Unseen Passage in Hindi with Answer

By | July 27, 2022
Unseen Passage in Hindi with Answer

Unseen Passage in Hindi with Answer के द्वारा पाठक की व्यक्तिगत योग्यता और अभिव्यक्ति की क्षमता का आकलन किया जाता है. अपठित का कोई क्षेत्र विशेष नहीं होता.विद्यार्थी को गद्यांश के आधार पर उत्तर देना होगा. परीक्षा में एक गद्यांश पूछा जाएगा जिसमे दो अति लघुत्तरात्मक (1 x 2 = 2 ) एवं तीन लघुत्तरात्मक ( 2 x 3 = 6 ) प्रश्न होंगे.

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर 20 -25 शब्दों में लिखिए.

1.दार्शनिक अरस्तु ने कहा है – “प्रत्येक व्यक्ति को उचित समय पर, उचित व्यक्ति से, उचित मात्रा में, उचित उद्देश्य के लिए, उचित ढंग से व्यवहार करना चाहिए.” वास्तव में प्रत्येक प्राणी का संबंध एक – एक क्षण में रहता है किंतु व्यक्ति उसका महत्त्व नहीं समझता. अधिकतर व्यक्ति सोचते हैं कि कोई अच्छा समय आएगा तो काम करेंगे. इस दुविधा और उधेड़बुन में वे जीवन के अनेक अमूल्य क्षणों को खो देते हैं. किसी व्यक्ति को बिना हाथ-पांव हिलाए संसार की बहुत बड़ी संपत्ति छप्पर फाड़कर कभी नहीं मिलती. समय उन्हीं के रथ के घोड़ों को हांकता है जो भाग्य के भरोसे बैठना पौरष का अपमान करते हैं. जो व्यक्ति श्रम और समय का पारखी होता है, लक्ष्मी भी उसी का वरण करती है. समय की कीमत न पहचानने वाले समय बीत जाने पर सिर धुनते रह जाते हैं. समय निरंतर गतिमान है इसलिए हमें समय का मूल्य समझना चाहिए. साथ ही समयानुसार काम भी करना चाहिए. सफल जीवन की यही कुंजी है.
प्रश्न –
(क)जीवन के अमूल्य लक्षणों को किस प्रकार के व्यक्ति खो देते हैं ?
(ख)भाग्य के भरोसे बैठना पौरुष का अपमान क्यों कहा गया है ?
(ग)दार्शनिक अरस्तु के कथन का आशय लिखिए ?
(घ)लक्ष्मी किसे प्राप्त होती है ?
(ङ)उपयुक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए ?

उत्तर –
(क) जीवन के अमूल्य क्षणों को वे व्यक्ति खो देते हैं जो उचित समय पर उचित व्यक्ति से उचित व्यवहार नहीं करते और उचित समय आने की दुविधा में सामने आए अफसर को गंवा देते हैं.
(ख) भाग्य के भरोसे निठल्ले बैठे रहना और समय पर पौरुष न दिखाना पौरुष का अपमान है. पौरूषवान व्यक्ति को ही संसार में सफलता और संपत्ति प्राप्त होती है.
(ग) दार्शनिक अरस्तु के कथन का आशय यह है कि हमें समय और परिश्रम के महत्व को समझना चाहिए. हमें उचित समय पर उचित व्यक्ति से उचित ढंग से व्यवहार और कर्म करना चाहिए तभी सफलता और संपत्ति प्राप्त होती है.
(घ) लक्ष्मी उन्ही को प्राप्त होती है जो उचित समय पर उचित परिश्रम करना जानते हैं और जो गतिशील समय का सम्मान करना जानते हैं.
(ङ) समय और परिश्रम का महत्व.

