Alankar in Hindi अलंकार की परिभाषा | भेद | उदाहरण | प्रकार
प्रिय छात्रों इस पोस्ट में हम अर्थालंकार के विषय में बात करेंगे
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Arthalankar ki Paribhasha अर्थालंकार की परिभाषा
‘अर्थालंकार’ अर्थ द्वारा उत्पन्न सौन्दर्य पर कार्य करते हैं | अर्थालंकारों को समझने के लिए कुछ आधारभूत बातों को समझ लेना चाहिए |
अर्थालंकार से संबंधित आधारभूत बातें –
- काव्य में कवि किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करता है और उसकी समानता किसी बाहरी व्यक्ति या वस्तु से दिखाता है | कवि जिस व्यक्ति / वस्तु का वर्णन करता है , वह कवि के लिए प्रस्तुत होता है और जिस बाहरी व्यक्ति या वस्तु से उसकी समानता दिखाई जाती है , उसे अप्रस्तुत कहते हैं |
- इस तरह समस्त काव्य ‘प्रस्तुत’ तथा ‘अप्रस्तुत’ के बीच ही चलता है | कभी कवि प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत की तुलना करता है , कभी प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत की समानता बताता है , कभी प्रस्तुत पर अप्रस्तुत का आरोप करता है , तो कभी प्रस्तुत में अप्रस्तुत की संभावना करता है |
- इन्हीं सब प्रक्रियाओं के कारण विभिन्न प्रकार के अर्थालंकार सामने आते हैं |
- अलंकार शास्त्र में ‘प्रस्तुत’ को उपमेय तथा अप्रस्तुत को उपमान भी कहा जाता है |
अर्थालंकार के भेद- Arthalankar ke Bhed
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- अतिशयोक्ति अलंकार
- मानवीकरण अलंकार
उपमा अलंकार Upma Alankar
Upma Alankar ki paribhasha
जब दो व्यक्तियों या वस्तुओं में समान गुण / धर्मों के कारण समानता बताई जाती है , वहाँ ‘उपमा अलंकार’ होता है |
जैसे – ‘सीता के आँखें मृग के समान चंचल हैं |’
इस पंक्ति में सीता की आँखों की चंचलता मृग के समान बताई गई है | अतः यहाँ सीता के आँखे ‘प्रस्तुत’ होंगी और मृग ‘अप्रस्तुत’ |
Upma Alankar ke Udaharan
- दो वस्तुओं के बीच जब समानता बताई जाती है तब चार वस्तुएँ हमारे समक्ष आती हैं –
- प्रस्तुत या उपमेय – जिस व्यक्ति या वस्तु की समानता बताई जाती है , वह प्रस्तुत या उपमेय होता है उपर्युक्त पंक्ति में उपमेय हैं – सीता की आँखें |
- अप्रस्तुत या उपमान – जिस वस्तु से समानता बताई जा रही हो , वह वस्तु ‘उपमान’ कहलाती है | उपर्युक्त पंक्ति में उपमान है – ‘मृग’ |
- साधारण धर्म – वह समान गुण या धर्म , जिसके आधार पर समानता बताई गई हो | उपर्युक्त पंक्ति में ‘चंचल’ |
- वाचक शब्द – अर्थात समानता को ब्तानेबाला शब्द | उपर्युक्त पंक्ति में ‘के समान’ वाचक शब्द है |
- ये चारो ‘उपमा अलंकार’ के अंग कहलाते हैं |
- जिस उपमा अलंकार में उपर्युक्त चारो अंग पाए जाते हैं , उसे पूर्णोपमा अलंकार कहते है तथा यदि किसी उपमा अलंकार में किसी अंग का लोप होता है उसे ‘लुप्तोपमा’ कहते हैं |
दोनों के उदाहरण देखिये –
पूर्णोपमा
- ‘पीपर पात सरिस मन डोला’
- उपमेय (प्रस्तुत) = मन
- उपमान (अप्रस्तुत) = पीपर – पात
- साधारण धर्म = डोलना
