Apathit Kavyansh with Answers | अपठित काव्यांश

By | July 29, 2022
Apathit Kavyansh with Answers

Apathit Kavyansh with Answers स्टूडेंट्स की परीक्षा में मदद के लिए दिए गये हैं. Apathit Kavyansh in Hindi द्वारा विद्यार्थी की कविता को समझने की क्षमता का पता चलता है.

निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर 20-25 शब्दों में लिखिए –
1.बहुत घुटन है बंद घरों में, खुली हवा तो आने दो
संशय की खिड़कियाँ खोल, किरनों को मुस्काने दो.
ऊंचे – ऊचें भवन उठ रहे, पर आंगन का नाम नहीं
चमक-दमक, आपा – धापी है, पर जीवन का नाम नहीं
लौट न जाए सूर्य द्वार से, नया संदेशा लाने दो.
हर मां अपना नाम जोहती, कटता क्यों बनवास नहीं
मेहनत की सीता भी भूखी, रुकता क्यों उपवास नहीं
बाबा की सूनी आंखों में चुभता तिमिर आने दो.
हर उदास राखी गुहारती, भाई का वह प्यार कहां ?
डरे – डरे रिश्ते भी कहते, अपनों का संसार कहां ?
गुमसुम गलियों को मिलने दो, खुशबू तो बिखराने दो.
प्रश्न –
1.‘ऊंचे – ऊंचे भवन उठ रहे, पर आगन का नाम नहीं’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए.
2.सूर्य द्वार से ही क्यों लौट जाएगा ?
3.आज रिश्तो के डरे – डरे होने का कारण आप क्या मानते हैं ?
4.‘तिमिर’ मैं एक शब्द का अर्थ लिखिए.
5.कवि ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर –

1.आज महानगरों में भौतिक उन्नति तो बहुत हो रही है, किंतु आपसी मेलजोल और आनंद – उत्सव समाप्त हो गए हैं. ऊँचे भवन भौतिक उन्नति के प्रतीक हैं तो आगन सांझे जीवन का.
2.लोगों ने अपने भवन इतने ऊंचे बना लिए हैं कि सूर्य की किरण भी कुछ भवनों तक नहीं पहुंच पाती. इसलिए भय है कि सूर्य तो उन भवनों के पास जाता है किंतु रास्ता न होने के कारण वापस लौट जाता है.
3.पारिवारिक और सामाजिक जीवन के कमतर होते जाने के कारण आज रिश्ते भी डरे – डरे हैं. उनमे आपसी अपनत्व और मेलजोल नहीं रहा.
4.अंधकार.
5.भौतिक उन्नति की अंधी दौड़ में पारिवारिक रिश्ते – नाते फीके पड़ते जा रहे हैं. यदि जीवन को आनंदपूर्वक जीना है तो उन रिश्तों – नातों को फिर से सजीव बनाना पड़ेगा.

2.मेरा माँझी मुझसे कहता रहता था
बिना बात तुम नही किसी से टकराना.
पर जो बार – बार बाधा बनके आएँ
उनके सिर को वही कुचलकर बढ़ जाना.
जानबूझ कर जो मेरे पथ में आती हैं
भवसागर की चलती – फिरती चट्टानें.
मैं इनसे जितना ही बचकर चलता हूं
उतनी ही मिलती है, यह ग्रीवा ताने.
रख अपनी पतवार, कुदाली को लेकर
तब मैं इनका उन्नत भाल झुकाता हूँ.
राह बनकर नाव चढ़ाए जाता हूँ
जीवन की नैया का चतुर खिवैया मैं
भवसागर में नाव बढ़ाए जाता हूँ.
प्रश्न –
1.राह में आने वाली बाधाओं के साथ कवि कैसा व्यवहार करता है ?
2.कवि ने हमें क्या प्रेरणा दी है ? स्पष्ट कीजिए.
3.कवि ने अपना माँझी किसे कहा है ?
4.‘उन्नत भाल’ का क्या आशय है ?
5.‘जीवन की नैया का चतुर खिवैया’ किसे कहा गया है ?
उत्तर –

1.कवि अपनी राह में आने वाली बाधाओं के लिए विध्वंसक का कार्य करता है. वह उनका सिर कुचल कर अपने रास्ते पर चल देता है.
2.कवि ने हमें निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी है. वे कहते हैं कि तुम किसी के रास्ते में बाधा मत बनों. अगर कोई बाधा तुम्हारे रास्ते में आकर खड़ी हो जाये तो उसे कुचलकर आगे बढ़ जाओ.
3.कवि ने अपने अंतर्मन की आवाज को, अपनी आत्मा को अपना माँझी कहा है.
4.ऊंचा उठा हुआ माथा. बाधाओं का गर्व पूर्वक रास्ता रोकना.
5.कवि ने स्वयं को या अपनी अंतरात्मा को ‘जीवन की नैया का चतुर खिवैया’ कहा है.

