Apathit Kavyansh Class 10th | Unseen Poem in Hindi

By | August 10, 2022
Apathit Kavyansh Class 10th

Apathit Kavyansh Class 10th- अपठित काव्यांश संबंधी प्रश्नों को हल करते समय कुछ प्रमुख बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए प्रश्नों के उत्तर काव्यांश से ही देना चाहिए. Also Read : Paropkar par Nibandh

Apathit Kavyansh Class 10th

निम्नलिखित पद्धांशों को पढ़कर उनसे संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

1.हिरणी के बिन जंगल सूना
हिरणी जैसा दौड़े कौन
पर प्रभु के बाघों के आगे
अपनी हिरणी छोड़े कौन ?
बिन मछली के नदिया सूनी
पर हिम्मत दिखलाए कौन ?
मगरमच्छ से भरी नदी में
अपनी मछली लाए कौन ?
बिन कुलवधुओं के कुल सूना
घर – आंगन महकाए कौन ?
पर अंधों के राज महल में
द्रुपदसुता को लाए कौन ?
गैया बिन वृंदावन सूना
गो बिन वंशी बजाए कौन ?
पर बूचड़ खानों के भय से
अपनी गैया लाए कौन ?
प्रश्न –
1.इस कविता का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए.
2.हिरणी किसकी प्रतीक है ? स्पष्ट कीजिए.
3.मछली के माध्यम से कवि ने क्या आशंका प्रकट की है ?
4.भारत में गायों की दुर्दशा क्या कारण है ?
5.‘अंधों के राज महल’ में कौन – सा गहरा व्यंग्य है ?
6.यदि यह कविता नारी – जीवन पर हो तो आप इससे क्या समझते हैं ?

2. जून का महीना झुलसते दिन-रात, और उधर मसूरी में रिमझिम बरसात!
मैं व्यंग से मुस्कुराया और पांच बैठे बेटे को समझाया
बेटा ! तू भी मसूरी सा वन, जलते रेगिस्तान में नंदनवन – सा तन
लोगों की आहों से एक फव्वारा बना और उसमें खूब नहा !
पानी के खेल खेल, झरने बहा, घर सजा, श्रंगार कर
झुलसने दे अभागों को, तू अपना घर भर !
सुनकर यह व्यंग की बोली मसूरी चीखकर बोली –
सुन ! न तो मैं आग बरसाती हूं, न किसी को तपाती हूं
ये तो तुम्हारी ही आहें हैं, जो किसी बड़े का कंधा खोजती हैं
जिस पर सर रखकर वे रो सकें !
और मैं ! जिसे तुम अपनी आहों का शोषक कहते हो
मैं तुम्हारी आहों को आंखों में बसाती हूं
उनमें डूबती हूं छटपटाती हूं
उनमें बसे आंसुओं को अपनी आंखों में लिए बरस जाती हूं
फिर भी तुम मेरे वक्ष पर मंडराते मेघों को कहते हो मेरा श्रंगार.
दरअसल जब भी कोई किसी के दुख दर्द को गले लगाता है
बहुत प्यारा हो जाता है, उसके नयनों का पोर – पोर उज्जवल हो जाता है.
और फिर मैं तुम्हारे जल को खुद कहां पीती हूं
पूरा का पूरा झर जाती हूं, तुम्हारे लिए एक नदी बनाती हूं
झरने बहाती हूं पेड़, पत्तियां और फूल उगाती हूं
फिर भी अपनी महिमा कहां गाती हूँ !
प्रश्न –
1.कवि मसूरी के किस दृश्य को देखकर क्या व्यंग करता है ?
2.मसूरी अपने ऊपर लगे आरोपों को कैसे बचाव करती है ?
3.मनुष्य प्रिय कब हो जाता है ?
4.मसूरी स्वयं को श्रेष्ठ मानती है – क्यों ?
5.उपयुक्त गद्यांश का उचित शीर्षक बताइए.