- वाचक शब्द = सरिस (के समान)
- ‘यह देखिये अरविन्द – से शिशुवृन्द कैसे सों रहे’
- उपमेय (प्रस्तुत) = शिशुवृंद
- उपमान (अप्रस्तुत) = अरविंद
- साधारण धर्म = कैसे सों रहे
- वाचक शब्द = से
- ‘हरिपद कोमल कमल – से’
- उपमेय (प्रस्तुत) = हरिपद
- उपमान (अप्रस्तुत) = कमल
- साधारण धर्म = कोमल
- वाचक शब्द = से
लुप्तोपमा
- ‘मखमल के झूल पड़े हाथी – सा टीला’
- उपमेय (प्रस्तुत) = टीला
- उपमान (अप्रस्तुत) = मखमल के झूल पड़े हाथी
- साधारण धर्म = लुप्त
- वाचक शब्द = सा
- ‘वह नवनलिनी- से नयनवाला कहाँ – से’
- उपमेय (प्रस्तुत) = नयनवाला
- उपमान (अप्रस्तुत) = नवनलिनी
- साधारण धर्म = लुप्त
- वाचक शब्द = से
उपमा अलंकार के उदाहरण-
• हाय ! फूल – सी कोमल बच्ची हुई राख की थी ढेरी ( बच्ची की तुलना फूल से )
• उषा सुनहले तीर बरसाती जयलक्ष्मी – सी उदित हुई ( उषा की तुलना तीर बरसाती जयलक्ष्मी से )
• नीलगगन सद्र्श शांत था सों रहा ( सोते हुए व्यक्ति की तुलना शांत नीलगगन से )
• कबिरा माया मोहनी जैसे मीठी खांड ( मोहनी माया की की तुलना मीठी खांड से )
• उधर गरजती सिंधु लहरियाँ , कुटिल काल के ज्वालों – सी
चली आ रही फेन उगलती फन फैलाए व्यालो – सी
( सिंधु की लहरों की तुलना फन फैलाकर आनेवाली संपिनियो से )
• निकल रही थी मर्म वेदना करुणा विकल कहानी – सी ( मर्म वेदना की तुलना करुणा विकल कहानी के साथ )
• उषा ज्योत्स्ना – सा यौवन स्मित ( यौवन स्मित की तुलना उषा ज्योत्स्ना के साथ )
• गंगा तेरा नीर अमृत सम उत्तम है ( गंगा के जल की तुलना अमृत के साथ )
• तब तो बहता समय शिला – सा बन जाएगा | ( समय की तुलना शिला के साथ )
• फ़ैली खेतों में दूर तलक
मखमल – सी कोमल हरियाली ( हरियाली की तुलना मखमल के साथ )
• लिपटीं जिसमे रवि की किरणें |
चाँदी की – सी उजली जाली | ( हरियाली में लिपटीं रवि की किरणों की तुलना चाँदी की जाली के साथ )
• मखमली पेटियों – सी लटकी
छीमियाँ , छिपाए बीज लड़ी ( बीजों की लड़ियों को छिपाए छीमियों की तुलना मखमली पेटियों के साथ )
• मरकत डिब्बे – सा खुला ग्राम ( ग्राम की तुलना मरकत के डिब्बे के साथ )
• सुंदर गेहूँ की बालों पर , मोती के दानो – से हिमकण ( हिमकणों की तुलना मोती के दानों के साथ )
रूपक अलंकार Rupak Alankar
Rupak Alankar ki paribhasha
‘रूपक अलंकार’ वहाँ होता है , जहाँ ‘प्रस्तुत’ और ‘अप्रस्तुत’ में बहुत अधिक समानता होने के कारण दोनों को एक समझ लिया जाता है या ‘उपमेय’ पर ‘उपमान’ का आरोप किया जाता है |
जैसे – ‘कमल नयन’ का अर्थ है – ‘कमल रुपी नेत्र’ |
‘उपमा’ तथा ‘रूपक’ दोनों में यही अंतर है कि उपमा में जहाँ उपमेय तथा उपमान में समानता दिखाई जाती है , वहीं ‘रूपक’ में उपमेय पर उपमान का आरोपण किया जाता है |
Rupak Alankar ke Udaharan- रूपक अलंकार के उदाहरण
- चरण – कमल बंदौ हरिराई ( कमल रुपी चरण : उपमेय = चरण , उपमान = कमल )
- विष – बाण बूँद से छूटेंगे ( विष रुपी बाण : उपमेय = बाण , उपमान = विष )
- शशि – मुख पर घूँघट डाले
अंचल में दीप जलाए ( शशि रुपी मुख : उपमेय = मुख , उपमान = शशि )