3.मैं तो मृत्रिका हूं –
जब तुम
मुझे पैरों से रौंदते हो
तथा हल के फाल से विदीर्ण करते हो
तब मैं
धन-धान्य बनकर मात्ररूपा हो जाती हूं
जब तुम
मुझे हाथों से स्पर्श करते हो
तथा चाक पर चढ़ाकर घुमाने लगते हो
तब मैं –
कुम्भ और कलश बनकर
जल लाती तुम्हारी अतरंग प्रिया हो जाती हूं
जब तुम मुझे मेले में मेरे खिलौने रूप पर
आकर्षित होकर मचलने लगते हो
तब मैं –
तुम्हारे शिशु हाथों में पहुंच प्रजारूपा हो जाती हूं.
पर जब भी तुम
अपने पुरुषार्थ – पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो
तब मैं –
अपने ग्राम्य देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति हो जाती हूं
(प्रतिमा बन तुम्हारी आराध्य हो जाती हूं)
विश्वास करो
यह सबसे बड़ा देवत्व है, कि –
तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य को
और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका.
प्रश्न –
1.मिट्टी मात्ररूपा बनने से पहले क्या – क्या कष्ट उठाती है ?
2.मिट्टी का प्रिया रूप किन्हें माना है ? इनमें कौन माध्यम बनता है ?
3.सबसे बड़ा देवत्व किसे माना गया है ?
4.मिट्टी किन हाथों में पहुंचकर प्रजारूपा हो जाती है ?
5.उपयुक्त काव्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए.
उत्तर –

1.मात्ररूपा बनने से पहले मिट्टी पैरों से रौंदी जाती है, खेतों में हल की सहायता से कुचली जाती है तभी वह धन-धान्य पैदा करने में समर्थ बन पाती है.
2.कुंभ और कलश का रूप धारण करना मिट्टी का प्रिया रूप है. कोई कुम्हार ही अपने कोमल हाथों को स्पर्श देकर और उसे चाक पर चढ़ाकर प्रिया रूप में गढ़ता है.
3.परिश्रम करना सबसे बड़ा देवत्व है.
4.बच्चों के हाथों में खिलौनों के रूप में पहुंचकर मिट्टी पूजारूपा बन जाती है.
5.मिट्टी की महिमा.

4.दो घड़ी कदम अपने रोको, बढ़ चले हो तुम अंधेरों को.
न रुके अगर तो तरसोगे, नवजीवन के पग फेरों को.
दुख के बिन सुख कैसा, सोचो बिना धूप कहां फिर छांव, कहो.
बिन मृत्यु भला कैसा जीवन, कैसा बिन मिट्टी गांव कहो.
गंगा को तुमने विष दे देकर मार दिया, कुछ और बढ़े.
तुमने अपने बल से नदियों को बांध दिया, कुछ और बढ़े.
तुम और बढ़े, जब तुमने हमखंडों तक को पिघला डाला.
तुम और बढ़े, जब खेतों को मिट्टी को दूषित कर डाला.
तुम बचा सके न नदियों को, जो कल तक कल – कल बहती थीं.
तुम बचा सके न चिड़ियों को, जो आँगन रोज चहकती थीं.
तुम हो विज्ञान के प्रतिनिधि, तुम अपने यश का गान करो.
मैं तुम्हें चुनौती देता हूं तुम यह काम महान करो.
रच लो अपनी ही धरा एक, अपनी विज्ञानी हाथों से.
प्रकृति नहीं जीती जाती, ऐसी अभिमानी बातों से.
प्रश्न –

1.कवि का संकेत किन अंधेरों की तरफ है और वह मनुष्य को अंधेरों की तरफ बढ़ने से क्यों रोक रहा है ?
2. प्रगति के नाम पर मानव ने प्रकृति से क्या छेड़छाड़ की है ?
3. कवि क्या चेतावनी दे रहा है ?
4.‘विज्ञान के प्रतिनिधि’ कहकर कवि ने किया व्यंग किया है ?
5.घमंडी मानव सोचता है कि मैंने प्रकृति को मुट्ठी में कर लिया है लेकिन यह उसकी भूल है – यह भाव कविता की किन पंक्तियों में आया है ?
उत्तर –

