Apathit Kavyansh in Hindi | with Questions and Answers

By | July 28, 2022
Apathit Kavyansh in Hindi

Apathit Kavyansh in Hindi द्वारा विद्यार्थी की कविता को समझने की क्षमता का पता चलता है. हमारी वेबसाइट edumantra.net पर आपको बहुत से Apathit Kavyansh मिलेंगे. साथ ही हम आपको देंगे अलंकार विषय के बारे में सम्पूर्ण जानकारी.

अपठित काव्यांश काव्यों के वे अंश हैं जो पाठ्य पुस्तक से संबंधित नही होते हैं अपठित काव्यांश विद्यार्थियों में पढ़कर भाव ग्रहण करने की क्षमता को बढ़ाते हैं | इससे छात्रों की लेखन कला का विकास होता है क्योंकि काव्यांश समझकर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर उन्हें अपने शब्दों में देने होते हैं |
अपठित काव्यांश हल करते समय ध्यान देने योग्य बातें –


•काव्यांश को दो-तीन बार पढ़कर भाव ग्रहण करने का प्रयत्न करें |
•प्रश्नों को पढ़कर काव्यांश में संभावित उत्तर की पंक्तियों को रेखांकित करें |
•प्रश्नों के उत्तर लिखते समय अभाव को ध्यान में रखें |
•सरल एवं स्पष्ट भाषा तथा छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करें |
•शीर्षक लिखते समय कोशिश करें कि वह छोटा और काव्यांश के मूल भाव से संबंधित हो |

(1) किस भाँति जीना चाहिए किस भाँति मरना चाहिए
सो सब हमें निज पूर्वजों से ज्ञात करना चाहिए |
पद – चिह्न उनके यत्नपूर्वक खोज लेना चाहिए
निज पूर्व गौरव दीप को बुझने न देना चाहिए |
आओ मिलकर सब देश – बाधव हार बनकर देश के ,
साधक बने सब प्रेम से सुख शांतिमय उद्धेश्य के |
क्या सांप्रदायिक भेद से है ऐक्य मिट सकता , अहो ,
बनती नहीं क्या एक माला विविध सुमनों की कहो |
प्राचीन हो कि नवीन , छोड़ो रूढ़ियाँ जो हो बुरी ,
बनकर विवेकी तुम दिखाओ हंस की – सी चातुरी |
प्राचीन बातें हो भली हैं – यह विचार अलीक है ,
जैसी अवस्था हो जहाँ , वैसी व्यवस्था ठीक है |
मुख से न होकर चित्त से देशानुरागी हो सदा ,
हैं सब स्वदेशी बंधु , उनके दुःख भागी हो सदा |
देकर उन्हें साहाव्य भरसक सब विपत्ति व्यथा हरो ,
निज दुःख से ही दूसरों के दुःख का अनुभव करो |
प्रश्न
(क)कवि ने किस तरह की चातुरी दिखाने की बात कही है तथा क्यों ?
उत्तर –
कवि ने लोगों को हंस जैसी चातुरी दिखाने की बात कही है यह माना जाता है कि हंस एक ऐसा चतुर पक्षी है जो दूध में से दूध और जल को अलग – अलग कर देता है | मनुष्य को भी इसी तरह से नीर – क्षीर विवेकी होना चाहिए |
(ख)व्यक्ति को अपने देशवासियों का भला किस प्रकार करना चाहिए ?
उत्तर –
मनुष्य को बातों से नहीं बल्कि हृदय से देशानुरागी होना चाहिए तथा समस्त देशवासियों के सुख-दुख का भागी बनना चाहिए | विपत्ति के समय उनकी मदद करनी चाहिए और दूसरों के कष्टों का अनुभव अपने कष्ट समझ कर करना चाहिए |
(ग)मनुष्य को अपने पूर्वजों से क्या सीखना चाहिए ?
उत्तर –
मनुष्य को अपने पूर्वजों से जीने – मरने की कला सीखनी चाहिए |
(घ)‘आओ मिले सब देश बांधव हार बनकर देश का’ पंक्ति का क्या आशय है ?
उत्तर –
इस पंक्ति का आशय है कि सभी देशवासियों को भेद – भाव छोड़ कर एक हो जाना चाहिए |
(ड़) सांप्रदायिक भेदभाव के संबंध में कवि ने क्या कहा है ?
उत्तर –
कभी का कहना है कि हमें सांप्रदायिक भेदभाव मिटाकर परस्पर एक होकर रहना चाहिए |