2.हमारा शिक्षित युवा वर्ग शारीरिक श्रमपरक कार्य करने में परहेज करता है श्रम की अवज्ञा के परिणाम का सबसे ज्वलंत उदाहरण है, हमारे देश में व्याप्त शिक्षित वर्ग की बेकारी. युवा यह नहीं सोचता है कि शारीरिक श्रम परिणामतः कितना सुखदायी होता है पसीने से सिंचित वृक्ष में लगने वाला फल हमेशा मधुर होता है. महात्मा ईसा मसीह ने अपने अनुयायियों को यह परामर्श दिया था कि तुम सदा अपने पसीने की कमाई खाना. पसीना टपकाने के बाद मन को संतोष और तन को सुख मिलता है. हमारे समाज में श्रम न करना सामान्यतः उच्च सामाजिक स्तर की पहचान मानी जाती है. यही कारण है कि जैसे – जैसे आर्थिक स्थिति में सुधार होता जाता है, वैसे – वैसे बीमारों और बीमारियों की संख्या में वृद्धि होती जाती है. जिस समाज में शारीरिक श्रम के प्रति हेय द्रष्टि नहीं होती है, वह समाज अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ एवं सुखी दिखाई देता है. विकसित देशों के निवासी शारीरिक श्रम को जीवन का आवश्यक अंग समझते हैं.
प्रश्न –
(क)शिक्षित युवा वर्ग की बेकारी के क्या-क्या कारण हो सकते हैं ?
(ख)‘पसीने की कमाई’ का क्या अर्थ है ?
(ग)स्वस्थ समाज की क्या पहचान बताई गई है इसका क्या परिणाम होता है ?
(घ)‘सिंचित’ और ‘आर्थिक’ शब्दों से प्रत्यय अलग करके लिखिए.
(ङ)उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए.
उत्तर –

(क)शिक्षित युवा वर्ग की बेकारी का मुख्य कारण है – शारीरिक परिश्रम वाले कार्यों से बचना. शिक्षित युवक शारीरिक श्रम में अपना अपमान मानते हैं.
(ख)‘पसीने की कमाई’ का अर्थ है शारीरिक परिश्रम करके धन कमाना.
(ग)स्वस्थ समाज की पहचान यह है कि वहां के नागरिक शारीरिक श्रम को हेय नहीं मानते. इसका स्वभाविक परिणाम यह होता है कि उस समाज के लोग स्वस्थ और सुखी होते हैं. वहां बीमारियाँ नहीं आतीं.
(घ)सिंचित – इत, आर्थिक – इक
(ङ)बेकारी का मूल कारण श्रमहीनता.