1.कवि का संकेत उन वैज्ञानिक उपायों की और है जिनके कारण प्रकृति के सहज आनंद में खलल पड़ रही है. प्रकृति के आंगन में विज्ञान का हस्तक्षेप अंधेरे के समान है. कवि उसे रोकना चाहता है.
2.मानव ने प्रगति के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ की है. उसने नदियों में विषैले रसायन घोल दिए. उन पर बांध बना दिए. फिर हिमखंडों को पिघला दिया. खेतों की मिट्टी को दूषित कर दिया. उसने चिड़ियों तक के लिए जीना कठिन कर दिया.
3.कवि विज्ञान के प्रतिनिधियों को चेतावनी दे रहा है कि अगर तुमने प्रकृति के आंगन में विज्ञान की छेड़छाड़ न रोकी तो जीवन जीने के लिए तरस जाओगे.
4.कवि ने आधुनिक मनुष्य को ‘विज्ञान का प्रतिनिधि’ कहकर व्यंग्य किया है. व्यंग्य यह है कि कहलाने को तुम उन्नत, प्रगतिशील और समझदार कहलाते हो, किन्तु तुम अपनी नासमझी से पृथ्वी को संकट में डाल रहे हो.
5.मैं तुम्हे चुनौती देता हूँ, तुम एक काम महान करो.
रच लो अपनी ही एक धरा, अपने विज्ञानी हाथों से.
प्रकृति नहीं जीती जाती, ऐसी अभिमानी बातों से.

5.ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी इक बूंद कुछ आगे बढ़ी.
सोचने फिर – फिर यही जी में लगी
आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी !
देव ! मेरे भाग्य में है क्या बदा
मैं बचूंगी या मिलूंगी धूल में.
या जलूंगी गिर अंगारे पर किसी
चू पडूँगी या कमल के फूल में.
बह गयी उस काल इक ऐसी हवा
वह समंदर ओर आई अनमनी
एक सुंदर सीप का मुंह था खुला
वह उसी में जा पड़ी, मोती बनी.
लोग यों ही हैं झिझकते सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर
किंतु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूँद सम कुछ और ही देता है कर.
प्रश्न –

1. बादलों से निकलते समय बूंद के मन में क्या क्या विचार उठ रहे थे ?
2.बूंद के माध्यम से कवि ने किन लोगों का वर्णन किया है ?
3.काव्यांश में ‘आह’ शब्द किस भाव को प्रकट करता है ?
4.बूंद समुद्र की ओर अनमने भाव से क्यों आई ?
5.कैसे कह सकते हैं कि घर छोड़ने का परिणाम बुरा नहीं होता ?
उत्तर –

1.बादलों से निकलते समय बूँद के मन में अनेक शंकाएं उठ रही थी. उसे भय था कि पता नहीं आगे मेरा क्या होगा ? कहीं मिट्टी में न मिल जाऊं या अंगारे पर न जा पडूँ ? या किसी कमल के फूल पर जा पडूँ ?
2.बूंद के माध्यम से कवि ने उन भयभीत, संकोची और विश्वासहीन लोगों का वर्णन किया है जो जीवन के क्षेत्र में पांव रखते हुए बहुत सशंकित रहते हैं.
3.‘आह’ शब्द कवि के दुख और पश्चाताप को प्रकट करता है.
4.बूंद समुद्र की ओर अनमने भाव से इसलिए आई क्योंकि इसमें डूब जाने का भय था. उसे अपने भाग्य और भविष्य के प्रति शंका थी.
5.इस कविता में अपने घर से निकली बूंद भाग्य से मोती बन गई. इसी प्रकार घर से बाहर निकलने वाले लोग कई बार बहुत मूल्यवान व्यक्तित्व बन जाते हैं.

6.लहरों में हलचल होती है …….
कहीं न ऐसी आंधी आए
जिससे दिवस रात हो जाए
यही सोचकर चकवी बैठी तट पर निज धीरज खोती है.
लहरों में हलचल होती है ……
लो, वह आई आंधी काली
तम – पथ पर भटकाने वाली
अभी गा रही थी जो कलिका पड़ी भूमि पर सोती है.
लहरों में हलचल होती है …….
चक्र – सदृश भीषण भंवरों में
औ’ पर्वताकार लहरों में
एकाकी नाविक की नौका अब अंतिम चक्कर लेती है.
लहरों में हलचल होती है……
प्रश्न –