(2)ले चल माँझी मँझधार मुझे , दे – दे बस अब पतवार मुझे |
इन लहरों के टकराने पर आता रह – रहकर प्यार मुझे |
मत रोक मुझे भयभीत न कर , मैं सदा कँटीली राह चला |
पथ – पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला |
फिर कहाँ डरा पाएगा , यह पगले जर्जर संसार मुझे |
इन लहरों के टकराने पर आता रह – रहकर प्यार मुझे |
मैं हूँ अपने मन का राजा , इस पार रहूँ , उस पार चलूँ |
मैं मस्त खिलाड़ी हूँ ऐसा जी चाहे जीतूँ , हार चलूँ |
मैं हूँ अबाध , अबिराम – अथक , बंधन मुझको स्वीकार नहीं |
कब रोक सकी मुझको चितवन , मदमाते कजरारे घन की |
कब लुभा सकी मुझको बरबस , मधु – मस्त फुहारें सावन की |
जो मचल उठे अनजाने ही अरमान नही मेरे ऐसे
राहों को समझा लेता हूँ सब बात सदा अपने मन की
इन उठती गिरती लहरों का कर लेने दो श्रंगार मुझे ,
इन लहरों के टकराने पर आता रह – रहकर प्यार मुझे |
प्रश्न
(क)‘मत रोक मुझे ………….. मधुमास पला’ पंक्तियों के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर –
कवि कहता है कि मुझे संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ने से न तो डराओ और न रोको क्योंकि पतझड़ के बाद जिस तरह से सुगंध बिखेरता बसंत आता है उसी तरह का बसंत मेरे जीवन में भी आएगा अर्थात संघर्षों के बाद ही सच्चा आनंद प्राप्त होगा |
(ख)‘मन का राजा’ कौन होता है तथा कवि ने अपने को मन का राजा क्यों कहा है ?
उत्तर –
जो व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण रखता है वही मन का राजा होता है | कवि को भी अपने मन पर नियंत्रण है अतः वह जहाँ भी रहे उसे सुख-दुख हार जीत किसी भी बात का भय नहीं लगता |
(ग)माँझी कौन होता है ?
उत्तर –
वह व्यक्ति जो नजर आता है उसे माँझी या नाविक कहते हैं |
(घ)कभी किसका श्रंगार करना चाहता है ?
उत्तर –
कवि उठती – गिरती लहरों का श्रंगार करना चाहता है |
(ड़) ‘श्रृंगार’ शब्द का वर्ण – विच्छेद कीजिए |
उत्तर –
वर्ण – विच्छेद – श + ऋ + अनुस्वार + ग + आ + र + अ

(3)मैं जब कभी अकेला होता हूँ मुझे मेरी मां का प्यारा याद आता है ,
सोचकर वक्त के उस दौर को मेरा रोम-रोम हर्षित हो जाता है |
याद आता है जब मां मेरी मुझे सप्रेम खिलाया करती थी ,
दुलारती हुई – सी वह मुझे गोदी में बिठाया करती थी ,
नाज नखरों को भी वह मेरे तब हँस – हँस के उठाया करती थी |
याद आता है जब कभी मैं रोता था , वह मुझे सीने से लगाया करती थी ,
बेटा मेरा शेर बनेगा , कहती हुई वह मुझे दूध पिलाया करती थी |
याद आता है जब कभी मैं डरता था , ममता भरे आँचल में वह मुझे छुपाया करती थी ,
और सुना मीठी लोरी वह मुझे प्यार से सुलाया करती थी |
याद आता है वह अंधेरा देख जिससे मैं घवराता था ,
दौड़ के फिर अपनी माँ से लिपट मैं जाता था ,
फेर हाथ सिर पर वह मेरे तब डर को दूर भगाया करती थी |
अब याद आता है , हर वह पल जब माँ की ममता में एक गहराई थी ,
माँ की आँचल की ठंडी छाँव में अपने बचपन की
अनमोल घड़ियाँ कुछ इस तरह मैंने बिताईं थी |
प्रश्न
(क)बचपन में कवि के नाज – नखरे उठाने के लिए मां क्या-क्या करती थी ?
उत्तर –
बचपन में नाज – नखरे उठाने के लिए कवि की मां उसे गोद में उठाया करती थी | गोद में उठाकर उसे प्रेम और दुलार करती थी तथा प्रेमपूर्वक खिलाया – पिलाया करती थी |
(ख)कवि जब रोता था तथा डरता था तब उसकी मां क्या-क्या करती थी ?
उत्तर –
बचपन में कवि जब रोता था तो उसकी मां उसे अपने सीने से लगा लेती थी तथा ‘मेरा बेटा शेर बनेगा’ ऐसा बोल कर उसे दूध पिलाया करती थी | इसके अलावा जब वह कभी डर जाता था तो मां उसे अपने आंचल में छुपा लेती थी और प्यार भरी लोरी सुनाया करती थी |
(ग)कवि को मां का प्यार कब याद आता है ?
उत्तर –
कवि जब भी अकेला होता है तब उसे अपनी मां का प्यार याद आता है |
(घ)‘मां की ममता में एक गहराई थी’ पंक्ति का अर्थ क्या है ?
उत्तर –
मां का प्यार मन की गहराइयों से निकलनेवाला होता था |
(ड़) ‘ठंडी – छाँव’ में ‘ठंडी’ किस प्रकार का पद है ?
उत्तर –
गुणवाचक विशेषण |

(4) मत काटो तुम ये पेड़ , है ये लज्जावसान
इस माँ वसुंधरा के , इस संहार के बाद
अशोक की तरह सचमुच , तुम बहुत पछताओगे
बोलो फिर किसकी गोद में सिर छिपाओगे
शीतल छाया फिर कहाँ से पाओगे ?
कहाँ से पाओगे फिर फल ?
कहाँ से मिलेगा
शस्य – श्यामला को सींचनेवाला जल ?
रेगिस्तानों में तब्दील हो जायेंगे खेत
बरसेंगे कहाँ से घुमड़कर बादल ?
थके हुए मुसाफिर
पायेंगे कहाँ से श्रमहारी छाया ?
भूल गये क्या ?
पेड़ कराते सब जीवो को मधुर – मधुर रसपान
पेड़ो से ही मिलती औषधि , नई पनपती जान |
अगर जमी पर पेड़ न होंगे , जीना दुभर हो जाएगा
त्राहि – त्राहि जन – जन में होगी
जीवन विषमय हो जायेगा |
प्रश्न
(क)‘लज्जावसन’ से क्या तात्पर्य है तथा कवि ने किसे , किसका लज्जावसन कहा है तथा क्यों ?
उत्तर –
लज्जावसन से तात्पर्य है वे वस्त्र जो किसी की लज्जा ढकने का कार्य करते हैं | कवि ने वृक्षों को धरती के लज्जवासन कहा है | जिस तरह लज्जावसन किसी नारी के शरीर का आवरण बनते हैं , उसी तरह वृक्ष प्रथ्वी को ढक लेते हैं |
(ख)वृक्ष काटे जाने के लिए क्या-क्या परिणाम सामने आते हैं ?
उत्तर –
वृक्ष काटे जाने पर शीतल छाया और फल नहीं मिलेंगे | वर्षा नहीं होगी तथा खेत रेगिस्तान में बदल जाएंगे | थके हुए मुसाफिरों को शीतल छाया नहीं मिल पाएगी |
(ग)कवि ने किस संहार की बात कही है ?
उत्तर –
कवि ने संहार शब्द का प्रयोग पेड़ पौधों को काटकर नष्ट किए जाने के लिए किया है |
(घ)यदि धरती पर वृक्ष नहीं होंगे तो क्या होगा ?
उत्तर –
यदि धरती पर वृक्ष नहीं होंगे तो जीना दूभर हो जाएगा तथा चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाएगी |
(ड़) काव्यांश का उचित शीर्षक दीजिए |
उत्तर –
शीर्षक – धरती के लज्जावसन – वृक्ष |