3.आधुनिक तकनीकी और वैज्ञानिक उपलब्धियों के शोर में प्राचीन और पारंपरिक ज्ञान – पद्धतियों के लगभग भुला दिया गया है. उनमें से कुछेक की याद तब आती है, जब कोई बड़ा वैज्ञानिक तथ्य किसी लोक – परम्परा से जा जुड़ता है. हमारे देश में जब भी अनेक स्थानों पर प्राचीन ज्ञान – परंपरायें विद्वान हैं, जिन्हें लोग ने सहेज रखा है.
भारत में कई ऐसे गांव हैं जहां हजारों वर्षों तक ज्ञान – परंपराएं फलती फूलती रही हैं. आज भी उन्हें ज्ञान परंपरा होने की मान्यता तक प्राप्त नहीं है. लेकिन अगर आप उस समाज के अवचेतन में गहरे उतरने की क्षमता रखते हैं, तो यह समझने में देर नहीं लगेगी कि ज्ञान परंपराएं मरती नहीं है. कालक्रम में उन पर धूल की परतें जरूर जम जाती हैं और उनका स्थानांतरण चेतन से अवचेतन में हो जाता है. वहां के लोग उन ज्ञान – परंपराओं से जुड़े होते हैं. उनके दैनिक जीवन, पर्व – त्योहार और शादी – विवाह के विधि – विधानों, रीति-रिवाजों में उन ज्ञान परंपराओं की उपस्थिति मिल जाएगी.
बिहार के मिथिला में ऐसे कई गांव हैं, जहां न्याय और मीमांसा की परंपरायें अब भी जीवित हैं इनकी शास्त्रीय परंपराएं तो फलती – फूलती रहीं, लेकिन लौकिक परंपराओं का कोई सटीक अध्ययन नहीं हुआ फिर भी लौकिक परंपराओं के अध्ययन से लगता है कि यह पूरी जीवन प्रणाली थी. मिथिला क्षेत्र के कई गांवों में न्याय और मीमांसा के बड़े विद्वान हुए हैं. शायद उनका होना ही इस बात का प्रमाण है कि इन गांवों के अवचेतन में इन परंपराओं का बास होगा.
ज्ञान – परंपरा से जुड़ी एक ऐसी जगह है पटना के पास खगौल शहर के निकट एक गांव तारेगना. पांचवीं शताब्दी में इस जगह का नाम कुसुमपुर से खगौल उस समय हो गया जब आर्यभट्ट ने इसे अपना कार्यक्षेत्र बनाया. जिस गांव में रहकर आर्यभट्ट ने आकाश में ग्रह – नक्षत्र और तारों की स्थिति का अध्ययन किया था, उसका नाम तारेगना पड़ गया. एकाएक जुलाई, 2009 में तारेगना के बारे में दुनिया को तब पता चला, जब नासा ने घोषणा की कि इस जगह से उस बार के पूर्ण सूर्य ग्रहण को देखना संभव हो पाएगा. खास बात है कि आज भी खगौल में आर्यभट्ट का जन्मदिन मनाने की परंपरा है और उनसे जुड़ी अनेक कहानियां हैं.
प्रश्न –
(क)आप कैसे कह सकते हैं कि जनमानस आज भी ज्ञान परंपराओं से जुड़ा है ?
(ख)‘न्याय और मीमांसा के परंपराएं अब भी जीवित हैं’ – इस तथ्य की पुष्टि के लिए लेखक ने क्या तर्क दिए हैं ?
(ग)पूरी दुनिया में ‘तारेगना’ की पहचान क्यों और कैसे बनी ?
(घ)लोगों द्वारा सहेज कर रखी गई पारंपरिक ज्ञान – पद्धतियों की ओर ध्यान कब आकर्षित होता है ?
(ङ)उपर्युक्त गद्दांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए.
उत्तर –

(क)इसका प्रमाण यह है कि आज बिहार में मिथिला के कई ऐसे गांव हैं, जहां न्याय और मीमांसा की परंपरायें जीवित हैं. इसी प्रकार तारेगना गांव में आज भी आर्यभट्ट का जन्म दिवस मनाया जाता है.
(ख)लेखक ने इस तथ्य की पुष्टि के लिए बताया है कि आज भी मिथिला के गांवों में न्याय और मीमांसा के विद्वान मिल जाते हैं, जो इसकी परंपरा को जीवित रखे हुए हैं.
(ग)पूरी दुनिया में ‘तारेगना’ की पहचान तब हुई जब जुलाई 2009 में नासा ने घोषणा की कि पूर्ण सूर्य ग्रहण के दर्शन तारेगना गाँव से ही हो सकेंगे. ‘तारेगना’ पटना का एक गांव है, जहां कभी आर्यभट्ट ने खगोलीय प्रयोग किए थे.
(घ)जब कभी अचानक कोई वैज्ञानिक तथ्य लोक – परंपरा से जुड़ जाता है तो लोगों द्वारा सहेज कर रखी गई पारम्परिक ज्ञान – पद्धतियों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित हो जाता है.
(ङ)लोक में जीवित ज्ञान परंपराएं.