3.देश हमें देता है सब कुछ
हम भी तो कुछ देना सीखे
सूरज हमें रोशनी देता
हवा नया जीवन देती है
भूख मिटाने को हम सबको
धरती पर होती खेती है
औरों का भी हित हो जिसमें
हम ऐसा कुछ करना सीखें
पथिकों को जलती दुपहर में
पेड़ सदा देते हैं छाया.
खुशबू भरे फूल हैं देते
हमको नव फूलों की माला
त्यागी तरुओं के जीवन से
हम भी तो कुछ जीना सीखें.
प्रश्न –
1.कवि हमसे क्या चाहता है ?
2.हम किससे देना सीख सकते हैं ?
3.कवि ने त्यागी का संबोधन किसके लिए किया है और क्यों ?
4.कवि के अनुसार पेड़ हमें क्या देता है ?
5.कवि हमें क्या सीखने की प्रेरणा देता है ?

4.जिस – जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद !
जीवन अस्थिर, अनजाने ही
हो जाता पथ पर मेले कहीं
सीमित पग – डग, लंबी मंजिल
तय कर लेना कुछ खेल नहीं.
दाएं – बाएं सुख-दुख चलते
सम्मुख चलता पथ का प्रसाद
जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस – उस राही को धन्यवाद !
अबलंबित काया,
जब चलते-चलते चूर हुई.
तो स्नेह शब्द मिल गए, मिली –
नवस्फूर्ति, थकावट दूर हुई
पथ के पहचाने छूट गए
पर साथ – साथ चल रही याद !
जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद !
प्रश्न –
1.कवि किसे धन्यवाद देता है ?
2.जीवन को अस्थिर क्यों बताया गया है ?
3.कवि को नव – स्फूर्ति कैसे मिली ?
4.‘राही’ का पर्यायवाची शब्द लिखिए.
5. इस अंश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए.

5.थका – हारा सोचता मन – सोचता मन.
उलझती ही जा रही है एक उलझन.
अंधेरे में अंधेरे से कब तलक लड़ते रहें
सामने जो दिख रहा है, वह सच्चाई भी कहें.
भीड़ अंधों की खड़ी खुश रेवड़ी खाती
अंधेरे के इशारों पर नाचती – गाती
थका हारा सोचता मन सोचता मन.
भूखी प्यासी कानाफूसी दे उठी दस्तक
अंधा बन जा झुका दे तम द्वार मस्तक
रेवड़ी की बाँट में तू रेवड़ी बन जा
तिमिर के दरबार में दरबान – सा तन जा.
थका हारा, उठा गर्दन – जूझता मन
दूर उलझन ! दूर, उलझन, दूर उलझन !
चल खड़ा हो पैर में यदि लग गई ठोकर
खड़ा हो संघर्ष में फिर रोशनी होकर
मृत्यु भी वरदान है संघर्ष में प्यारे
सत्य के संघर्ष में क्यों रोशनी हारे.
देखते ही देखते दम तोड़ता है दम
और सूरज की तरह हम ठोकते हैं खम.
प्रश्न –
1.संघर्ष में विजय किसे मिलती है ?
2.‘तिमिर के दरबार में दरवान – सा तन जा’ से कवि का क्या आशय है ?
3.कविता में अंधों की भीड़ किसकी प्रतीक है ?
4.अंधेरे में अंधों की भीड़ खुश क्यों थी ?
5.उपयुक्त काव्यांश का उचित शीर्षक क्या होगा ?

6.पूरित कर जन – मन अभिलाषा, हिंदी बने देश की भाषा.
परित्याग कर हीन – भावना, घर – घर पहुंचाए निज भाषा.
देख उपेक्षित हिंदी वाणी
असंतोष का ज्वार उठ रहा.
सम्मानित परदेशी भाषा
हिंदी का सर्वस्व लुट रहा.
लड़े युद्ध वीरों ने बढ़ – बढ़, क्रांति – गीत हिंदी में गा कर.
राष्ट्र समूचे के दिल जोड़े, रखी एकता पथ पर लाकर.
हिंदी भाषा विस्तृत सागर
बढ़े पोत भावों के प्रति पल.
भाव व्यक्त करने में सक्षम
पवन वेग धारा सी कल – कल.
शब्द – कोश का विशद क्लेवर, स्वर लय चंद रसों का सरगम.
देवनागरी लिपि है अनुपम, नित नव ताल भाव उद्गम.
प्रश्न –
1.युद्ध के क्षणों में क्रांति – गीत किस भाषा में गाए गए थे ?
2.हिंदी भाषा का क्या योगदान है ?
3.कौन सी लिपि अनुपम है ?
4.हिंदी के प्रयोग और प्रचार में कौन – सी भावना बाधक है ?
5.‘पवन वेग धारा सी कल – कल’ में कौन सा अलंकार प्रयुक्त है ?