(5)धर्म का दीवट , दया का दीप ,
कब जलेगा , कब जलेगा विश्व में भगवान ?
कब सुकोमल ज्योति से अभिषिक्त ,
हाँ सरस होंगे , जली – सूखी रसा के प्राण |
है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार ,
पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार |
भोग – लिप्सा आज भी लहरा रहे उददाम
बुद्ध हों कि अशोक , गांधी हों कि ईशु महान |
सिर झुका सबको , सभी को श्रेष्ट निज से मान ,
मात्र वाचिक ही उन्हें देता हुआ सम्मान |
दग्ध कर पर को , स्वयं भी भोगता दुःख – दाह ,
जा रहा मानव चला अब भी पुरानी राह |
है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार ,
पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार |
भोग – लिप्सा आज भी लहरा रहे उददाम ,
बह रही असहाय नर की भावना निष्काम |
यह मनुज जो ज्ञान का आगार
यह मनुज जो सृष्टी का श्रृंगार
छदम इसकी कल्पना , पाखंड इसका ज्ञान
यह मनुष्य , मनुष्यता का घोरतम अपमान |
प्रश्न
(क) कवि काव्यांश की पहली दो पंक्तियों में ईश्वर से क्या पूछ रहा है ?
उत्तर –
पहली दो पंक्तियों में कवि ईश्वर से पूछ रहा है कि हे भगवान इस संसार में धर्म और दया का दीपक कब जागेगा अर्थात सारे विश्व में दया और धर्म का प्रचार कब होगा |
(ख)बुद्ध , अशोक , गांधी या ईसा मसीह के बाद भी अभी तक संसार की क्या स्थिति है ?
उत्तर –
महात्मा गौतम बुद्ध , सम्राट अशोक , महात्मा गांधी और ईसा मसीह के प्रयासों के बाद भी संसार उसी गति से चला आ रहा है | संसार आज भी पाप और बुराइयों से दग्ध हो रहा है | संसार में चारों ओर भोग और लिप्सा का बोलबाला है |
(ग)मानव आज भी कौन – सी पुरानी राह पर चलता चला जा रहा है ?
उत्तर –
आज भी मानव दूसरों को कष्ट देने और स्वयं कष्ट भोगनेवाली राह पर चल रहा है |
(घ)मनुष्य की कल्पना और ज्ञान किस तरह के हैं ?
उत्तर –
मनुष्य की कल्पना धोखा है और ज्ञान पाखंड है |
(ड़) ‘वाचिका’ शब्द का अर्थ क्या है ?
उत्तर –
जिसका संबंध वाणी से हो |

(6)अभी न होगा मेरा अंत
अभी – अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल बसंत अभी न होगा मेरा अंत |
हरे – हरे ये पात ,
डालियाँ ,कलियाँ , कोमल गात |
मैं भी अपना स्वप्न – मृदुल कर
फेरूंगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं ,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्स सींच दूँगा मैं ,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको ,
हैं मेरे वे जहाँ अनंत –
अभी न होगा मेरा अंत |
प्रश्न
(क)‘अभी-अभी ही तो आया है मेरे बन में मृदुल बसंत’ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर –
इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि उसका जीवन वन की तरह है जिस तरह बसंत के आने पर वन हरा – भरा और आकर्षक हो जाता है उसी तरह से कवि के जीवन में भी आनंद और उल्लास का अब आगमन हुआ है |
(ख)‘मैं ही अपना स्वप्न – मृदुल कर फेरूंगा निद्रित कलियों पर’ पंक्ति के माध्यम से कवि का क्या कहना चाहता है ?
उत्तर –
इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि उसके मन में कलियों की तरह जो मधुर भावनाएं सोंई पड़ी है उन पर अपने स्वप्न – मृदुल कर को फेरूंगा अर्थात उन भावनाओं को जागृत कर अपने सपनों को साकार करूँगा |
(ग)कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘अभी न होगा मेरा अंत’ ?
उत्तर –
कवि ने यह पंक्ति इसलिए कही है क्योंकि कवि के मन में जीवन के बसंत को भोगने के चाह विद्यमान है |
(घ)‘प्रत्युष’ शब्द का सही अर्थ क्या है ?
उत्तर –
प्रातः काल का समय |
(ड़) सोई कलियों को कवि कैसे जगाना चाहता है ?
उत्तर –
सोई हुई कलियों को कवि अपने हाथो के कोमल स्पर्श से जगाना चाहता है |