- अंबर – पनघट में डूबो रही
तारा – घट उषा – नागरी ( पनघट रुपी अंबर : उपमेय = पनघट , उपमान = अंबर )
अर्थ – अंबर रुपी पनघट में उषा रुपी नगरी (स्त्री) तारा रुपी घट (घड़े) को डुबो रही है ( रात्रि समाप्त होने तथा सुबह होने का सुंदर चित्रण है | )
अंबर – पनघट : उपमेय = पनघट , उपमान = अंबर
तारा – घट : उपमेय = घट , उपमान = तारा
उषा – नागरी : उपमेय = नागरी , उपमान = उषा
- अभिमन्यु – धन के निधन में कारण हुआ जो मूल है (अभिमन्यु रुपी धन)
- सतत ज्वलित दुःख दावानल में , जग के दारुन रन में (दुःख रुपी दावानल)
- ओ चिंता की पहेली रेखा , अरी विश्व – वन की व्याली (विश्व रुपी वन की सपिर्ण)
- आए महंत – बसंत (महंत रुपी बसंत)
- मैया मैं तो चंद्र – खिलौना लैहों (चन्द्रमा रुपी खिलौना)
- पायो जी मैंने राम – रतन धन पायो (राम – रतन रुपी धन)
- उदित उदयगिरी – मंच पर , रघुवर बाल – पतंग (उदयगिरी रुपी मंच , बाल – सूर्य रुपी रघुवर)
विकसे संत – सरोज सब , हरषे लोचन – भृंग | (सरोज रुपी सब संत , भृंग (भँवरें) रुपी लोचन)
- वन – शारदी चन्द्रिका – चादर ओढ़े (चन्द्रिका रुपी चादर)
- वाडव ज्वाला – सी सोती थी , इस प्रणय – सिंधु के तल में (प्रणय रुपी सिंधु)
- हरी – भरी सी दौड़ – धूप औ ; जल – माया की चल रेखा (जल रुपी माया)
- माया – दीपक नर – पतंग भ्रमि – भ्रमि इवै पडंत (माया रुपी दीपक तथा नर रुपी पतंग)
- वे शत्रु सत्वर शोक – सागर – मग्न दिखेंगे सभी (शोक रुपी सागर में मग्न)
- क्या उनका उपकार – भार तुम पर लवलेश नहीं है (उपकार रुपी भार)
Utpreksha Alankar उत्प्रेक्षा अलंकार
Utpreksha Alankar ki Paribhasha
जहाँ प्रस्तुत पर अप्रस्तुत की या ‘उपमेय’ पर ‘उपमान’ की संभावना की जाती है , वहाँ ‘उत्पेक्षा अलंकार’ होता है |
उत्प्रेक्षा अलंकार में ध्यान देने योग्य बातें
- उत्प्रेक्षा अलंकार में प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत के गुण – धर्म की समानता के कारण समान होने की संभावना कर ली जाती है या ‘उपमेय’ को ‘उपमान’ जैसा मान लिया जाता है |
- उत्प्रेक्षा अलंकार में संभावना करने के लिए प्रायः ‘मानो’, ‘मनहु’, ‘मनहूँ’, ‘जानो’, ‘जनहु’, ‘जनहूँ’, ‘ज्यों’, ‘जनु’, आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है | अतः ये वाचक शब्द जिस कविता में आएँ , समझ लीजिये वहाँ ‘उत्पेक्षा’ अलंकार है ; जैसे –
उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा,
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा |
यहाँ अर्जुन के क्रोध का वर्णन किया गया है | उस समय क्रोध के कारण अर्जुन का शरीर इस प्रकार काँपने लगा मानो हवा के जोर से सागर उमड़ पड़ा हो | यहाँ क्रोध से काँपते शरीर पर हवा के जोर से उमड़ते सागर की संभावना की गई है तथा वाचक शब्द ‘मानो’ का भी प्रयोग हुआ है , अतः यहाँ उत्पेक्षा अलंकार है |
Utpreksha Alankar ke Udaharan
- स्वर्ण शालियों की कलमें थी , दूर – दूर तक फ़ैल रहीं |
शरद – इंदिरा के मन्दिर की , मानो कोई गैल रहीं ||