1.चकरी तट पर बैठकर अपना घर क्यों खो हो रही है ?
2.लहरों में हलचल होने का क्या तात्पर्य है ?
3.कोमल कली के बेसुध होकर धरती पर क्यों पड़ी है ?
4.भीषण भंवरों और पर्वताकार लहरों से क्या अभिप्राय है ?
5.ऐसा क्या हो कि एकाकी नाविक की नौका का यह अंतिम चक्कर न हो ?
उत्तर –

1.चकवी अपने चकवे से दिन होने पर मिलती है. वह रात – भर उससे बिछुड़ी रहती है. अब दिन में ऐसी आंधी चली कि दिन में रात जैसा अंधेरा हो गया. अतः उसका धैर्य खोने लगा कि कहीं फिर से चकवे – से बिछुड़ना ना पड़े. बिना चकवे के कैसे जिया जाएगा ?
2.लहरों में हलचल होने का तात्पर्य है – तूफान आने की आशंका. यहां लहरें मानव – मन की प्रतीक हैं. अतः प्रतिकार्थ हुआ – मन में कंपन हो रहा है.
3.कलियां दिन में ही चटक कर खिलखिलाती हैं और रात में निढाल होकर सो जाती हैं. आंधी के कारण चारों ओर रात जैसा अंधेरा हो गया है. इस कारण कोमल कली बेसुध होकर धरती पर गिर पड़ी है.
4.तूफान के कारण समुद्र में पढ़ने वाले गोल-गोल भयानक गड्ढों को भीषण भंवर कहा गया है. पर्वत जैसी ऊंची – ऊंची लहरों को पर्वताकार लहरें कहा गया है.
5.आंधी रुके, भंवर शांत हों, लहरें धीमी हों तो एकाकी नाविक की नौका शायद बच जाए, भयभीत नाविक जी जाए.

7.तुम्हारी निश्चल आंखें
तारों – सी चमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में
प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता है
जरूर दिखा जरूर दिखाई देती होंगी नसीहतें
जरूरी पत्थरों – सी
दुनिया भर के पिताओं की लंबी कतार में
पता नहीं कौन सा कितना करोड़वाँ नंबर है मेरा
पर बच्चों के फूलोंवाले बगीचे की दुनिया में
तुम अव्वल हो पहली कतार में मेरे लिए
मुझे माफ करना मैं अपनी मूर्खता और प्रेम में समझता था
मेरी छाया के तले ही सुरक्षित रंग – बिरंगी दुनिया होगी तुम्हारी
अब जब तुम सचमुच की दुनिया में निकल गई तो
मैं खुश हूं सोचकर
कि मेरी भाषा के अहाते से परे है तुम्हारी परछाई.
प्रश्न –
1.बच्चे माता – पिता की उदासी में उजाला भर देते हैं – यह भाव किन पंक्तियों में आया है ?
2.प्रायः बच्चों को पिता की सीख कैसी लगती है ?
3.माता – पिता के लिए अपना बच्चा सर्वश्रेष्ठ क्यों होता है ?
4.कवि ने किस बात को अपनी मूर्खता माना है और क्यों ?
5.भाव स्पष्ट कीजिए : ‘प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता.’
उत्तर –

1.तुम्हारी निश्चल आंखें
तारों – सी चमकती है मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में.
2.प्रायः बच्चों को पिताजी की सीख नुकीले पत्थरों – सी कठोर और निर्मम प्रतीत होती है.
3.माता-पिता के मन में अपने बच्चों के लिए बहुत ममता होती है, प्यार होता है. इसीलिए उन्हें अपना बच्चा सर्वश्रेष्ठ प्रतीत होता है.
4.कवि समझता था कि वही अपनी बच्ची का सबसे अच्छा संरक्षक है. परंतु शादी के बाद जब बच्ची अपने विवाहित जीवन में आनंद पूर्वक जीना शुरु किया तो उसे लगा कि उसकी वह सोच मूर्खतापूर्ण थी.
5.पिता परिवार के मुखिया होने के नाते ऊपर से कठोर और गंभीर बने रहते हैं. वे बात – बात पर बच्चों पर प्रेम नहीं लुटाते. इस कारण बच्चों को अपने पिता का प्रेम दिखाई नहीं देता.

