6.जड़ता
7.उग्रता
8.मोह
9.विबोध
10.स्वप्न
11.अपस्मार
12.गर्व
13.मरण
14.अलसत्ता
15.अमर्ष
16.निद्रा
17.अवहित्था
18.औत्सुक्य
19.उन्माद
20.शंका
21.स्मृति
22.मति
23.व्याधि
24.संत्रास
25.लज्जा
26.हर्ष
27.असूया
28.विषाद
29.धृति
30.चपलता
31.ग्लानि
32.चिंता
33.वितर्क

2.विभाव –

भाव जागृत करने के कारक (कारण या सामग्री या साधन) को विभाव कहते हैं. कहानी या कविता के पात्र, घटनाएं, स्थितियाँ वे विभाग हैं जिन्हें देखकर पाठक के ह्रदय में भाव जागृत होते हैं. अतः साहित्य में व्यक्त संसार ही विभाव है. विभाव के दो भेद हैं –
1.आलंबन विभाव
2.उद्दीपन विभाव
1.आलंबन विभाव –
पट (पर्दे) पर प्रकट मूल विषय – वस्तु को आलंबन विभाव कहते हैं. उदाहरणतया – पट पर राधा और कृष्ण के प्रेम को देखकर भाव जागृत होते हैं. अतः राधा-कृष्ण आलंबन हैं.
आलंबन के पुनः दो भेद हैं –
(i)आलंबन
(ii)आश्रय

(i)आलंबन वह है जिसे देखकर भाव जागृत होते हैं.
(ii)आश्रय वह है जिसके हृदय में आलंबन को देखकर भाव – जागृत होते हैं. उदाहरणतया – राम को देखकर सीता के ह्रदय में प्रेम उत्पन्न हुआ. यहां ‘राम’ आलंबन है और ‘सीता’ आश्रय.
2.उद्दीपन विभाव – आलंबन विभाव को पूर्ण परिपक्व अवस्था तक पहुंचाने के लिए कुछ स्थितियाँ सहायक के रूप में सामने आती हैं. जैसे – राधा और कृष्ण के प्रेम में एकांत स्थान, मनोरम स्थल, नायिका का श्रंगार या प्रेम – भरी उक्तियां. ये सब भाव को उद्दीप्त करते हैं, अतः ने उद्दीपन विभाव कहते हैं.
3.अनुभाव –
आश्रय की चेष्टाओं को अनुभाव कहते हैं. इनसे सूचना मिलती है कि आश्रय के हृदय में विशेष अनुमति क्रियाशील हो चुकी है. कृष्ण को देखकर राधा का लजाना, आंखें झपकाना, कृष्ण की ओर लपकना आदि अनुभाव हैं.

रस के भेद –

स्थायी भाव के भेद से रस नौ प्रकार के होते हैं. नीचे इन सबके लक्षण उदाहरण दिए जा रहे हैं –
1.श्रृंगार रस – श्रृंगार का संबंध स्त्री-पुरुष की रति से है. इसे रसों का राजा ‘रस राज’ कहा गया है. इसके दो भेद हैं –
(i)संयोग श्रृंगार
(ii)वियोग श्रंगार.

योग श्रृंगार के लक्षण –
स्थाई भाव – रति
संचारी भाव – हर्ष, औत्सुक्य, स्मृति, लज्जा, मोह, आवेग, मद, उन्माद आदि.
आलंबन – कृष्ण आदि नायक या प्रिय व्यक्ति.
आश्रय – राधा आदि नायिका या प्रिया, प्रियजन आदि.
अनुभाव – लजाना, हर्ष, मद, मोह, असूया, मधुर आलाप, आलिंगन, रोमांच आदि.
उद्दीपन – एकांत, वन – उपवन, नदी – किनारा, प्रेममयी उक्ति का सुनना. उदाहरण –
एक जंगल है तेरी आंखों में
मैं जहां राह भूल जाता हूं.
तू किसी रेल – सी गुजरती है
मैं किसी पुल – सा थरथराता हूं.
स्पष्टीकरण – इसमें प्रिया आलंबन है. प्रेमी आश्रय है. नायिका की आंखों की गहराई उद्दीपन है. आश्रय का कंपन, रोमांच, उद्वेग अनुभाव हैं.

