अलंकार की परिभाषा- Definition of Alankar
भाषा के सौंदर्य को प्रस्तुत करने के लिए जो शब्द या शब्द समूह प्रयोग में लाये जाए हैं उनको अलंकार कहा जाता है.
Alankar Kise Kahate Hain – अलंकार शब्द अर्थ
अलंकार शब्द की रचना दो शब्दों के मेल से हुई है – ‘अलं’ तथा ‘कार’ . ‘अलं’ का अर्थ है – ‘शोभा’ या ‘सौन्दर्य’. ‘कार’ शब्द ‘कर’ धातु से बना रूप है , जिसका अर्थ है – ‘करनेवाला’. इस तरह अलंकार शब्द का अर्थ हुआ – ‘शोभा करनेवाले’ आप इस को भी Alankar ki Paribhasha का दर्जा दे सकते हैं.
संस्कृत के अलंकारवादी आचार्य ;जैसे – भामा , दंडी , रुद्रट आदि ने अलंकारों को इसी अर्थ में लिया है कि अलंकार ‘शोभा करनेवाले धर्म हैं , न कि शोभा बढ़ानेवाले’.
‘अलंकार’ असुन्दर को भी सुंदर कर देते हैं
अलंकारवादी आचार्य जो ‘अलंकार’ को ही काव्य की आत्मा मानते थे , उनका कहना तो यही था कि ‘अलंकार’ असुन्दर को भी सुंदर कर देते हैं , केवल सुन्दरता बढ़ाने का काम नहीं करते. इसीलिये उन्होंने अलंकारों को ‘शोभा करान धर्मः’ या ‘अलं करोतीति अलंकारः’ कहा था.
Alankar in Hindi Grammar- काव्य में शोभा वर्धन
‘काव्य में शोभा वर्धन करने वाले धर्म अलंकार हैं. ’ ये कविता में ‘चमत्कार’ पैदा कर देते हैं . ‘चमत्कार’ शब्द का अर्थ भी यहाँ समझ लेना उपयुक्त होगा . ‘चमत’ शब्द का अर्थ है – ‘बिजली’ और ‘कार’ के अर्थ से आप परिचित हो ही चुके हैं. गरजते काले बादलों के बीच ‘बिजली’ चमकती है और हमारा मन मोहित कर लेती है , उसी तरह काव्य में अलंकार भी बिजली जैसी चमक या प्रकाश – सौन्दर्य पैदा कर हमारे मन को अपनी ओर खींच लेती है . अब तक आपको समझ में आ गया होगा कि अलंकार किसे कहते हैं और Alankar Kise Kahate Hain.
Alankar ki Paribhasha को समझने के बाद अब समझते हैं कि भाषा के प्रधान तत्त्व क्या होते हैं-
भाषा के प्रधान तत्त्व
भाषा में दो ही तत्व प्रधान होते हैं – ‘अर्थ’ एवं ‘अभिव्यक्ति’ . अभिव्यक्ति के स्तर पर शब्दों तथा शब्दों से बने पद और पदबंधो का महत्त्व होता है , तो अर्थ भाषा की आंतरिक वस्तु है . अलंकारवादी आचार्यों ने जब ‘अलंकारों’ को काव्य की आत्मा घोषित किया , तो उन्होंने ‘अलंकार’ के क्षेत्र में एक – एक वर्ण से बने शब्दों के सौन्दर्य से लेकर अर्थ से उत्पन्न होनेवाली समस्त सौन्दर्य – छटाओं को सम्मिलित कर लिया और अलंकारों के दो भेद किये –
अलंकार के भेद- Alankar Ke Bhed
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
यों तो दोनों वर्गों के अन्तर्गत आनेवाले अलंकारों की संख्या सैकड़ो में है , लेकिन कक्षा 9 के पाठ्यक्रम में निम्नलिखित शब्दालंकारों एवं अर्थालंकारों को रखा गया है Alankar ke Prakar–
शब्दालंकार :
- अनुप्रास
- यमक
- श्लेष
अर्थालंकार: उपमा
- रूपक
- उत्प्रेक्षा