8.दिल्ली में चलकर क्या लोगी
तुम यहीं रहो तो अच्छा है
घर बड़े – बड़े दिल छोटे हैं
जो अजगर मोटे – मोटे हैं
पहचान न तुम कर पाओगी
चेहरों पर चढ़े मुखौटे हैं.
सब बात वहां पर नकली है
सब गात वहां पर नकली हैं
सबके घड़ियाली आंसू हैं
जज्बात वहां पर नकली हैं
इस शर्मो – हया के परदे को
तुम कितना और हटा लोगी
हर रात वहाँ जगना होगा.
अपने को ही ठगना होगा.
हर छोटी – बड़ी जरूरत को
बस लाइन में लगना होगा.
तुम भीड़ देखकर डर जाओगी
कैसे बस में चढ़ पाओगी
धक्का – मुक्की में चढ़ी अगर तो
अंदर घुटकर मर जाओगी.
इस दिन भर भागा – दौड़ी में
कहीं गिरकर टांग तुड़ा लोगी.
प्रश्न –
1.कवि दिल्ली के लोगों की किस दुर्भावना से चिंतित है ?
2.मोटे – मोटे अजगर किन्हें कहा गया है और क्यों ?
3.कवि शर्मो – हया के परदे के बारे में क्या कहना चाहता है ?
4.दिल्ली में क्या चीज नकली है ?
5.दिल्ली के जन्मजीवन की कठिनाइयाँ क्या हैं ?
6.‘हर रात भर वहाँ जगना होगा’ में कौन-कौन से कष्ट व्यक्त हुए हैं ?
उत्तर –

1.कवि दिल्ली के लोगों के महास्वार्थ, ठगी, शोषण, सद्भावना – शून्यता और संवेदनशीलता को देखकर चिंतित हैं.
2.दूसरों का शोषण कर – करके धनी बने लोगों को अजगर कहा गया है.
क्यों – वे शोषक हर व्यक्ति का शोषण करके अपना पेट भरना चाहते हैं.
3.दिल्ली से बाहर ग्रामीण परिवेश में रहने वाली स्त्रियों में शर्म – हया और लोकलाज होती है. वे अपने तन – मन को ढँककर मर्यादा से जीती हैं. परंतु दिल्ली में रहकर उन्हें अपनी यह लोकलाज त्यागनी पड़ेगी.
4.दिल्ली में आपसी संबंध दिखावटी और नकली हैं. यहां सभी अपने – अपने स्वार्थ में लिप्त हैं. कोई किसी के दुख से दुखी नहीं है. उनकी प्यार – भरी मीठी बातें भी ठगी के सिवा कुछ नहीं है.
5.दिल्ली के जनजीवन की बड़ी कठिनाइयां हैं – भीड़भाड़ और आवागमन की परेशानियां. बसों के अंदर और बाहर मारामारी और धक्का-मुक्की का बोलबाला है.
6.दिल्ली में हर रात चिंता में कटती है. कल क्या होगा, हम कैसे जिएंगे – यही चिंता नींद नहीं आने देती.

9.मिट्टी तन है, मिट्टी मन है, मिट्टी दाना – पानी है.
उसी ही तन – बदन हमारा, सो सब ठीक कहानी है.
पर जो उल्टा समझ इसे ही बने आप ही ज्ञानी है.
मिट्टी करता है जीवन को और बड़ा अज्ञानी है.
समझ सदा अपना तन मिट्टी, मिट्टी जो कि रमाता है.
मिट्टी करके सरबस अपना मिट्टी में मिल जाता है
जगत है सच्चा तनिक न कच्चा समझो बच्चा इसका भेद
खाओ – पियो कर्म करो नित, कभी न लाओ मन में खेद.
रचा उसी ने है यह जग जो निश्चय उसको प्यारा है.
इसमें दोष लगाना अपने लिए दोष का द्वार है.
प्रश्न –
1.‘सो सब ठीक कहानी है’ में कवि का क्या आशय है ?
2.कवि ने किन ज्ञानियों पर कटाक्ष किया है ?
3.कौन – से अज्ञानी अपने जीवन को मिट्टी में मिला देते हैं ?
4.कभी संसार को सच्चा मानकर क्या संदेश देना चाहता है ?
5.यह संसार भगवान को प्रिय क्यों है ?
6.जीवन में दोष ढूंढ़ना गलत क्यों है ?

उत्तर –
1.कवि का आशय है – सिद्धांत रूप से इस शरीर और दाना – पानी को मिट्टी अर्थात नश्वर कहना ठीक है, परंतु इस कारण इसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए.
2.कवि ने उन ज्ञानियों को कटाक्ष किया है जो इस जीवन, शरीर और सांसारिक सुखों को नश्वर कहकर उससे दूर रहने की सलाह देते हैं.
3.जो विद्वान इस संसार को असत्य मानकर उससे दूर रहते हैं और अपने जीवन काल को बैराग से नष्ट कर लेते हैं, वे अज्ञानी हैं.
4.कवि कहता है – यह संसार सच्चा है. इसलिए खूब खाओ – पियो और कर्म करो. संसार के प्रति वैराग्य भाव लाकर उसे नष्ट मत करो.
5.यह संसार स्वयं भगवान द्वारा निर्मित है, इसलिए यह स्वाभाविक रूप से उसे प्रिय है.
6.जीवन में दोष ढूँढ़ना, उसे असत्य या माया या नश्वर कहना गलत है क्योंकि यह स्वयं ईश्वर की रचना का अपमान करना है.