वियोग श्रृंगार – प्रेम में प्रिय और प्रिया के बिछुड़ने की अनुभूति से वियोग श्रृंगार की अभिव्यक्ति होती है.
स्थाई भाव – रति.
संचारी भाव – उग्रता, संत्रास.
आलंबन – प्रिय कृष्ण का वियोग.
आश्रय – गोपियां.
अनुभव – अश्रु
उद्दीपन – पावस ऋतु, मथुरा की स्मृतियां.
उदाहरणतया –
निसि दिन बरसत नैन हमारे
सदा रहित पावस ऋतु हमपे, जबते स्याम सिधारे.

2.वीर रस – उत्साह स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट हो जाता है तो वीर रस की अभिव्यक्ति होती है.
अवयव
स्थाई भाव –
उत्साह
आलंबन – शत्रु, दीन, संघर्ष.
आश्रय – नायक, उत्साही व्यक्ति, कवि.
उद्दीपन – सेना, युद्ध का कोलाहल, शत्रु की हरकतें, रण के वाध.
अनुभाव – गर्वपूर्ण वचन, भुजाएं फड़कना, आक्रमण.
संचारी – गर्व, हर्ष, रोमांच, आवेग आदि.
प्रकार – वीर रस के चार भेद हैं –
(i)युद्धवीर
(ii)दानवीर
(iii)दयावीर
(iv)धरमवीर
वीर रस की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति युद्धवीर रूप में होती है. उसमें उत्साह का पूरा सौंदर्य उभरकर सामने आता है.

उदाहरण –
तनकर भाला यूं बोल उठा
राणा ! मुझको विश्राम न दे.
मुझको वैरी से हृदय – क्षोभ
तू तनिक मुझे आराम न दे
स्पष्टीकरण – युद्धभूमि में वैरी की उपस्थिति आलंबन है. राणा प्रताप का ह्रदय आश्रय है. भाले का तनना और उद्देगपूर्ण वचन कहना अनुभाव हैं. उत्सुकता, उग्रता, चपलता संचारी भाव हैं.

3.करुण रस – प्रिय व्यक्ति या वस्तु की हानि का शोक जब विभाव, अनुभाव, संचारी आदि भावों से पुष्ट होकर व्यक्त होता है तो उसे करुण रस कहते हैं.
अवयव
स्थाई भाव –
शोक
आश्रय – शोकाकुल व्यक्ति
आलंबन – मृत प्रिय या दीन व्यक्ति या जर्जर स्थिति
उद्दीपन – हानि करने वाला, पूर्व स्मृतियां, प्रिय व्यक्ति के गुण, बचन आदि का स्मरण
अनुभाव – रुदन, पलाप, उच्छ्वास, चीत्कार, स्तंभित होना, पछाड़ खाकर गिरना.
संचारी – ग्लानि, मोह, स्मृति, चिंता, विषाद, उन्माद आदि.
उदाहरण –
अपनी तुतली भाषा में, वह सिसक – सिसक कर बोली.
जलती थी भूख तृषा की, उसके अंतर में होली.
हां ! सही न जाती मुझसे अब आज भूख की ज्वाला
कल से ही प्यास लगी है, हो रहा ह्रदय मतवाला.
स्पष्टीकरण – इसमें महाराणा प्रताप की नन्ही बेटी आलंबन है. कवि हृदय आश्रय है. भूख – प्यास और क्रंदन उद्दीपन हैं. दैन्य, विषाद, आवेग, संचारी भाव हैं.

4.हास्य रस – जहां विलक्षण स्थितियों द्वारा हंसी का पोषण हो,वहां हास्य रस होता है.
अवयव
स्थायी भाव –
ह्रास
आलंबन – विचित्र स्थिति, आकृति, वेशभूषा, मूर्खतापूर्ण कार्य
आश्रय – हंसने वाला पात्र और दर्शक
उद्दीपन – हास्यास्पद उक्तियां, चेष्टायें, स्थितियां
अनुभव – पेट का हिलना, दांतो का निकलना, चेहरे का खिलना, आंखें मिंचना
संचारी – हर्ष, चपलता, उत्सुकता, मति
उदाहरण –
हाथी जैसी देह है, गैंडे जैसी खाल.
तरबूजे – सी खोपड़ी, खरबूजे से गाल.
स्पष्टीकरण – मोटापा आलंबन है. आकार फैलाव उद्दीपन है.