- अतिशयोक्ति
- मानवीकरण
आइये अब विस्तार में Alankar Ke Bhed के विषय में जानते हैं सबसे पहले हम शब्दा लंकारों की चर्चा करेंगे|
शब्दालंकार
काव्य में जहाँ शब्दों के विशिष्ट प्रयोग से चमत्कार उत्पन्न होता है , वहाँ ‘शब्दालंकारों’ की सत्ता होती है | शब्दालंकारों का अस्तित्व शब्द – विशेष के कारण होता है |
शब्दालंकार के उदाहरण
यदि किसी शब्द – विशेष के स्थान पर कोई अन्य समानार्थी शब्द रख दिया जाए तो ‘चमत्कार’ समाप्त हो जाता है | उदाहरण के लिए , वर को छोड़ और वर ले लो पंक्ति में ‘वर’ शब्द के दो बार प्रयोग करने से चमत्कार उत्पन्न हुआ है | यहाँ पहले ‘वर’ शब्द का अर्थ है – ‘पति’ तथा दूसरे ‘वर’ का अर्थ है – ‘वरदान’ |
इस पंक्ति का संबंध ‘सावित्री’ की कथा के उस प्रसंग से है , जहाँ यमराज सावित्री के पति सत्यवान के प्राण लेकर जा रहे हैं और वह अपने पति के प्राण लौटाने का अनुरोध कर रही है | यमराज कह रहे हैं कि वर (पति) को छोड़कर तुम कोई भी वर (वरदान) माँग लो | यहाँ यदि पहले ‘वर’ के स्थान पर समानार्थी शब्द ‘पति’ रख दिया जाए और कहा जाए ‘पति को छोड़ और वर ले लो’ तो कविता के जिस चमत्कार को कवि उत्पन्न करना चाहता है , समाप्त हो जाता है |उपरोक्त भाग से आपको Alankar ke Prakar समझने में आसानी का अनुभव हुआ होगा.
शब्दालंकार के भेद- अलंकार के भेद
अनुप्रास अलंकार
अनुप्रास के अन्तर्गत आचार्यों ने शब्द की रचना करनेवाले ‘वर्णों’ के प्रयोग से उत्पन्न सौन्दर्य या चमत्कार को लिया है .
किसी कविता में समान वर्णों की यदि आवृत्ति होती है या समान वर्ण बार – बार आते हैं , तो वहाँ ‘अनुप्रास अलंकार’ होता है .
वर्णों की आवृत्ति शब्दों के आरंभिक वर्णों के रूप में , मध्य के वर्णों के रूप में या अंत के वर्णों के रूप में अर्थात किसी भी रूप में हो सकती है . उदाहरण देखिये –
अनुप्रास अलंकार के उदहारण (Examples of Anupras Alankar )
शब्द के आरंभिक वर्णों में आवृत्ति
- मोर मुकुट मकराकृत कुंडल , अरुन तिलक दिए भाल (‘म’ वर्ण की आवृत्ति)
- कल कानन कुंडल मोर पखा , उर पै बनमाल बिराजत है (‘क’ तथा ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति)
- तरिन तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए (‘त’ वर्ण की आवृत्ति)
- कालिंदी कूल कदंब की डारन (‘क’ वर्ण की आवृत्ति)
- रघुपति राघव राजा राम (‘र’ वर्ण की आवृत्ति)
- सुरभित सुंदर सुखद सुमन तुझ पर लिखते हैं (‘स’ वर्ण की आवृत्ति)
- सठ सुधरहिं सत संगति पाई (‘स’ वर्ण की आवृत्ति)
- मुदित महीपति मन्दिर आए | सेवक सचिव सुमंत बुलाए |(‘म’ तथा ‘स’ वर्ण की आवृत्ति)
- प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं (‘म’ वर्ण की आवृत्ति)
शब्द के मध्य के वर्णों में आवृत्ति- Alankar ke Udaharan
- छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की (‘र’ वर्ण की आवृत्ति)
Examples of Anupras Alankar – अनुप्रास अलंकार के उदहारण
शब्द के अंतिम वर्णों में आवृत्ति
- छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की (‘ट’ वर्ण की आवृत्ति)
- कंकन , किंकिन , नुपुर धुनि , सुनि (‘न’ वर्ण की आवृत्ति)
- जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति होई (‘र’ वर्ण की आवृत्ति)
- मन क्रम वचन ध्यान जो लावै (‘न’ वर्ण की आवृत्ति)
- संकट कटै मिटै सब पीरा (‘ट’ वर्ण तथा ‘ए’ वर्ण की आवृत्ति)
- सुख दुःख अपने बंधुओ का आप अपना मान लो (‘ख’ वर्ण की आवृत्ति)
अन्य मिश्रित उदाहरण- Alankar ke Udaharan
मिश्रित उदाहरणों में वर्णों की आवृत्ति आदि , मध्य और अंत कहीं भी हो सकती है ; जैसे –
- चाहे जहाँ जाकर रहे जीवित न तू रह पायेगा
- जग में सचर – अचर जितने हैं , सारे कर्म निरत हैं
- रवि जग में शोभा सरसता सोम सुधा बरसता
- जिस पर गिरकर उदर दरी से तुमने जन्म लिया है |
- समदरसी है नाम तुम्हारौ , सोई पार करौ
- जाकी कृपा पंगु गिर लंधै , अंधे कौ सब कुछ दरसाई
यमक अलंकार
अनुप्रास अलंकार में जहाँ वर्णों का ‘चमत्कार’ प्रधान होता है , वहीं ‘यमक’ में शब्दों का |
जहाँ एक शब्द की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है और हर बार उसका अर्थ भिन्न होता है , वहाँ ‘यमक अलंकार’ होता है.
आरंभ में वर को छोड़ और वर ले लो में ‘वर’ शब्द यमक अलंकार का ही उदाहरण है.
Examples of Yamak Alankar यमक अलंकार के उदाहरण –
- बापू को कर नित दूर – दूर
हर बरस , बरस दिन आता है.
यहाँ प्रथम ‘बरस’ शब्द का अर्थ है – ‘वर्ष / साल’ तथा दूसरे ‘बरस’ शब्द का अर्थ है ‘मृत्यु’ तथा ‘बरस दिन’ का अर्थ है – ‘मृत्यु दिवस’ , अतः यहाँ ‘यमक अलंकार’ है.
- माला फेरत जुग भया , गया न मन का फेर |
कर का मनका डारिके , मन का मनका फेर ||
यहाँ ‘कर का मनका ….. मनका फेर’ पंक्ति में मनका शब्द दो बार आया है . पहले ‘मनका’ का अर्थ है – ‘मन का’ या ‘माला का दाना’ , दूसरे ‘मनका’ का अर्थ है – ‘ह्रदय का’ अर्थात पूरी पंक्ति में कवि कह रहा है कि ‘कर का मनका’ (हाथ की माला) को फेंक दे तथा ‘मन का मनका’ (मन की / ह्रदय की माला) का जाप कर. अतः यह ‘यमक अलंकार’ का उदाहरण है .
- कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय |
या खाए बौरात है , वा पाए बौराए ||
यहाँ ‘कनक’ शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है. पहले ‘कनक’ का अर्थ है – ‘धतूरा’ तथा दूसरे का अर्थ है – ‘सोना’. पंक्ति का अर्थ है कि पहले ‘कनक’ (धतूरा) की तुलना में दूसरे ‘कनक’ (सोना) में सौगुनी मादकता है क्योंकि पहले अर्थात धतूरे को व्यक्ति खाकर पागल होता है , पर सोने अर्थात धन – संपत्ति को तो पाकर ही पागल हो जाता है.