10.तिनका – तिनका लाकर चिड़िया
रचती है आवास नया
इसी तरह से रच जाता है
सर्जन का आकाश नया.
मानव और दानव में यूं तो
भेद नजर नहीं आएगा
एक पोंछता बहते आंसू
जी भर एक रुलाएगा.
रचने से ही आ पाता है
जीवन में विश्वास नया.
कुछ तो इस धरती पर केवल
खून बहाने आते हैं
आग बिछाते हैं राहों में
फिर खुद भी जल जाते हैं
जो होते खुद मिटने वाले
वे रचते इतिहास नया.
मंत्र नाश का पढ़ा करें कुछ
द्वार – द्वार पर जा करके
फूल खिलाने वाले रहते
घर-घर फूल खिला करके.
प्रश्न –
1.चिड़िया के माध्यम से मनुष्य को क्या संदेश दिया गया है ?
2.मानव और दानव का भेद क्यों नहीं दिखाई देता ?
3.दानव की पहचान किस बात से होती है ?
4.नया इतिहास कौन रचते हैं ?
5.खुद ‘जलने वालों’ और ‘मिटने वालों’ में क्या अंतर है ?
6.मानव और दानव घर – घर जाकर क्या करते हैं ?

उत्तर –
1.चिड़िया के माध्यम से मनुष्य को संदेश दिया गया है कि इस जीवन में आकर कुछ नया निर्माण करो, कुछ काम करो, कुछ रचना करो.
2.मानव और मानव शरीर से एक जैसे होते हैं. उनमें ऊपर से कोई अंतर दिखाई नहीं देता. उनमें वास्तविक अंतर उनके कर्मों के कारण होता है.
3.दानव की पहचान उसके द्वारा किए गए ध्वंस, विनाश, अत्याचार और खून – खराबे के कारण होती है.
4.जो लोग कुछ अच्छा और शुभ निर्माण करने के लिए अपना सर्वस्व त्याग देते हैं. वे ही नया इतिहास रचा करते हैं.
5.दूसरों से हिंसा करते – करते उसी हिंसा की आग में जल मरने वाले दानव होते हैं. जबकि दूसरों के दुख दूर करने के लिए बलिदान करने वाले सच्चे मानव होते हैं.
6.दानव घर – घर जाकर विनाश – लीला रचा करते हैं जबकि मानव घर-घर जाकर सद्भावना और प्रेम के फूल खिलाया करते हैं.

11.मैं बढ़ा ही जा रहा हूं, पर तुम्हें भूला नहीं हूं
चल रहा हूं, क्योंकि चलने से थकावट दूर होती
चाहता तो था कि रुक लूं पाश्व्र में क्षण – भर तुम्हारे
किंतु अगणित स्वर बुलाते हैं मुझे बाहें पसारे
अनसुनी करना उन्हें भारी प्रवचन कापुरुषता
मुंह दिखाने योग्य रखेगी न मुझको स्वार्थपरता.
इसलिए ही आज युग की देहली को लांघकर मैं
पथ नया अपना रहा हूं –
पर तुम्हें भूला नहीं हूं.
आज शोषक – शोषितों में हो गया जग का विभाजन
अस्थियों की नींव पर आकड़ खड़ा प्रासाद का तन.
प्रश्न –
1.इस कविता में कवि किसे संबोधित कर रहा है ?
2.कवि के मन में क्या द्वंद है ?
3.कवि किस बात को प्रवचन और कापुरुषता कहता है ?
4.कवि किस नए पथ की ओर बढ़ रहा है ?
5.कवि जीवन – पथ पर क्यों चल रहा है ?
6.आशय स्पष्ट कीजिए –
‘अस्थियों की नींव पर अकड़ा खड़ा प्रासाद का तन’
उत्तर –