4.महात्मा गांधी ने कोई 12 साल पहले कहा था – मैं बुराई करने वालों को सजा देने का उपाय ढूंढने लगूँ तो मेरा काम होगा उनसे प्यार करना और धैर्य तथा नम्रता के साथ समझाकर सही रास्ते पर ले आना. इसलिए असहयोग या सत्याग्रह घ्रणा का गीत नहीं है. असहयोग का मतलब बुराई करने वाले से नहीं, बल्कि बुराई से असहयोग करना है.
आपके असहयोग का बुराई को बढ़ावा देना नहीं है. अगर दुनिया बराई को बढ़ावा देना बंद कर दे तो बुराई अपने लिए आवश्यक पोषण के अपने – आप मर जाए. अगर हम यह देखने की कोशिश करें कि आज समाज में जो बुराई है, उसके लिए खुद हम कितने जिम्मेदार हैं तो हम देखेंगे कि समाज से बुराई कितनी जल्दी दूर हो जाती है. लेकिन हम प्रेम की एक झूठी भावना में पढ़कर इसे सहन करते हैं. मैं उस प्रेम की बात नही करता, जिसे पिता अपने गलत रास्ते पर चल रहे पुत्र पर मोहांध होकर बरसाता चला जाता है, उसकी पीठ थपथपाता है, और न मैं उस पुत्र की बात कर रहा हूँ जो झूठी पितृ – भक्ति के कारण अपने पिता के दोषों को सहन करता है. मैं उस प्रेम की चर्चा नहीं कर रहा हूँ. मैं तो उस प्रेम की बात कर रहा हूं, जो विवेकयुक्त है और जो बुद्धियुक्त है और जो एक भी गलती की ओर से आँख बंद नहीं करता. यह सुधारने वाला प्रेम है.
प्रश्न –
(क)गांधी जी बुराई करने वालों को किस प्रकार सुधारना चाहते हैं ?
(ख)बुराई को कैसे समाप्त किया जा सकता है ?
(ग)‘प्रेम’ के बारे में गांधी जी के विचार स्पष्ट कीजिए.
(घ)असहयोग से क्या तात्पर्य है ?
(ङ)उपयुक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए.
उत्तर –

(क)गांधीजी बुराई करने वालों को प्यार, धैर्य और नम्रता से समझाकर सही रास्ते पर लाना चाहते हैं.
(ख)बुराई को समाप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है – उसे विनम्रता पूर्वक रोकना. उसे बढ़ावा देने में असहयोग करना. इस प्रकार सहयोग के अभाव में बुराई अपने – आप समाप्त हो जाएगी.
(ग)गांधीजी अंधे मोह, अंधी ममता और अंधी भक्ति को प्रेम नहीं मानते. वे विवेक, बुद्धिमत्ता और सावधानी से किए जाने वाले सुधार को सच्चा प्रेम कहते हैं.
(घ)‘असहयोग’ का अर्थ है – बढ़ावा न देना.
(ङ)गांधी जी का असहयोग – दर्शन.

5.समय परिवर्तनशील है तो आज हमारे साथ नहीं है, कल हमारे साथ होगा और हम अपने दुख और असफलता से मुक्ति पा लेंगे. यह विचार ही हमें सहजता प्रदान कर सकता है. हम दूसरे की संपन्नता, ऊंचा पद और भौतिक साधनों की उपलब्धता देखकर विचलित हो जाते हैं कि उसके पास तो है किंतु हमारे पास नहीं है. वह हमारे विचारों की गरीबी का प्रमाण है और यही बात अंदर विकट असहज भाव का संचालन करती है.
जीवन में सहजता का भाव न होने की वजह से अधिकतर लोग हमेशा ही असफल होते हैं सहज भाव लाने के लिए हमें एक तो नियमित रूप से योगासन – प्राणायाम और ध्यान करने के साथ ही ईश्वर का स्मरण अवश्य करना चाहिए. इससे हमारे तन – मन और विचारों के विकार बाहर निकलते हैं और तभी हम सहजता के भाव का अनुभव कर सकते हैं. याद रखने की बात है कि हमारे विकार ही अंदर बैठकर असहजता का भाव उत्पन्न करते हैं. ईर्ष्या – द्वेष और पर निंदा जैसे गुण हम अनजाने में ही अपना लेते हैं और अंततः जीवन में हर पल असहज होते हैं और उससे बचने के लिए आवश्यक है कि हम आध्यात्म के प्रति अपने मन और विचारों का रुझान रखें.
प्रश्न –
1.कौन – सा विचार हमे सहजता प्रदान करता है ?
2.हम किस कारण जीवन में विचलित होते हैं ?
3.जीवन में असफलता का क्या कारण होता है ?
4.योगासन और प्राणायाम करने से क्या लाभ होता है ?
5.हमें सहज से असहज बनाने वाले भाव कौन-कौन से हैं ?
6.हमारे विचारों की गरीबी किसे कहा गया है ?
उत्तर –