7. “मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोए थे
सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे.
रुपयों के कलदार मधुर फसलें खनकेगी
और, फूल – फल कर, मैं मोटा सेठ बनूंगा !
पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा
बंध्या मिट्टी में न एक भी पैसा उगला !
सपने जाने कहां मिटे, सब धूल हो गए !
मैं हताश हो, बाट जोहता रहा दिनों तक
बात कल्पना के अपलक पांवड़े बिछाकर !
मैं अबोध था, मैंने गलत बीज बोए थे
ममता को रोपा था, तृष्णा को सींचा था.”
प्रश्न –
1.कवि ने पैसों को क्यों बोया था ? उसकी कल्पना क्या थी ?
2.कवि पैसे बोकर क्यों निराश हुआ ?
3.पैसे बोने से कवि को क्या प्राप्त हुआ ?
4.कवि ने स्वयं को अबोध क्यों माना ?
5.‘बंजर’ शब्द का विलोम रूप लिखिए.
6.एक मुहाबरे का चयन कीजिए.

8. हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती.
नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है.
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है.
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती.
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है.
जा – जाकर खाली हाथ लौट वह आता है.
मिलते न सहज ही मोती पानी में
बढ़ता दूना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी खाली उसकी हर बार नही होती.
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती.
प्रश्न –
1.हमारी रगों में साहस कौन भरता है ?
2.चीटी की मेहनत क्यों बेकार नहीं होती ?
3.गोताखोरों को मोती कब मिलता है ?
4.‘सिंधु’ शब्द का पर्यायवाची क्या है ?
5.किनकी हार नहीं होती ?

9. ओ निराशा, तू बता क्या चाहती है ?
मैं कठिन तूफ़ान कितने झेल आया.
मैं रुदन के पास हँस – हँस खेल आया.
मृत्यु – सागर – तीर पर पद – चिन्ह रखकर –
मैं अमरता का नया संदेश लाया.
आज तू किस को डराना चाहती है ?
ओ निराशा, तू बता क्या चाहती है ?
तेज मेरी चाल आँधी क्या करेगी ?
आग में मेरे मनोरथ तप चुके हैं.
आज तू किससे लिपटना चाहती है ?
चाहता हूं मैं कि नभ – थल को हिला दूँ
और रस की धारा सब जग को पिला दूं
चाहता हूं पग प्रलय – गति से मिलाकर –
आह की आवाज पर मैं आग रख दूं.
आज तू किसको जलाना चाहती है ?
ओ निराशा, तू बता क्या चाहती है ?
प्रश्न –
1.कवि निराशा को ललकारते हुए अपने बारे में क्या बता रहा है ?
2.निराशा किसे डराना चाहती है ?
3.आशय स्पष्ट कीजिए – ‘मैं रुदन के पास हँस – हँस खेल आया.’
4.कवि की क्या इच्छा है ?
5.‘मृत्युसागर’ में अलंकार बताइए.

10. मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये.
अंबर पर जितने तारे उतने बरसों से
मेरे पुरखों ने धरती का रूप संवारा.
धरती को सुंदरतम करने की ममता में
बिता चुका है कई पीढ़ियों वंश हमारा.
और अभी आगे आने वाली सदियों में.
मेरे वंशज धरती का उद्धार करेंगे
इस प्यासी धरती के हित में ही लाया था
हिमगिरी चीर सुखद, गंगा की निर्मल धारा.
मैंने रेगिस्तानों की रेती धो – धोकर
बंध्या धरती पर भी स्वर्णिम पुष्प खिलाए.
प्रश्न –
1.मजदूरों ने पृथ्वी पर कितनी बार स्वर्ग का निर्माण किया है ?
2.मजदूरों के पूर्वजों को धरती का रूप सँवारने में कितने वर्ष लगे ?
3.प्यासी धरती के लिए मजदूर ने कौन – सा पुण्य कार्य किया ?
4.‘बंध्या धरती पर स्वर्णिम पुष्प खिलाए’ का क्या आशय है ?
5.‘मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या’ में अलंकार बताइए.