(7) देशप्रेम के ओ मतवालों , उनको भूल न जाना |
महाप्रलय की अग्नि – साध लेकर जो जग में आये ,
विश्व बली शासन के भय जिनके आगे मुरझाए |
चले गये जो शीश चढ़ाकर अघ्र्य लिए प्राणों का ,
चले मजारो पर हम उनके आज प्रदीप जलाएँ |
टूट गई बंधन की कड़ियाँ , स्वतंत्रता की बेला ,
लगता है मन आज हमे कितना अवसन्न अकेला |
पन्थ चिरन्तन बलिदानों का विप्लव ने पहचाना ,
देशप्रेम के ओ मतवालों , उनको भूल न जाना |
जीत गये हम , जीता विद्रोही अभिमान हमारा ,
प्राणदान विक्षुब्ध तरंगों को मिल गया किनारा |
उदित हुआ रवि स्वतंत्रता का व्योम उगलता जीवन ,
आजादी की आग अमर है , घोषित करता कण – कण ,
कलियों के अधरों पर पलते रहे विलासी कायर ,
उधर मृत्यु पैरों से बाँधें , रहा जूझता यौवन |
उस शहीद यौवन की सुधि हम क्षण भर को न बिसारें ,
उसके पगचिन्हों पर अपने मन के मोती वारें |
प्रश्न
(क)कवि देश प्रेम के मतवालों से किन लोगों को न भूल जाने की बात कह रहा है ?
उत्तर –
कवि देश प्रेमियों से कह रहा है कि कभी भी उन लोगों को मत भूल जाना जो ऐसी शक्ति लेकर जन्में जो महाप्रलय ला सकती थी और बड़े-बड़े शक्तिशाली लोग भी जिनके आगे फीके पड़ गए |
(ख)स्वतंत्रता प्राप्त हो जाने के बाद भी कवि का मन अबसन्नता और अकेलेपन का अनुभव क्यों कर रहा है ?
उत्तर –
देश स्वतंत्र हो गया , परतंत्रता की कड़ियां टूट गई , लेकिन कवि मन उन लोगों को याद करके अवसन्नता और अकेलेपन का अनुभव कर रहा है | जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया |
(ग)‘उधर मृत्यु पैरों से बांधे , रहा जूझता यौवन’ पंक्ति से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर –
इस पंक्ति से कवि का आशय है कि देशप्रेमी युवक निडर होकर मृत्यु से लड़ते रहें |
(घ) उक्त काव्यांश क्या संदेश देता है ?
उत्तर –
काव्यांश का संदेश है कि शहीदों के बलिदान को हमें कभी भी भूलना नहीं चाहिए |
(ड़) कवि किन लोगों के मजार पर दीप जलाने के लिए कह रहा है ?
उत्तर –
जिन लोगों ने देश के लिए अपना बलिदान दे दिया , उन लोगों के मजार पर दीप जलाने के लिए कह रहा है |

(8) हम जंग न होने देंगे !
विश्व शांति के हम साधक हैं ,
जंग ना होने देंगे !
कभी ना खेतों में फिर खूनी खाद फलेगी ,
खलियानों में नहीं मौत की फसल खिलेगी ,
आसमान फिर कभी न अंगारे उगलेगा ,
एटम से फिर नागासाकी नहीं जलेगी ,
युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे !
हथियारों के ढेरों पर है जिनका है डेरा ,
मुहं में शांति , बगल में बम , धोखे का फेरा
कफन बेचनेवालों से कह दो चिल्लाकर ,
दुनिया जान गई है उनका असली चेहरा ,
कामयाब हो उनकी चाले , ढंग न होने देंगे !
हमें चाहिए शांति , जिंदगी हमको प्यारी ,
हमें चाहिए शांति , सृजन की है तैयारी ,
हमने छेड़ी जंग भूख से , बीमारी से ,
आगे आकर हाथ बटाएं दुनिया सारी ,
हरी भरी धरती को खूनी रंग न लेने देंगे |
प्रश्न
(क)यदि जंग नहीं होगी तो क्या – क्या घटित होगा ?
उत्तर –
खेत खलियानों में फसल उगेगी हुए न कि बेकसूर लोगों का रक्त बहेगा | आसमान से अग्नि वर्षा नहीं होगी और न ही कोई नागासाकी की तरह एटमबम से विध्वंस होगा |
(ख)कवि ने किन लोगों की कौन – सी चाल कामयाब न होने देने की बात कविता में कही है ?
उत्तर –
ऐसे देश जो हथियारों का जखीरा जमा करते रहते हैं और ऊपर से शांति की बात करते हैं और जिनके अंदर धोखेबाजी भरी हुई है | उनकी चाल सफल नहीं होने देंगे ऐसे लोग मौत के सौदागर हैं जो नहीं चाहते कि विश्व में शांति स्थापित हो |
(ग)‘खलिहान में नहीं मौत की फसल खिलेगी’ पंक्ति का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर –
इस पंक्ति का आशय है कि युद्ध अपार जन संहार का कारण नहीं बनेगा |
(घ)प्रस्तुत काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक क्या होना चाहिए ?
उत्तर –
शीर्षक – हम जंग ना होने देंगे
(ड़) विश्व शांति के हम साधक हैं पंक्ति में कवि ने किसे विश्व शांति पर साधक बताया है ?
उत्तर –
कवि ने भारतवासियों को विश्व शांति का साधक बनाया है |