1.समय परिवर्तनशील है. आज नहीं तो कल, हम अपने दुखों से मुक्ति पा लेंगें – यही विचार हमें सहजता प्रदान करता है.
2.दूसरों की भौतिक उन्नति, ऊचाई और संपन्नता देख कर हम विचलित हो जाते हैं.
3.असहजता ही वह मूल कारण जिससे हम जीवन में असफल होते हैं.
4.योगासन और प्राणायाम करने से हमारे तन और मन के विकार बाहर निकल जाते हैं. इस प्रकार हम सहजता अनुभव करते हैं.
5.ईर्ष्या, द्वेष, परिनिंदा जैसे विकार ही हमें सहज से असहज बना देते हैं.
6.दूसरों के पास सब कुछ है, मेरे पास कुछ नहीं – यह नकारात्मक क्षुद्रता ही हमारे विचारों की गरीबी है.

6.किसी काम को करने के लिए सदा तैयार रहना तथा उस काम को करने में आनंद अनुभव करना उत्साह का मुख्य लक्षण है. उत्साह कई प्रकार का होता है परंतु सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है. जिस कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दुख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है. उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है और वह है धन – त्याग का साहस. यही त्याग यदी मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा. इसी प्रकार युद्ध क्षेत्र में वीरता दिखाने वाले तथा दया के लिए वीरता दिखाने वाले भी अपने क्षेत्र में कार्य करने वाले होते हैं.
प्रश्न –
1.उत्साह का सबसे बड़ा लक्षण क्या है ?
2.सच्चे उत्साह के लिए क्या आवश्यक है ?
3.दानदाता में किस प्रकार का उत्साह दिखाई देता है ?
4.उत्साह पूर्वक पूर्वक किए गए दान में क्या आवश्यक है ?
5.इस अनुच्छेद में किस प्रकार के उत्साह पूर्ण कार्यों का उल्लेख है ?
6.उत्साह के कारण मनुष्य के मन में किस प्रकार की ताकत आती है ?
उत्तर –

1.उत्साह का सबसे बड़ा लक्षण यह है कि उत्साही अपने कार्य को बड़े आनंद के साथ करने के लिए तैयार रहता है.
2.सच्चे उत्साह के लिए आवश्यक है कि वह मनुष्य को कोई न कोई कार्य करने के लिए प्रेरित अवश्य करें.
3.दानदाता में धन त्यागने का उत्साह दिखाई देता है.
4.उत्साह पूर्वक किए गए दान में प्रसंता का प्रकट होना आवश्यक है.
5.इस अनुच्छेद में तीन प्रकार के उत्साह का वर्णन है – दान देने वाला उत्साह, युद्ध लड़ने का उत्साह और दया दिखलाने का उत्साह.
6.उत्साह के कारण मनुष्य में बड़े से बड़ा कष्ट, दुख या हानि उठाने की ताकत आती है.

7.संसार का कोई भी धर्म आदमी – आदमी में बैर रखना नहीं सिखाता. सभी धर्म यही कहते हैं – सभी मानव समान हैं. आश्चर्य की बात यही है कि सभी को समान कहते हुए भी वे आपस में लड़ते हैं. उन सब में एक बुराई समान रूप से वर कर जाती है. वे स्वयं को समझने लगते हैं. उनके मन में यह गुमान होने लगता है कि उनके धर्म को मानने वाले संसार में सर्वश्रेष्ठ हैं. यहीं से औरों को नीचा मानने की शुरुआत हो जाती है. संसार में अनेक धर्म है. सभी धर्म एक – दूसरे से टकराने को तैयार रहते हैं. उनकी इस टकराहट का लाभ उठाते हैं – कुछ स्वार्थी नेता. वे धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं. वे दो धर्मों को झगड़ती हुई बिल्ली के समान देखना चाहते हैं. यह बिल्लियाँ शांत हो तो राज नेताओं को खुजली होने लगती है. वे जानबूझकर उन्हें लड़ाते हैं. कभी अंग्रेजों में हिंदू – मुसलमान के नाम पर भारतीयों को लड़ाया. कभी पंजाब में हिंदुओं और सिखों को लड़ाया गया. पाकिस्तान में भी शिया – सुन्नी के नाम पर राजनीति होती है. ऐसे समय में जनता को संयम रखना चाहिए. उन्हें हर कीमत पर समझदारी बरसते हुए आपसी भाईचारा बनाए रखना चाहिए.
प्रश्न –
1.सभी धर्म किस बारे में समाज शिक्षा देते हैं ?
2.लेखक के लिए हैरानी की बात क्या है और क्यों ?
3.सभी धर्मों में कौन सी बुराई घर कर जाती है और क्यों ?
4.धर्मों की लड़ाई का लाभ कौन उठाते हैं ?
5.धर्म के नाम पर कौन-कौन सी लड़ाइयों का उल्लेख किया गया है ?
6.धर्म के नाम पर होने वाली लड़ाईयों में जनता को क्या करना चाहिए ?
उत्तर –