1.कवि अपनी प्रिया को संबोधित कर रहा है.
2.कवि के मन में यह द्वंद है कि वह अपनी प्रिया के साथ प्रेम – भरी जिंदगी जिए और यह समाज में हो रहे शोषण के विरुद्ध लड़ाई लड़े.
3.कवि शोषण और अन्याय के विरुद्ध लड़ाई करना छोड़कर अपनी प्रिया के संग प्रेम की जिंदगी में मस्त होने के प्रवचन और कापुरुषता कहता है. लड़ाई से भागना कायरता है और शोषितों को उनका न्याय न दिलवाना उनके साथ धोखा है.
4.कवि अपने निजी वैवाहिक जीवन को तजकर समाज में फैले अन्याय और शोषण के विरुद्ध संघर्ष करने की राह पर चल पड़ा है.
5.कवि जीवन – पथ पर इसलिए चल रहा है क्योंकि इस पथ पर चलने से उसकी थकावट दूर होती है, मन को शांति मिलती है.
6.बड़े-बड़े महल मजदूरों की हड्डियों के बल पर खड़े हुए हैं अर्थात गरीब – मजदूरों का शोषण कर – करके ही बड़े लोग सेठ बने हैं. यह अन्याय है.

12.वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता.
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी – भर दाने को – भूख मिटाने को
मुंह फटी – पुरानी झोली का फैलाता, पथ पर आता.
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता.
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते
और दाहिना दया – दृष्टि पाने की ओर बढ़ाएं.
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता – भाग्य – विधाता से क्या पाते ?
घूँट आंसुओं के पीकर रह जाते.
चाट रहे जूठी पत्तल वे कभी कभी सड़क पर खड़े हुए
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए.
प्रश्न –
1.कलेजे के दो टूक करने का क्या अर्थ है ?
2.‘पेट – पीठ दोनों मिलकर हैं एक’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
3.भिक्षुक के साथ चल रहे बच्चों का दृश्य प्रस्तुत कीजिए.
4.भिक्षुक बच्चे जूठी पत्तल पर क्यों टूट रहे हैं ?
5.यह कविता पढ़कर मन में क्या भाव उत्पन्न होता है ?
उत्तर –

1.दिल को गहरा आघात लगना.
2.कवि भिखारी के शरीर की दुर्दशा दिखाना चाहता है. वह इतना दुबला है कि पेट और पीठ दोनों मिलकर एक हो गए हैं. मानो उसके शरीर में मांस और हड्डियां है ही नहीं.
3.भिक्षुक के साथ चल रहे बच्चे बहुत दिन – हीन हैं. वे लोगों से भीख मांगने के लिए सदा अपने हाथ फैलाए रहते हैं वे बाएं हाथ से अपना भूखा पेट मिलते रहते हैं तो दाहिना हाथ लोगों की दया पाने के लिए फैलाए चलते हैं. जब खाने को कुछ भी नहीं मिलता तो वे आंसू पीकर रह जाते हैं.
4.भिक्षुक भूख के मारे लोगों की जूठी पत्तलों को उठाने के लिए बढ़ते हैं परंतु उन पर कुत्ते भी अपनी हक जमाते हैं.
5.यह कविता पढ़कर भिक्षुकों और उनके अनाथ बच्चों की समस्या पर करुणा उमड़ आती है.

13. सामने कुहरा घना है
और मैं सूरज नहीं हूँ
क्या इसी एहसास में जिऊँ
या जैसा भी हूं नन्हा – सा
एक दीया तो हूँ
क्यों ना उसी की उदास में जिऊँ
हर आने वाला क्षण
मुझे यही कहता है –
अरे भई, तुम सूरज तो नहीं हो
और मैं कहता हूं –
न सही सूरज
एक नन्हा दीया तो हूं
जितने भी है लौ मुझमें
उसे लेकर जिया तो हूं
कम – से – कम मैं उनमें तो नहीं
जो चांद दिल के बुझाए बैठे हैं
हर रात को अमावस बनाए बैठे हैं
उड़ते फिर रहे थे जो जुगनू उनके आंगन में
उन्हें भी मुट्ठियों में दबाए बैठे हैं.
प्रश्न –
1.कविता में प्रयुक्त ‘कुहरा’ किसका प्रतीक है ?
2.‘मैं सूरज नहीं हूं’ के माध्यम से कवि क्या कहता है ?
3.इस कविता का मूल – भाव क्या है ?
4.‘हर रात को अमावस बनाए बैठे हैं’ का भाव स्पष्ट करें.
5.‘जुगनू को मुट्ठी में दबाने’ का क्या आशय है ?
उत्तर –