(9)जिसके निमित्त तप – त्याग किये , हँसते – हँसते बलिदान दिए ,
कारागारों में कष्ट सहे , दुर्दमन नीति ने देह दहे ,
घर – बार और परिवार मिटे , नर – नारी पिटे , बाजार लुटे
आई , पाई वह ‘स्वतन्त्रता’ , पर सुख से नेह न नाता है –
क्या यही ‘स्वराज्य’ कहलाता है !
सुख , सुविधा , समता पायेंगे , सब सत्य – स्नेह सरसायेंगे ,
तब भ्रष्टाचार नही होगा , अनुचित व्यवहार नही होगा ,
जन – नायक यही बताते थे , दे – दे दलील समझाते थे ,
वे व्यर्थ हुई बीती बातें , जिनका अब पता न पाता है |
क्या यही ‘स्वराज्य’ कहलाता है !
शुचि , स्नेह , अहिंसा , सत्य , कर्म , बतलाये ‘बापू’ ने सुधर्म ,
जो बिना धर्म की राजनीति , उसको कहते थे वे अनीति ,
अब गांधीवाद बिसार दिया , सदभाव , त्याग , तप मार दिया ,
व्यवसाय वन गया देशप्रेम , खुल गया स्वार्थ का खाता है –
क्या यही ‘स्वराज्य’ कहलाता है !
प्रश्न
(क)स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए देशवासियों ने क्या-क्या किया ? पहले पद के आधार पर उत्तर दीजिए |
उत्तर –
जनता के लिए लोगों ने अपना सर्वस्व त्याग दिया और प्रसन्नतापूर्वक अपना बलिदान दे दिया उन्हें कारागारों में डाला गया जहां उन्हें भयंकर यातनाएं दी गई | इसके अलावा न जाने कितने नर – नारी , और परिवार समाप्त हो गए |
(ख)स्वतंत्रता से पहले जननायक लोगों को क्या कहते थे ?
उत्तर –
स्वतन्त्रता से पहले जननायक लोगों को तरह-तरह की दलीलें देकर यह बताते थे कि स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद सब लोग सुखी होंगे , सबके समान अधिकार होंगे देश में कहीं भी भ्रष्टाचार नहीं होगा और किसी के साथ कोई भी अनुचित व्यवहार नहीं किया जाएगा |
(ग)‘वे व्यर्थ हुई बीती बातें जिनका अब पता न पाता है’ पंक्ति से लेखक का क्या आशय है ?
उत्तर –
स्वतंत्रता से पूर्व लोग जो सोचते थे , स्वतंत्रता के बाद वैसा कुछ नहीं हुआ | न सुख शांति स्थापित हुई न भाई चारा बढ़ा | सारी बातें व्यर्थ हो गई |
(घ)गांधीजी ने सुधर्म के अंतर्गत किन – किन बातों का उल्लेख किया था ?
उत्तर –
गांधी जी ने सुधर्म के अंतर्गत शुचिता , प्रेम , सत्य , अहिंसा , अच्छा कर्म आदि सद्गुणों का उल्लेख किया |
(ड़) ‘क्या यही स्वराज्य कहलाता है’ पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है ?
उत्तर –
देश में स्वतंत्रता के बाद जो कुछ हुआ , गांधीवाद की हत्या हुई , भ्रष्टाचार , भाई – भतीजावाद बड़ा सब लोग स्वार्थ में डूब गए अर्थात वह सब कुछ नहीं हुआ जिसकी चर्चा हमारे जननायक करते थे | इसी पर कवि ने व्यंग्य किया है |

(10) पहले से कुछ लिखा भाग्य में
मनुज नहीं लाया है ,
अपना सुख उसने अपने
भुजबल से ही पाया है |
प्रकृति नहीं डरकर झुकती है
कभी भाग्य के बल से
सदा हारती वह मनुष्य के ,
उद्यम से श्रमजल से |
ब्रह्मा का अभिलेख –
पड़ा करते निरुद्धयमी प्राणी
धोते वीर कु – अंक भाल का
बहा ध्रुवों से पानी |
भाग्यवाद आवरण पाप का
और शस्त्र शोषण का ,
जिससे रखता दवा का एक जन
भाग दूसरे जन का |
पूछो किसी भाग्यवादी से ,
यदि विधि अंक – प्रबल है ,
पद पर क्यों देती न स्वयं
वसुधा निज रतन उगल है ?
सच पूछो तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
संधि वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की |
सहनशीलता , क्षमा , दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है |
प्रश्न
(क)‘पहले से ……… भुजबल से ही पाया है’ पद में कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर –
कवि कहना चाहता है कि मनुष्य को उसके जीवन में जो सुख – सुविधाएं प्राप्त होती हैं | वह उसके भाग्य से नहीं मिली है | सभी सुख सुविधाएं व्यक्ति अपने परिश्रम से अर्जित करता है |
(ख)भाग्यवाद क्या है तथा कवि ने उसे शोषण शस्त्र क्यों कहा है ?
उत्तर –
जो लोग कर्म नहीं करते और भाग्य के सहारे जीते हैं , वे भाग्यवादी कहलाते हैं | वे मानते हैं कि जीवन में उन्हें उतना ही मिलेगा जितना उनके भाग्य में है | पर कवि इस बात का खंडन करते हुए भाग्यवाद को पाप का आवरण और शोषण का शस्त्र बताते हैं | भाग्यवाद के नाम पर ही अमीर गरीब का शोषण करता है | एक व्यक्ति दूसरे के हक मार लेता है |
(ग)‘ब्रह्मा का अभिलेख’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर –
ब्रह्मा का अभिलेख अर्थात भाग्य का लिख हुआ या पूर्व निर्धारित |
(घ)‘शर में ही बसती है दीप्ति विनय की’ पंक्ति के माध्यम से कवि का क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर –
कवि कहना चाहते हैं कि विनयशीलता का गुण शक्ति – संपन्न व्यक्ति को ही शोभा देता है , किसी कमजोर को नहीं |
(ड़) उक्त काव्यांश का मूल संदेश क्या है ?
उत्तर –
मनुष्य को भाग्य के भरोसे रह कर कर्म के भरोसे जीवन यापन करना चाहिए |