- ‘तीन बेर खाती थीं वे तीन बेर खाती हैं’
यहाँ पहले ‘बेर’ का अर्थ ‘बेर’ (फल) है और दूसरे ‘बेर’ का अर्थ ‘बार’ है. पंक्ति का अर्थ है कि वह केवल ‘तीन बेर फल (विशेष) तीन बार खाती है.’
- काली घटा का घमंड घटा नभतारक मंडल वृंद खिले’
यहाँ ‘घटा’ शब्द पर यमक अलंकार है. पहली ‘घटा’ शब्द का अर्थ है – ‘काले बादलों की घटा’ तथा दूसरी घटा का अर्थ है – ‘कम हुआ’. पंक्ति का अर्थ है कि जब आकाश में ‘तारा – मंडल’ उदित हुआ , तो ‘काली घटा’ का घमंड घट गया.
- ‘तू मोहन के उरबसी , है उरबसी समान |’
पहले ‘उरबसी’ शब्द का अर्थ है – ‘उर / ह्रदय में बसी हुई’ तथा दूसरे ‘उरबसी’ का अर्थ है – ‘उर्वशी’ (देश सुंदरी) | पंक्ति का अर्थ है कि तू कृष्ण के मन में ‘उर्वशी’ के समान बसी हुई है |
श्लेष अलंकार
‘श्लेष’ शब्द का अर्थ है – ‘चिपकना’.
जहाँ किसी एक ही शब्द में एक से अधिक अर्थ चिपके होते है , वहाँ ‘श्लेष अलंकार’ होता है .
अर्थात जहाँ काव्य में कोई शब्द एक से अधिक अर्थों को व्यक्त करता है , वहाँ ‘श्लेष अलंकार’ होता है ; जैसे –
दे रहा हो कोकिल सानंद
सुमन को ज्यों मधुमय संदेश
यहाँ ‘सुमन’ तथा ‘मधुमय’ दोनों पर श्लेष अलंकार है . सुमन शब्द के दो अर्थ है – ‘सुंदर मन’ तथा ‘पुष्प’ और ‘मधुमय’ का अर्थ है – ‘मधुर’ तथा ‘वसंत ऋतु’ . इस तरह पूरी पंक्ति से दो अर्थ निकल रहे हैं –
- कोयल आनंदित होकर ‘सुंदर मन’ वाले लोगों को मधुर संदेश दे रही है अर्थात कोयल की वाणी उन्हें मधुर लगती है .
- कोयल प्रसन्न होकर फूलों को यह संदेश दे रही है कि ‘वसंत ऋतु’ आनेवाली है .
Shlesh Alankar Examples श्लेष अलंकार के उदाहरण-
- रहिमन पानी राखिए , बिन पानी सब सून |
पानी गए न ऊबरे , मोती मानुष चून ||
यहाँ दूसरी पंक्ति में आए ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ है –
- ‘मोती’ के सन्दर्भ में ‘चमक’
- मानुष / मनुष्य के सन्दर्भ में ‘इज्जत’
- चूने के सन्दर्भ में ‘जल’
कविता का अर्थ है कि मनुष्य को ‘पानी’ (इज्जत) बनाए रखनी चाहिए. यदि ‘पानी’ चला जाए , तो ‘मोती’ ‘मनुष्य’ और ‘चूना’ उबर नही पाते.
Shlesh Alankar ke Udaharan
- ‘सुबरन को दूंढ़त फिरत , कवि, व्यभिचारी , चोर’
पंक्ति का अर्थ है कि कवि , व्यभिचारी तथा चोर तीनो ही ‘सुबरन’ अर्थात ‘सुवर्ण’ को दूंढ़ते फिरते हैं.