अर्थात – यहाँ दूर – दूर तक फ़ैली स्वर्ण शालियों की कलमों में शरद – इंदिरा के मन्दिर की गली की संभावना की गई है तथा यहाँ ‘मानो’ वाचक शब्द का प्रयोग होने के कारण ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है |
- बार – बार उस भीषण रव से , कँपती धरणी देख विशेष |
मानो नील व्योम उतरा हो , आलिंगन के हेतु अशेष ||
अर्थात – यहाँ भीषण रव के कारण धरती के कंपन पर यह सभावना की गई है कि मानो यह कंपन नीले आकाश के आलिंगन के कारण है | ‘मानो’ वाचक शब्द का प्रयोग ही उत्प्रेक्षा अलंकार की सूचना दे रहा है |
- सोहत ओढ़े पीत – पट , स्याम सलोने गात |
मनहूँ नीलमणी सैल पर , आतप परयौ प्रभात ||
अर्थात – सलोने शरीरवाले कृष्ण पीत – वस्त्र पहनकर इस प्रकार सुशोभित हो रहे हैं , मानो नीलमणि पर्वत पर सूर्य का प्रभाव पड़ा हो | यहाँ उपमेय में उपमान की संभावना की गई है तथा ‘मनहूँ’ वाचक शब्द का प्रयोग होने के कारण ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है |
- ‘सिर फट गया उसका वहीं , मानो अरुण रंग का घड़ा |
अर्थात – यहाँ पर फटा हुआ सिर उपमेय पर लाल रंग के घड़े की संभावना की गई है तथा ‘मानो’ वाचक शब्द का प्रयोग किया गया है , अतः ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है |
- कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये |
हिमकणों से पूर्ण मानो हो गये पंकज नये ||
अर्थात – यहाँ उत्तरा के जल से भरे हुए नेत्रों में हिमकणों से पूर्ण नये पंकजो (कमलों) की संभावना की गई है तथा वाचक शब्द है – ‘मानो’, अतः यहाँ ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है |
- ‘पदमावती सब सखी बुलाई , मनु फुलबारि सबै चलि आई’ |
अर्थात – ‘पदमावती’ ने अपनी समस्त सखियों को बुलाया और बे सब आई तो ऐसा लगा , जैसे फुलबारी चली आई हो | यहाँ वाचक शब्द ‘मनु’ है , अतः यहाँ ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है |
- नील परिधान बीच सुकुमार , खुल रहा मृदुल अधखुला अंग
खिला हो ज्यों बिजली का फूल , मेघवन बीच गुलाबी रंग |
अर्थात – यहाँ नायिका (श्रद्धा) के सुंदर अधखुले अंग नीले वस्त्रों के बीच ऐसे लग रहे थे मानो मेघ रुपी वन के बीच बिजली का फूल खिला हो | यहाँ वाचक शब्द ‘ज्यों’ है , अतः यहाँ ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है |
- ‘मिटा मोदु , मन भए मलीने
विधि निधि दीन लेत जनु छीन्हे |’
अर्थात – मोद मिट गया , मन मलिन हो गये , ऐसा लगा मानो विधाता ने दी हुई निधि (खजाना) वापस ले लिया हो | वाचक शब्द ‘जनु’ है | अतः ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है |
- बहुत काली सिल
जरा – से लाल केसर – से
कि जैसे धुल गई हो
अर्थात – यहाँ सूर्योदय का वर्णन है | रात में आकाश सिल के समान होता है | जब प्रातः काल सूर्योदय होने को होता है तब ऐसा लगता है मानो आकाश रुपी सिल लाल केसर के रंग से धुल गई हो | वाचक शब्द ‘जैसे’ है | यहाँ ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है |
- पुलक प्रकट करती है धरती , हरित तृणों के नोकों से |