(11) विघ्नों का दल चढ़ आए तो , उन्हें देख भयभीत न होगे |
अब न रहेंगे दलित दिन हम , कहीं किसी से हीन न होंगे |
क्षुद्र स्वार्थ की खातिर हम तो कभी न गर्रित कर्म करेंगे |
पुण्यभूमि यह भारत माता , जग की हम तो भीख न लेंगे |
मिश्री -मधु – मेवा – फल सारे , देती हमको सदा यही है |
कदली , चावल , अन्य विविध औ , क्षीर सुदामय लुटा रही है |
आर्यभूमि उत्कर्षमयी यह , गूंजेगा यह गान हमारा |
कौन करेगा समता इसकी , महिमामय यह देश हमारा |
हम शकारी विक्रमादित्य हैं , अरीदल को दलने वाले
रण में जमी नहीं , दुश्मन की लाशों पर चलने वाले
हम अर्जुन हम भीम शांति के लिए जगत में जीते हैं
मगर शत्रु हट करें अगर तो , लहू वक्ष का पीते हैं
हम हैं शिवा प्रताप रोटियां भले घास की खाएंगे
मगर किसी जुल्मी के आगे मस्तक नहीं झुकाएंगे |
प्रश्न
(क)‘विघ्नों का दल ……….भीख न लेंगे’ पंक्तियों में कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर –
कवि कहना चाहता है कि यदि हमारी प्रगति के रास्ते में विघ्न भी आ जाए तो भी हम डरेंगे नहीं , साथ ही स्वयं को दिन – हीन नहीं समझेंगे | इसके अलावा स्वार्थवश कोई गलत कार्य नहीं करेंगे तथा किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएंगे |
(ख)हमारी भारत माता हमें क्या-क्या देती है ?
उत्तर –
हमारी भारत माता हमें फल , मेवा , मिश्री , मधु , अन्य चावल , केला आदि अनेक वस्तुएं हमें देती है |
(ग)हमारा कौन – सा गान गूँजेगा ?
उत्तर –
हमारी मात्रभूमि उत्कर्षमयी आर्यभूमि है , यह गान गूँजेगा |
(घ)‘हम अर्जुन , हम भीम शांति के लिए जगत में जीते हैं’ – पंक्ति का क्या आशय है ?
उत्तर –
यद्यपि हम अर्जुन भीम की तरह शक्तिशाली है तथापि हम विश्व में शान्ति के लिए जीवित रहते हैं , युद्ध नहीं करते |
(ड़) अंतिम दोनों पंक्तियों के माध्यम से कवि विश्व को क्या संदेश देना चाहता है ?
उत्तर –
हम भारतवासी आत्मसम्मान के लिए जीनेवाले लोग हैं | भले ही भूखा रहना पड़े , घास की रोटियां खानी पड़े , लेकिन किसी भी अत्याचारी के आगे मस्तक नहीं झुकाएंगे |

(12) शीश पर मंगल कलश रख
भूलकर जन के सभी दुख
चाहते हो तो मना लो जन्मदिन के वतन का |
जो उदासी है हृदय पर
वह उभर आती समय पर
पेट की रोटी जुटाओ
रेशमी झंडा उड़ाओ
ध्यान तो रखो मगर उस अधफटे नंगे बदन का |
तन कहीं पर , मन कहीं पर ,
धन कहीं , निर्धन कहीं पर
फूल की ऐसी विदाई ,
शूल को आती रुलाई ,
आंधियों के साथ जैसे हो रहा सौदा चमन का |
आग ठंडी हो , गरम हो
तोड़ देती है ,भरम को
क्रांति है आनी किसी दिन
आदमी घड़ियाँ रहा गिन
राख कर देता सभी कुछ अधजला दीपक भवन का
जन्म – दिन भूखे वतन का |
प्रश्न
(क)‘शीश पर ……… भूखे वतन का’ – पंक्तियों के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर –
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि गरीब और लाचार देशवासियों के दुखों को भूलकर देश में उत्सव मनाना शोभा नहीं देता |
(ख)‘राख कर देता सभी कुछ अधजला दीपक भवन का’ – पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर –
लोगों के मन में अंदर ही अंदर अग्नि धधक रही है जो एक दिन क्रांति लाएगी | लोगों के दिलों में यह अग्नि अधजले दीपक के समान है जो सब कुछ राख कर देगी |
(ग)‘आँधियों के साथ जैसे हो रहा सौदा चमन का’ – पंक्ति का क्या आशय है ?
उत्तर –
पंक्ति का आशय है कि देश की जनता दुखों और आपदाओं से समझौता कर रही है |
(घ)‘आग ठंडी हो या गर्म हो’ का प्रतीकार्थ क्या है ?
उत्तर –
प्रतीकार्थ है – ‘क्रांति शिथिल हो या उग्र’ |
(ड़) ‘अधजला दीपक’ पदबंध में रेखांकित पद का भेद क्या है ?
उत्तर –
‘विशेषण पद’ |