5.रौद्र रस – जहां क्रोध और प्रतिशोध का भाव विविध अनुभावों, विभावों और संचारियों के योग से परिपुष्ट होता है, वहां रौद्र रस की अभिव्यक्ति होती है.
अवयव
स्थाई भाव
– क्रोध
आश्रय – क्रुद्ध व्यक्ति
आलंबन – अपराधी या दुष्ट विरोधी
उद्दीपन – विरोधी के कटु वचन, अपमान या विरोधी कार्य
अनुभाव – भौंह खींचना, आंखें लाल होना, होंठ चबाना, ललकारना, शस्त्र उठाना, कठोर भाषण, कंप, स्वेद आदि
संचारी – उग्रता, अमर्ष, गर्व, चपलता, श्रम, आवेग आदि.
उदाहरण –
एक दिन न्यूयार्क भी मेरी तरह हो जाएगा
जिसने मिटाया है मुझे वह भी मिटाया जाएगा.
आज ढाई लाख में कोई नहीं जीवित बचा
एक दिन न्यूयार्क में कोई नहीं बच पाएगा.
स्पष्टीकरण – नागासाकी और हिरोशिमा का ध्वंस आलंबन है. कवि – हृदय और श्रोता आश्रय हैं. क्रोध, अमर्ष, आवेग संचारी हैं. उग्र वचन अनुभाव हैं.

6.भयानक रस – जहां भय स्थायी भाव पुष्ट और विकसित हो, वहां भयानक रस होता है.
अवयव
स्थाई भाव –
भय
आश्रय – भयभीत व्यक्ति
आलंबन – भयप्रद स्थान व वस्तु, बलवान शत्रु
उद्दीपन – निर्जनता, भयंकर दृश्य, शत्रु की भयंकारी चेष्टाएँ.
अनुभाव – भागना, मूर्छित होना, कंप, स्वेद, रोमांच, वैवन्य (रंगत उड़ना) आदि
संचारी – शंका, चिंता, त्रास, दैन्य, ग्लानि आदि.
उदाहरण –
‘एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराय.
विकल बटोही बीच ही, परयो मूरछा खाए.
स्पष्टीकरण – यहां यात्री आश्रय है, अजगर और सिंह भय के आलंबन है. अजगर और सिंह की भयावनी आकृति और उनकी चेष्टायें उद्दीपन हैं. यात्री का कांपना, पसीना आना और मूर्छा अनुभाव हैं तथा आवेग, कंप आदि संचारी भाव हैं. इस प्रकार भयानक रस की अभिव्यंजना हुई है.

7.वीभत्स रस – जहां किसी वस्तु अथवा द्रश्य के प्रति जुगुप्सा (घृणा) का भाव परिपुष्ट हो, वहाँ वीभत्स रस होता है.
अवयव
स्थाई भाव –
जुगुप्सा (घ्रणा)
आश्रय – जिसमें घृणा का भाव जागे
आलंबन – शमशान, रुधिर, शव तथा घिनौनी वस्तु
उद्दीपन – गीघों का मांस नोचना, घायलों का छटपटाना, मांस की सड़न, अस्थियाँ आदि
अनुभाव – मुंह फेरना, आंख बंद करना, नाक सिकोड़ना, थूकना
संचारी – मोह, आवेग, उन्माद, निर्वेद, जड़ता, चिंता आदि
उदाहरण –
सिर पर बैठ्यो काग आंख दोउ खात निकारत.
खींचत जीभहीं स्यार अतिहि आनंद उर धारत.
गीघ जांघि को खोदि – खोदि कै मांस उपारत.
स्वान अंगुरनी काटी – काटी कै खात विदारत.
स्पष्टीकरण – यहाँ मुर्दे, मांस और श्मशान का द्रश्य आलंबन है. गीध, स्या, कुत्ते आदि मांस को नोचना और खाना उद्धीपन है. राजा का इनके बारे में सोचना और मोह, ग्लानि आदि संचारी हैं. राजा में घृणा का भाव स्थायी है.