11. हम जंग न होने देंगे.
विश्व शांति के साधक हैं, जंग न होने देंगे.
कभी न खेतों में फिर खूनी खाद डलेगी
खलिहानों में नहीं मौत की फसल खिलेगी
आसमान फिर कभी न अंगारे उगलेगा
एटम से नागासाकी फिर नहीं जलेगी
युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे.
जंग न होने देंगे.
हथियारों के ढेरों पर जिनका है डेरा
मुख में शांति, बगल में बम, धोखे का फेरा
कफन बेचनेवालों से कह दो चिल्लाकर
दुनिया जान गई है उनका असली चेहरा
कामयाब हो उनकी चालें – ढंग न होने देंगे.
जंग न होने देंगे.
प्रश्न –
1.कवि जंग नहीं होने देना चाहता है – क्यों ?
2.‘खूनी खाद’ से कवि का क्या आशय है ?
3.‘अंगारे उगलना’ से क्या तात्पर्य है ?
4.‘मुंह में शांति, बगल में बम’ किस मुहावरे का दूसरा रूप है ?
5.‘कफन बेचनेवालों’ का आशय स्पष्ट करें.

12. हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए.
आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए.
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गांव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए.
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए.
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए.
प्रश्न –
1.कवि अपनी किस पीड़ा को पिघलाना चाहता है ?
2.कवि दीवारों के स्थान पर किसे हिलाना चाहता था ?
3.‘हर लाश’ से कवि का क्या अभिप्राय है ?
4.कविता के अनुसार कवि क्या करना चाहता है ?
5.आग किसका प्रतीक है ?

13. सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही देहाती है
सुरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते.
विघ्नों को गले लगाते हैं, कांटों में राह बनाते हैं.
है कौन विघ्न ऐसा जग में ? टिक सके आदमी के मग मे ?
खम ठोक ठेलता है जब नर,पर्वत के जाते पांव उखड़
मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है.
गुण एक – से – एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर
मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो
वत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है.
पेरा जाता जब इक्षु दंड, झरती रस की धारा अखंड
मेहंदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार
जब फूल पिरोए जाते हैं, हम इनको गले लगते हैं.
प्रश्न –
1.विपत्ति आने पर डरने वाला व्यक्ति कैसा होता है ?
2.काव्यांश के अनुसार किस प्रकार के व्यक्ति वीर कहलाते हैं ?
3.‘पर्वत के जाते पांव उखड़’ का क्या आशय है ?
4.कवि मेहंदी की लाली और वर्तिका की उजियाली के द्वारा क्या स्पष्ट करना चाहता है ?
5.‘फूल’ और ‘कांटे’ किसके प्रतीक हैं ?

14. सच हम नहीं सच तुम नहीं
सच है महज संघर्ष ही.
संघर्ष से हटकर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम
जो नत हुआ वह मृत हुआ ज्यों वृंत से बढ़कर कुसुम
जो लक्ष्य भूल रुका नहीं
जो हार देख झुका नहीं
जिसने प्रणय पाथेय माना जीत उसकी ही रही
सच हम नहीं सच तुम नहीं
ऐसा करो जिससे न प्राणों में कहीं जड़ता रहे
जो है जहां चुपचाप अपने आपसे लड़ता रहे
जो भी परिस्तिथियाँ मिलें, कांटे चुभें, कलियाँ, खिले
हारे नहीं इंसान, है संदेश जीवन का यही
सच हम नहीं सच तुम नहीं
प्रश्न –
1.इसका काव्यांश में जीवन की सच्चाई किसे कहा गया है ?
2.‘जो नत हुआ, वह मृत हुआ’ का आशय स्पष्ट करें.
3.‘कांटे’ और ‘कलियां’ किसके प्रतीक हैं ?
4.‘अपने आपसे लड़ना’ का आशय क्या है ?
5.‘कुसुम’ शब्द का पर्यायवाची शब्द लिखें.