(13)बहती रहने दो मेरी धमनियों में
जन्म दात्री मिट्टी की गंध
मानवीय संवेदना हो की पावनी गंगा ,
सदा सदा को वंचित रह सकने वाले
पसीने की खारी युमना |
शपथ खाने दो मुझे
केवल उस मिट्टी की
जो मेरे प्राणों की आदि है
मध्य है ,
अंत है |
सिर झुकाओ मेरा
केवल उस स्वतंत्र वायु के सम्मुख
जो विश्व का गरल पीकर भी
बहता है
पवित्र करने को कण – कण |
क्योंकि
मैं जी सकता हूँ
केवल उस मिटटी के लिए ,
केवल उस वायु के लिए
और उन पर्वतों के लिए
जो बनकर खड़े हैं अंगरक्षक
मेरे देश के
क्योकि
मैं मात्र साँस लेती
खाल होना नही चाहता |
प्रश्न
(क)‘बहती रहने दो मेरी धमनियों में जन्म दात्री मिट्टी की गंद’ – पंक्ति के माध्यम से कवि ने किस भावना को प्रकट कर रहा है ?
उत्तर
– इस पंक्ति के अंतर्गत कवि अपनी मातृभूमि के प्रति अपने हृदय के उद्गार व्यक्त कर रहा है | वह चाहता है कि उसकी धमनियों में मातृभूमि की मिट्टी की गंध बहती रहे अर्थात मातृभूमि का प्रेम उसकी रग – रग में भर जाए |
(ख)कवि किस मिट्टी , वायु और पर्वतों के लिए जीवित रहना चाहता है तथा क्यों ?
उत्तर –
कवि केवल उस मिट्टी , वायु और पर्वतों के लिए जीवित रहना चाहता है जो उसके देश के अंगरक्षक बन के खड़े हो क्योंकि कवि के मन में राष्ट्रभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है |
(ग)‘मानवीय संवेदना की पावनी गंगा’ – पंक्ति से कवि का क्या मंतव्य है ?
उत्तर –
इस पंक्ति का आशय है – ‘देशवासियों के दुख – सुख की सहज अनुभूति’ |
(घ)‘मात्र साँस लेती खाल’ का अर्थ क्या है ?
उत्तर –
निरुद्धेश्य जीवन |
(ड़) ‘अंगरक्षक’ शब्द का स्त्रीलिंग रूप लिखिए |
उत्तर –
अंगरक्षिका |

(14) देखकर बाधा विविध , बहु विघ्न घबराते नही |
रह भरोसे भाग के दुःख भोग पछताते नही |
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं ,
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं |
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले ,
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले – फले |
चिलचिलाती धूप को जो चांदनी देवें बना ,
काम पड़ने पर करें जो शेर का भी सामना |
जो की हँस – हँस के चबा लेते हैं लोहे का चना ,
है कठिन कुछ भी नहीं जिनके है जी में यह ठना |
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं
काम करने की जगह बातें बनाते है नहीं |
आज , कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं ,
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं |
बात है वह कौन जो होती नही उनके लिए
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए |
प्रश्न
(क)सर्वत्र सब कालों में किस तरह के लोग फले – फूले मिलते हैं ?
उत्तर –
जो लोग विभिन्न विघ्न और बाधाओं को देखकर घबराते नहीं हैं , भाग्य के भरोसे रहकर मिलने वाले दुखों पर पछताते नहीं हैं , कठिन से कठिन काम को करते समय परेशान नहीं होते तथा भीड़ में चंचल नहीं होते , ऐसे ही लोग हमेशा फलते – फूलते रहते हैं |
(ख)कौन – से लोग दूसरों के लिए नमूना बन जाते हैं ?
उत्तर –
वे लोग जो आज – कल करते हुए अपना समय बर्बाद नहीं करते , कोशिश करने से जी नहीं चुराते , काम करने के स्थान पर बातें नहीं बनाते , ऐसे लोग ही दूसरों के लिए नमूना बन जाते हैं |
(ग)दुख पड़ने पर कौन लोग नहीं घबराते ?1
उत्तर –
जिन्हें अपने परिश्रम पर भरोसा होता है वे दुःख पड़ने पर नहीं घबराते |
(घ)धूप को चांदनी बना देने से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर –
कठिनाइयों को सरल बना देना |
(ड़) लोहे के चने चबाना मुहावरे का अर्थ स्पष्ट कीजिए |
उत्तर –
बहुत कठिन कार्य करना |

(15) हर संध्या को इसकी छाया सागर सी लंबी होती है
हर सुबह वही फिर गंगा की चादर सी लंबी होती है
इसकी छाया में रंग गहरा
है देश हरा , परदेश हरा ,
हर मौसम है संदेश – भरा
इसका पद – तल छूने वाला वेदों की गाथा गाता है
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है
जैसा यह अटल ,अडिग – अविचल वैसे ही है भारतवासी
है अमर हिमालय धरती पर , तो भारतवासी अविनाशी
कोई क्या हम को ललकारे
हम कभी न हिंसा से हारे
दुख देकर हमको क्या मारे
गंगा का जल जो भी पी ले , वह दुख में भी मुस्काता है
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है |
प्रश्न
(क)गिरिराज हिमालय से भारत का नाता किस प्रकार का है ?
उत्तर –
भारत हिमालय की तलहटी (पदतल) में बसा हुआ है | यह वही स्थान है जहां वैदिक साहित्य रचा गया | वह वैदिक साहित्य जिसका सारा विश्व सम्मान करता है | हिमालय का भारत के साथ इसी प्रकार का संबंध है |
(ख)काव्यांश के दूसरे पद् में कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर –
जिस तरह हिमालय अचल , अडिग और अविचल है , उसी तरह के भारतवासी भी हैं | इस धरती पर हिमालय हमारी रक्षा करता है | अतः हमारा कोई विनाश नहीं कर सकता | हम किसी की ललकार और हिंसा से नहीं डरते | हम भारतीय तो वे लोग हैं जो गंगा के पवित्र जल को पीकर अपने दुखों में मुस्कुराते रहते हैं |
(ग)हिमालय तथा भारतवासियों के कौन-कौन से गुण समान हैं ?
उत्तर –
भारतवासी भी हिमालय की तरह अटल , अडिग और अविचल है |
(घ)‘गंगाजल पीने वाला व्यक्ति दुखों में भी मुस्कुराता है’ – इस कथन से गंगाजल के किस गुण का पता चलता है ?
उत्तर –
गंगाजल पवित्र है और उसका पान आत्मतुष्टि देता है |
(ड़) प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए |
उत्तर –
शीर्षक : गिरिराज हिमालय |