1.कविता में प्रयुक्त ‘कुहरा’ बाधाओं और कष्टों का प्रतीक है.
2.कवि कहता है कि वह परम शक्तिवान नहीं है. उसके पास कोई ईश्वरीय शक्ति नहीं है.
3.इस कविता का मूल – भाव है कि लघुता के बावजूद अपनी सामर्थ्य के अनुसार सतत प्रयासरत रहो. अपनी निर्बलता का रोना रोकर अच्छे कर्मों से बचो मत.
4.प्रस्तुत पंक्ति का भाव है कि मनुष्य ने अपनी शक्तियों को जानबूझकर बेकार कर डाला है. अपने वरदानों का ठीक से उपयोग नहीं किया है.
5.प्रस्तुत पंक्ति का आशय है – अपनी सीमित – सी शक्तियों को भी दबाकर नष्ट करना.

14. जो बीत गई सो बात गई.
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया.
अंबर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहां मिले
बोलो इन टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई.
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियां
मुरझाई कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाई फिर कहां खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है ?
जो बीत गई सो बात गई.
प्रश्न –
1.‘बीत गई सो बात गई’ से क्या तात्पर्य है ?
2.अंबर और उसके सितारे के माध्यम से कवि ने क्या प्रेरणा दी है ?
3.‘कुसुम’ किसका प्रतीक है ?
4.मधुबन किसका प्रतीक है ? उसके व्यवहार पर टिप्पणी कीजिए.
5.टूटा सितारा और मुरझाया फूल क्या संदेश देते हैं ?
6.मानवीकरण अलंकार का एक उदाहरण दीजिए.
उत्तर –

1.कवि का आशय है कि बीती दुखद बातों पर पछतावा नहीं प्रकट करना चाहिए. बीते सुखद अनुभव को भूल जाने में ही भलाई है.
2.आकाश और उसके एक सितारे के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि संसार में जितने भी सुख हैं, वे क्षणिक हैं. जो आए हैं, एक दिन जाएंगे भी. इसलिए एक सितारे के टूटने पर संसार रूपी अंबर को शोक नहीं मनाना चाहिए.
3.‘कुसुम’ प्रिय का प्रतीक है.
4.मधुबन चहल-पहल भरे संसार का प्रतीक है. इसमें कितने ही फूल रोज उगते हैं, सुगंध देते हैं और कितने ही मुरझाकर मिट्टी में मिल जाते हैं. यह मधुबन का स्वभाव है. अतः किसी प्रिय की मृत्यु पर शोक नहीं बनाना चाहिए.
5.टूटा सितारा और मुरझाया फूल हमें संदेश देते हैं कि जीवन नश्वर है. चाहे वस्तु कोई कितनी भी सुंदर और प्रिय क्यों न हो, एक दिन उसे जाना ही होगा.
6.कब मधुबन शोर मचाता है ?

15. कुछ भी बन, बस कायर मत बन.
ठोकर मार, पटक मत माथा
तेरी राह रोकते पाहन
कुछ भी बन बस कायर मत बन.
ले – देकर जीना क्या जीना ?
कब तक गम के आंसू पीना ?
मानवता ने तुझको सींचा
बहा युगों तक खून – पसीना
कुछ ना करेगा ? किया करेगा
रे मनुष्य – बस कातर क्रंदन ?
अर्पण कर सर्वस्व मनुष्य को
कर न दुष्ट को आत्म – समर्पण
कुछ भी बन बस कायर मत बन.
प्रश्न –
1.इस पद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए.
2.कवि रुकावटों पर कैसी प्रतिक्रिया चाहता है ?
3.‘ले – देकर क्या जीना’ का भावार्थ स्पष्ट कीजिए.
4.कवि मनुष्य में किस कर्म को दुतकारता है ?
5.कोई एक मुहावरा ढूंढिए तथा उसका अर्थ भी लिखिए.
उत्तर –

1.कायर मत बन.
2.कवि मार्ग में आने वाली रुकावटों को ‘पाहन’ करता है तथा उन पर ठोकर मारने को कहता है. वह चाहता है कि लोग रुकावटों को देखकर माथा न पीटें अपितु उसे हटाने के लिए संघर्ष करें.
3.इसका भावार्थ है कि हमें रुकावटों और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना चाहिए. उन्हें समझौता नहीं करना चाहिए. समझौते हमारे विरोध को कुंद कर देते हैं.
4.कवि मनुष्य द्वारा किए गए क्रंदन, रुदन और आत्म – समर्पण को दुत्कारता है वह पराजय की बजाय संघर्ष का पथ अपनाना चाहता है.
5.खून पसीना बहाना – घोर परिश्रम करना.