8.अद्भुत रस – आश्चर्यजनक एवं विचित्र वस्तु के देखने व सुनने में जब आश्चर्य का परिपोषण हो, तब अद्भुत रस की प्रतीति होती है.
अवयव
स्थाई भाव
–विस्मय.
आश्रय – विस्मित व्यक्ति
आलंबन – अद्भुत वस्तु या विचित्र दृश्य, अलौकिक घटना
उद्दीपन – आश्चर्यजनक वस्तुओं का वर्णन, वस्तु की विलक्षणता
अनुभाव – रोमांच, स्तंभ, आंखें फाड़कर देखना, गदगद होना
संचारी – हर्ष, वितर्क, औत्सुक्य, भ्रान्ति, चपलता, आवेग
उदाहरण –
अखिल भवन पर अचर सब, हरि मुख में लखि मातू.
चकित भई गदगद वचन, विकसित दृग पुलकातु.
स्पष्टीकरण – यहाँ यशोदा आश्रय है, कृष्णमुख आलंबन है. मुख के भीतर का दृश्य उद्दीपन है. आंखों का फैलना, गदगद बचन अनुभाव है. दैन्य, भय आदि संचारी हैं. इसमें आश्रय का भाव पुष्ट होकर अद्भुत रस के रूप में व्यक्त हुआ है.

9.शांत रस – जहां संसार के प्रति वैराग्य का भाव रस – अवयवों से परिपुष्ट होकर अभिव्यक्त होता है, वहां शांत रस होता है.
अवयव
स्थायी भाव –
निर्वेद (शम), वैराग्य
आलंबन – संसार की असारता, प्रभु – चिंतन
उद्दीपन – सत्संग, तीर्थाटन, धर्मशास्त्र, सन्यासियों की वाणी
अनुभाव – अश्रु बहाना, आंखें मूंदना, अलौकिक प्रसन्नता
संचारी – धृति, हर्ष, दैन्य, ग्लानि आदि
उदाहरण –
मेरो मन अनत कहां सुख पावै.
जैसे उड़ी जहाज को पंछी पुनि जहाज पै आवै.
सूरदास प्रभु कामधेनु तजि, छेरि कौन दुहावै.
स्पष्टीकरण – संसार की असारता आलंबन है. जहाज का पंछी उद्दीपन है. कामधेनु और छेरि दुहाना भी उद्दीपन है. धृति संचारी भाव है.

10.वात्सल्य – जहां बाल – रति का भाव रस – अवयवों से परिपुष्ट होकर रस रूप में व्यक्त होता है, वहां वात्सल्य रस होता है.
अवयव
स्थायी भाव –
बाल – रति
आलंबन – बालक का मोहक रूप
उद्दीपन – बालक की स्वाभाविक चेस्टाएं
आश्रय – माता-पिता या पाठक
अनुभाव – गले से लगाना, बाहें फैलाना
संचारी – हर्ष, मोद, चपलता
उदाहरण –
बाल दसा मुख निरिख जसोदा पुनि पुनि बुलावति.
अँचरा तर लै ढाँकि सूर के प्रभु को दूध पियावति.
स्पष्टीकरण – यहां यशोदा आश्रय हैं. कृष्ण आलंबन है. कृष्ण की सहजता उद्दीपन है. नंद को बुलाना अनुभाव है. हर्ष, मोद संचारी हैं.

11.भक्ति रस – जहां ईश्वर – प्रेम का भाव रस के अवयवों से परिपुष्ट होकर रस – रूप में परिणत होता है, वहां भक्ति रस होता है.
अवयव
स्थायी भाव –
भगवद रति
आलंबन – ईश्वर की महिमा
उद्दीपन – प्रभु – मूर्ति
आश्रय – भक्त
अनुभाव – आंखों का मुंदना, शांत, मन, लीनता
संचारी – निर्वेद, धृति, अलसता, दैन्य
उदाहरण –
हमारे हरि हारिल की लकरी.
मन क्रम वचन नंद – नंदन उर, यह द्रण करि पकरी.
जागत सोवत स्वप्न दिवस निसि, कान्ह कान्ह जकरी.
स्पष्टीकरण – इसमें हरि आलंबन है. भक्त कवि आश्रय है. हारिल की लकरी उद्दीपन है. भक्ति वचन अनुभाव हैं. धृति, निर्वेद संचारी हैं.