(16)प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ ?
सात साल की बच्ची का पिता तो है !
सामने गीयर से ऊपर
हुक से लटका रखी है
कांच की चार गुलाबी चूड़ियां |
बस की रफ्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका |
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रौबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला – हाँ सा ’ ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया |
टांगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहां अब्बा की नजरों के सामने
मैं भी सोचता हूं
क्या बिगाड़ती है चूड़ियां
किस जुर्म पे हटा दूँ इनको यहां से ?”
और ड्राइवर ने एक नजर मुझे देखा
और मैंने एक नजर उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आंखों में
तरलता हावी थी सीधे-सीधे प्रशन पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गई सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा
“हां भाई, मैं भी पिता हूं
वह तो बस यूं ही पूछ लिया आपसे
वरना किसे नहीं भाएँगी
नन्ही कलाइयों की गुलाबी चूड़ियां |
प्रश्न
(क)‘प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ ? सात साल की बच्ची का पिता तो है !’ – पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर –
यदि कोई प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो निश्चित ही गरीब और मेहनती होगा | ड्राइवर हुआ तो क्या हुआ , वह सात वर्ष की बच्ची का पिता भी है अर्थात वह एक जिम्मेदार व्यक्ति है जो अपनी बच्ची को बहुत प्रेम करता है | ड्राइवर की नौकरी वह अपनी बच्ची के लालन-पालन के लिए ही कर रहा है |
(ख)गीयर के ऊपर लटकी गुलाबी चूड़ियां किसकी है तथा ड्राइवर ने उन्हें वहां क्यों लटका रखा है ?
उत्तर –
ड्राइवर ने अपनी सीट के सामने गीयर से ऊपर एक हुक में अपनी सात साल की बेटी की चार गुलाबी चूड़ियाँ लटका रखी हैं जो बस की रफ्तार के अनुसार हिलती रहती हैं | ये चूड़ियाँ एक पिता को अपनी बेटी के हमेशा साथ होने का एहसास कराती रहती हैं |
(ग)कवि को ड्राइवर की आंखों में क्या दिखाई दिया ?
उत्तर –
वात्सल्य की भावना और आंखों में नमी |
(घ)कविता में कौन – सा मूल भाव व्यक्त किया गया है ?
उत्तर –
वात्सल्य का भाव |
(ड़) वात्सल्य को ‘दूधिया’ कहने से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर –
जिस तरह से दूध शुद्ध और निर्मल होता है उसी तरह एक पिता अपनी पुत्री के प्रति प्रेम भी शुद्ध और निर्मल होता है | अतः कवि ने वात्सल्य को दूधिया कहा है |

(17) जिस पर गिरकर उदर – दरी से तुमने जन्म लिया है
जिसका खाकर अन्न , सुधा – सम नीर – समीर पिया है |
वह स्नेह की मूर्ती दयामयी माता – तुल्य मही है
उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नही है ?
पैदा कर जिस देश जाति ने तुमको पाला पोसा |
किये हुए है वह निज हित का तुमसे बड़ा भरोसा
उससे होना उऋण प्रथम है सत्कर्तव्य तुम्हारा
फिर दे सकते हो वसुधा को शेष स्वजीवन सारा |
प्रश्न
(क)पृथ्वी किसके समान है तथा क्यों ?
उत्तर –
कवि ने पृथ्वी को स्नेह की मूर्ति दयामयी माता के समान बताया है क्योंकि मां के पेट से जन्म लेने के बाद व्यक्ति का लालन-पालन इस धरा पर ही होता है | वही हर एक को अन्न – जल उपलब्ध कराती है |
(ख)व्यक्ति को देश के प्रति अपना जीवन क्यों अर्पित कर देना चाहिए ?
उत्तर
– जन्म लेने के बाद व्यक्ति का लालन-पालन देश – जाति के लोगों के बीच होता है | अतः उसके मानसिक और भौतिक विकास का कारण देश ही है | जीवन समर्पित करके ही व्यक्ति अपनी मातृभूमि का ऋण चुका सकता है |
(ग)कवि ने मातृभूमि के प्रति किस कर्तव्य का स्मरण कराया है ?
उत्तर –
कवि ने दायित्वों के निर्वाह का स्मरण कराया है |
(घ)मनुष्य का सत्कर्तव्य क्या है ?
उत्तर –
मातृभूमि ने हमे जो कुछ दिया है , उसका ऋण चुकाना ही सत्कर्तव्य है |
(ड़) कविता में पृथ्वी के दो पर्याय शब्दो का प्रयोग हुआ है उन्हें छांट कर लिखिए |
उत्तर –
मही तथा वसुधा |