मानो झूम रहे हों तरु भी , मंद पवन के झोकों से ||
अर्थात – प्रथ्वी से जो हरे – हरे तृण निकलते हैं , उनके माध्यम से मानव पृथ्वी अपना पूरा किया आनंद को प्रकट करती है तथा मंद पवन के लोगों से जो वृक्ष झूमते हैं बे भी मानो पृथ्वी का पुलक हों | यहाँ ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है |
- पाहुन ज्यों आए हो गांव में शहर के ,
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के |
अर्थात – यहाँ कवि ने मेघों के बन ठन के आने पर कवि ने संभावना व्यक्त की है कि मानव शहर के मेहमान गांव में आए हो वाचक शब्द ‘ज्यों’ है अतः यहां ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है |
- देखने नगर भूख सुत आए | समाचार पुरवासिन पाए |
धाए काम धाम सब त्यागी | मनहूँ रंक निधि लूटन लागी ||
अर्थात – राम – लक्ष्मण (राजा दशरथ के पुत्र ) के जनकपुरी में आने का समाचार सुनकर सारे नगरवासी सारे काम छोड़ कर उनके दर्शन करने भागे मानो निर्धन को निधि (खजाना) मिल गया हो | इसमें वाचक शब्द ‘मनहूँ’ है अतः यहाँ ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है |
प्रिय छात्रों हम उम्मीद करते हैं कि नीचे दी हुई जानकारी से आप अवश्य ही समझ पायेंगे कि Atishyokti Alankar Kise Kahate Hain. इसीलिए यहाँ पर हम आपके लिए Atishyokti Alankarin Hindi प्रस्तुत कर रहे हैं-
अतिशयोक्ति अलंकार Atishyokti Alankar
Atishyokti Alankar ki paribhasha
‘अतिशयोक्ति शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘अतिशय’ तथा ‘उक्ति’ अर्थात ऐसी उक्ति जो अतिशयता के साथ कहीं गई हो या बढ़ा चढ़ाकर कही गई हो | इस तरह कविता में जब ‘प्रस्तुत’ या ‘उपमेंय’ का वर्णन बहुत बड़ा चढ़ाकर अतिशयपूर्ण ढंग से किया जाता है तब वहाँ ‘अतिशयोक्ति’ अलंकार होता है | निम्नलिखित उदाहरण देखिए –
हनुमान की पूंछ में , लगन न पाई आग |
लंका सगरी जल गई , गए निसाचर भाग ||
अर्थात – हनुमान की पूंछ में अभी आग लग भी न पाई थी कि (उससे पहले ही) सारी लंका जल गई और सारे निसाचर भाग गए | यहां प्रसंग का वर्णन बढ़ा – चढ़ाकर किया गया है अतः ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ है |
अन्य उदाहरण
- वह शर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ |
धड़ से जयद्रथ का इधर , सिर छिन्न वैसे ही हुआ ||
अर्थात – अर्जुन के गांडीव से तीर निकल कर जैसे ही अलग हुआ ,वैसे ही जयद्रथ का सिर धड़ से कटकर अलग हो गया | यहाँ भी प्रस्तुत प्रसंग का वर्णन बढ़ा – चढ़ाकर किया गया है | अतः ‘अतिशयोक्ति – अलंकार’ है |
- देख लो साकेत नगरी है यही
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही
यहाँ ‘साकेत’ नगरी का वर्णन है जिसके गगनचुंबी भवन इस प्रकार के हैं , जिन्हें देखकर लगता है मानो सारी नगरी आकाश से मिलने जा रही हो | यहाँ साकेत नगरी का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है अतः ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ है |
- आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार
राणा ने सोचा इस पार , तब तक चेतक था उस पार
अर्थात – जब तक राणा ने सोचा कि अपार नदी को घोड़ा कैसे पार करेगा , उससे पहले ही चेतक (राणा का घोड़ा) नदी के उस पार था | सोचने से पहले ही चेतक ने नदी पार की , यह अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है | अतः इसमें ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ है |
- ‘मुख बाल रवि सम लाल होकर , ज्वाला – सा बोधित हुआ |’
उपमेय – मुख , उपमान – बाल रवि
मुख का बाल रवि के समान लाल ज्वाला जैसा लगना अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन है अतः यह ‘अतिशयोक्ति अलंकार ‘का उदाहरण है |
- देखि सुदामा की दीन दशा , करुणा करके करुणानिधि रोए |
पानी परात को हाथ छुओं नहीं , नैनन के जल सो पग धोए ||
अर्थात – सुदामा की दीन दशा देखकर श्री कृष्ण करुणापूर्वक रो पड़े | सुदामा के पैरों को धोने के लिए परात में जो पानी मंगाया था उसको तो छुआ ही नहीं , अपने आंसुओं के जल से ही सुदामा के पग (पैर) धो दिए |
- सुदामा के पैरों को धोने का वर्णन अतिशयोक्ति पूर्ण है | अतः यहां ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ है |
‘प्राण छुटे प्रथमै में रिपु के रघुनायक सायक छूट न पाए’
अर्थात – राम के बाण छूट भी नहीं पाते थे , उससे पहले ही रिपु (शत्रु) के प्राण छूट जाते थे | यह संभव नहीं हो सकता , अतः अतिशयोक्ति पूर्ण होने के कारण ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ है |
- शर खींच उसने तूण से कब किधर संधाना उन्हें |
बस बिद्ध होकर ही विपक्षी वृंद नें जाना उन्हें ||
अर्थात – उसने कब तूण से तीर निकालकर संधान किया , इस बात को विपक्षी दल ने तभी जाना , जब शत्रु घायल होकर गिर पड़ा | अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है अलंकार है , अतः ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ है |
अब कुछ अन्य उदाहरण देखिये –
- पीय गमन की बात सुनि सूखे तिन के अंग
- अनियारे दीरघ द्रगनु , किती न तरुनी समान |
वह चितवन औरे कछु , जिहिं बस होत सुजान |
- बाँधा था विधु को किसने इन काली जंजीरों से
मणि वाले फणियों का मुख , क्यों भरा हुआ हीरो से |
प्रिय छात्रों हम उम्मीद करते हैं कि नीचे दी हुई जानकारी से आप अवश्य ही समझ पायेंगे कि Manvikaran Alankar Kise Kahate Hain. इसीलिए यहाँ पर हम आपके लिए Manvikaran Alankarin Hindi प्रस्तुत कर रहे हैं-
मानवीकरण अलंकार – Manvikaran Alankar
Manvikaran Alankar ki Paribhasha
‘मानवीकरण’ शब्द का अर्थ है – ‘किसी को मानव बना देना |’ वसुतः काव्य में कभी जब किसी भी अमानवीय चीज़ का इस प्रकार वर्णन किया जाये कि वो ‘मानव’ या ‘मानवीय’ हो | ऐसे जगहों पर ‘मानवीकरण अलंकार’ होता है
हिंदी साहित्य के ‘छायावादी’ युग के कवियों नें अपनी कविता में प्रकृति को ‘नारी’, ‘शक्ति’ आदि के रूप में चित्रित किया है | प्रकृति उनकी कविता में मानवी के रूप में आती है और वहीँ से हिंदी में ‘मानवीकरण अलंकार’ के दर्शन होते हैं |