यहाँ ‘सुबरन’ (सुवर्ण) शब्द पर श्लेष अलंकार है और इसके तीन अर्थ इस प्रकार हैं –
(i)कवि के सन्दर्भ में = सुबरन अर्थात सुंदर वर्ण / अक्षर
(ii)व्यभिचारी के संदर्भ में = सुबरन अर्थात सुंदर वर्ण / रंगवाली सुंदरियाँ
(iii)चोर के संदर्भ में = सुबरन अर्थात सुवर्ण या सोना
- ‘मधुवन की छाती को देखो , सूखी कितनी इसकी कलियाँ’
यहाँ ‘कलियाँ’ शब्द पर श्लेष अलंकार है | इसके दो अर्थ हैं –
(i)कली (फूल बनने से पहले की स्थिति) तथा
(ii)यौवन आने से पहले की दशा
- जो रहीम गति दीप की , कुल कपूत गति सोय .
बारे उजियारो करे , बढ़े अँधेरों होय ||
यहाँ ‘बारे’ तथा ‘बढ़े’ शब्द पर श्लेष अलंकार है क्योंकि इन दोनों के दो – दो अर्थ हैं –
(i)कपूत (कुपुत्र) के संदर्भ में = बचपन में (बारे)
दीपक के संदर्भ में = जलने पर (बारे)
(ii)कपूत के संदर्भ में = बढ़ा होने पर (बाढ़े)
दीपक के संदर्भ में = बुझने पर (बाढ़े)
दोहे का अर्थ है कि रहीम के अनुसार ‘दीपक’ और ‘कुपुत्र’ दोनों के लक्षण समान होते हैं. दीपक जलता है तब उजाला करता है और कुपुत्र के कार्यकलाप बचपन में तो अच्छे लगते हैं , पर बड़े होने पर अँधेरा फैला देते हैं , जबकि दीपक बढ़ जाने / बंद हो जाने पर अँधेरा फ़ैला देता है .
Alankar ke Udaharan
- मेरी भव – बाधा हरौ , राधा नागरि सोय |
जा तन की झाँई परै , स्यामु हरित दुति होय |
यहाँ ‘स्यामु’ तथा ‘हरित दुति’ के दो – दो अर्थ इस प्रकार हैं –
(i)स्यामु = श्याम / श्री कृष्ण
= कलिमा , पाप
(ii)हरित दुति = हरे रंग के
= प्रसन्नचित
पंक्ति का अर्थ है कि ‘राधा’ जिनका रंग श्वेत है , उनके शरीर की झाँई / परछाईं पड़ते ही कृष्ण जो काले रंग के हैं , ‘हरे’ रंग के हो जाते हैं तथा दूसरा अर्थ यह कि वे ‘प्रसन्नचित’ हो जाते हैं .
- ‘मगन को देखि पट देत बार – बार है |’
यहाँ श्लेष अलंकार है , क्योंकि ‘पट’ शब्द के दो अर्थ हैं –
‘पट’ = वस्त्र
= दरवाजा
पंक्ति का पहला अर्थ है – माँगनेवालो (भिखारियों) को देखकर बार – बार ‘पट’ दरवाजा बंद कर लेती हैं तथा दूसरा अर्थ है – भिखमंगों को देखकर उन्हें बार – बार ‘वस्त्र’ दान में देती हैं.
- ‘विधि के समान हैं , विमानीकृत राजहंस’
यहाँ केशवदास ने राजा दशरथ की तुलना ‘विधि’ (ब्रह्मा) से की है और कहा है कि राजा दशरथ ‘विधि’ के समान ‘विमानीकृत राजहंस’ है . इसके निम्नलिखित दो अर्थ है –
(i)ब्रह्मा ने राजहंस (हंसों के राजा) को अपना विमान बनाया हुआ है.
(ii)राजा दशरथ ने राजहंस अर्थात बड़े – बड़े राजाओं को विमानीकृत कर दिया है अर्थात उनका मान भंग कर दिया है .