Exercise-1

निम्नलिखित काव्यांश में किस रस की अभिव्यक्ति हुई है ?

1.वह तड़प उठा बांधो न मुझे हत्यारों.
पन्द्रह तो क्या पंद्रह सौ कोड़े मारो.
मैं जहां खड़ा हूं तिल भर नहीं हिलूंगा.
मैं हर कोड़े पर हंसता हुआ मिलूंगा.
2.वह अपने सलवार और वह पहले केवल कच्छा
विद्यालय है बना एक चिड़िया घर खासा अच्छा
3.भई विकल अबला सकल, दुखित देख गिरनारी.
करि विलापू रोदति बदति, सुता स्नेह सम्हारि.
4.रे नृप बालक कालवस बोल्ट तोहि न संभार.
धनहु सम त्रिपुरारी धनु विदित सकल संसार.
5.वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं.
वह खून कहो किस मतलब का, आ सके देश के काम नहीं.
6.तुझे विदा कर एकाकी अपमानित – सा रहता हूँ बेटा ?
दो आंसू आ गये समझाता हूँ उनसे बहता हूँ बेटा ?
7.हंसी हंसी भांजे देखि दूलह दिगंबर को
पाहुनी जो आवैं हिमाचल के उछाह में.
8.माली आवत देखिकें, कलियनुं करी पुकार.
फूली – फूली चुनि लई, कालिह हमारी बार.
9.देखि सुदामा की दीनद्सा करुना करिकें करुणानिधि रोए.
पानी परात को हाथ छुओ नहिं, नैनन के जल सों पग धोए.
10.इरादों में हमारे खून की गरमी भभकती है.
नहीं आंसू पियेंगे खून दुश्मन का पियेंगे हम.
11.प्रीति – नदी मैं पाऊं न बोरयो, द्रष्टि न रूप परागी.
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चांटी ज्यों पागी.
12.मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया.
आलिंगन में आते – आते मुसक्या कर जो भाग गया.
13.आंगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद भरी.
14.सब बन्धुन को सोच तजि, तजि गुरुकुल को नेह.
हा सुशील सुत ! किमि कियो अनत लोक में गेह.
15. पवन झुलावै, केकी – कीर बतरावे ‘देव’
कोकिल ह्लावै – हुलसावै कर तारी दे.
16.सोभित कर नवनीत लिए
घुटुरुन चलत रेनू तनु मंडित मुख दधि – लेप किए.
चारु कपोल लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए.
17.श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे.
सब शोक अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे.
18. रे नृप बालक कालबस बोलत तोहिं न संभारि.
धनुहीं सम त्रिपुरारी धनु विदित सकल संसार.
19.डरे कुटिल नृप प्रभुहिं निहारी, मनहु भयानक मूरति भारी.
20.किलकत कान्ह घुटुरुवन आवत.
21.या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौगी.
22.कब सौं हेरत दीन ह्वै होत न तदपि सहाय
तुमहूँ लागी जगद्गुरु जगनायक जग बाय.
23.अन्न परायों पाईकै खाओ पेट अघाई.
देह मिलै फिर – फिर इहाँ अन्न परायों नाइ.
24.मैं सत्य कहता हूं सखे! सुकुमार मत जानो मुझे,
यमराज से भी युद्ध को प्रस्तुत सदा मानो मुझे.
25.तनकर भाला यूं बोल उठा.
राणा ! मुझको विश्राम न दे.
मुझको बैरी से हृदय – क्षोभ
तू तनिक मुझे आराम न दे.
26.जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में.
अनुरागिनी उषा लेती थी सुहाग मधुमाया में.
उनकी स्मृति पाधेय बनी है थके पथिक की पंथा की.
उत्तर –
1.वीर
2.हास्य
3.करण
4.रौद्र
5.वीर
6.वात्सल्य
7.हास्य
8.शांत
9.करुण
10.रौद्र
11.श्रंगार
12.श्रंगार
13.वात्सल्य
14.करूण
15.श्रृंगार
16.वात्सल्य
17.रौद्र
18.रौद्र
19.वीर
20.वात्सल्य
21.श्रंगार
22.हास्य
23.हास्य
24.वीर
25.वीर
26.श्रंगार