उदाहरण के लिए , जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य कामायनी की निम्नलिखित पंक्तियां देखिए जिसमें ‘उषा’ को जय लक्ष्मी के रूप में चित्रित कर मानवीकरण अलंकार का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया गया है |
उषा सुनहले तीर बरसाती जय लक्ष्मी – सी उदित हुई ,
उधर पराजित कालरात्रि भी जल में अंतर्निहित हुई
अर्थात – ‘उषा’ का आगमन ऐसा लग रहा है जैसे सुनहरे तीरों की वर्षा करती हुई विजय लक्ष्मी प्रकट हो रहीं हों तथा दूसरी ओर ‘रात्रि’ जो पराजित हो गई है , वह मानों उषा के डर से जल – समाधि लेने जा रही हैं | ‘उषा’ तथा ‘रात्री’ को कवि ने ‘मानवी’ के रूप में चित्रित कर मानवीकरण अलंकार का सुंदर चित्र प्रस्तुत किया है |
Manvikaran Alankar Ke Udaharan- मानवीकरण अलंकार के उदाहरण
मेघमय आसमान से उतर रही
वह संध्या सुंदर – परी सी
धीरे -धीरे -धीरे
यह ‘संध्या’ को एक सुंदर परी के रूप में आसमान से धीरे-धीरे उतरते हुए चित्रित करना मानवीकरण अलंकार का सुंदर उदाहरण है
- ओ चिंता की पहली – रेखा
अरी विश्व – वन की प्याली
ज्वालामुखी – स्फोट की भीषण
प्रथम – कंप सी मतवाली |
‘चिंता’ की रेखाएं मनुष्य के मस्तक पर दिखाई देती हैं जो मनुष्य को धीरे-धीरे खा जाती हैं चिंता की पहली रेखा को कवि मानवीकरण के द्वारा विश्व – रूपी सपिर्णी के रूप में चित्रित कर रहा है | अतः यहां ‘मानवीकरण अलंकार’ है |
- बीती विभावरी जाग री
अंबर पनघट में डुबो रही
तारा – घट उषा – नागरी
यहां भी कवि ने उषा को उस नायिका के रूप में चित्रित किया है , जो तारा रूपी गधों को अंबर – रूपी पनघट में डुबो रही है | अतः मानवीकरण अलंकार है |
- ‘लज्जा’ के भाव का चित्रण कवि प्रसाद ने इस रूप में किया है; जैसे – वह कोई नवयौवना हो |
वैसी ही माया में लिपटी , अधरों पर उंगली धरे हुए
माधव के सरस कुतूहल का , आंखों में पानी भरे हुए
नीरव – निशीथ में लतिका सी , तुम कौन आ रही हो बढ़ती
कोमल बाँहें , फैलाती – सी , आलिंगन का जादू करती
इतना ही नहीं ‘लज्जा’ भी एक मानवी के रूप में उत्तर देती है –
- ‘मैं रति की प्रतिकृति लज्जा हूँ , शाली नेता सिखाती हूँ’ | लज्जा ‘रति’ की प्रतिकृति / प्रतिबिंब है जो युवतियों को शालीनता की शिक्षा देती है | उपर्युक्त दोनों उदाहरण ‘मानवीकरण’ के सुंदर उदाहरण है
- सिंधु – सेज पर धरा – वधू अब
तनिक संकुचित बैठी – सी |
प्रलय निशा की हलचल स्मृति में
मान किए – सी ऐंठी – सी |
यहाँ पृथ्वी के मानवीकरण का एक सुंदर चित्र प्रस्तुत किया गया है | इसमें पृथ्वी को वधु के रूप में चित्रित किया गया है | जो कि संकोच में रूठी हुई – सी बैठी है | अतः यहाँ ‘मानवीकरण अलंकार’ है |
उपर्युक्त पंक्तियों में पृथ्वी को संकोच में रूठी हुई – सी बैठी हुई वधु के रूप में चित्रित किया गया है |
- सुमित्रानंदन पंत की निम्नलिखित पंक्तियों में ‘गंगा’ नदी का मानवीकरण किया गया है –
सैकत- शय्या पर दुग्ध – धवल
तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विरल
लेटी है शांत , क्लांत , निश्चल |