1.सभी धर्म सभी मानवों को समान मानते हैं और आपस में न लड़ने की सीख देते हैं.
2.लेखक के लिए सबसे बड़ी हैरानी यह है कि सभी धर्म सब समान को समान कहते हैं फिर भी वे आपस में लड़ते झगड़ते हैं.
3.सभी धर्मों में अपने – आप को बड़ा मानने की बीमारी घर कर जाती है.
क्यों – वे अपने धर्म को खासकर अपने – आप को भी खास समझते लगते हैं.
4.धर्मों की लड़ाई का लाभ राजनेता उठाते हैं.
5.धर्म के नाम पर राजनेताओं ने हिंदु – मुसलमानों को लड़ाया, पंजाब में सिख – हिंदुओं को लड़ाया तथा पाकिस्तान में शिया – सुन्नियों को लड़ाया.
6.धर्म के नाम पर होने वाली लड़ाईयों में जनता को बड़ी समझदारी और संयम से काम लेना चाहिए तथा आपसी भाईचारा बनाए रखना चाहिए.

8.विद्यार्थी जीवन ही वह समय है जिसमे बच्चों के चरित्र, व्यवहार तथा आचरण को जैसा चाहे, वैसा रुप दिया जा सकता है. यह अवस्था भावी वृक्ष की उस कोमल शाखा की भांति है, जिसे जिधर चाहे मोड़ा जा सकता है. पूर्णतः विकसित वृक्ष की शाखाओं को मोड़ना संभव नहीं. उन्हें मोड़ने का प्रयास करने पर भी वे टूट तो सकती है पर मुढ़ नहीं सकतीं. छात्रावास उस श्वेतचादर की तरह होती है. जिसमें जैसा प्रभाव डालना हो डाला जा सकता है. सफेद चादर पर एक बार जो रंग चढ़ गया, सो चढ़ गया, फिर से वह पूर्वावस्था को प्राप्त नहीं हो सकती. इसीलिए प्राचीन काल से ही विद्यार्थी जीवन के महत्व को स्वीकार किया गया है. इसी अवस्था से सुसंस्कार और सद्वृत्तियाँ पोषित की जा सकती हैं. इसीलिए प्राचीन समय में बालक को घर से दूर गुरुकुल में रहकर कठोर अनुशासन का पालन करना होता था.
प्रश्न –
1.प्रस्तुत गद्दांश का उपयुक्त शीर्षक चुनिए.
2.छात्रों को गुरुकुल में क्यों छोड़ा जाता था ?
3.‘अनुशासन’ शब्द में किस उपसर्ग का प्रयोग किया गया है ?
4.व्यवहार को सुधारने का सर्वोत्तम समय कौन – सा है और क्यों ?
5.छात्रावस्था की उपयुक्त तुलना किस – किससे की गई है और क्यों ?
उत्तर –

1.विद्यार्थी जीवन.
2.बचपन में छात्रावस्था में ही बालकों में अच्छे संस्कार और सद्वृत्तियाँ डाली जा सकती हैं. इसके लिए उन्हें घर से दूर गुरुकुलों में रखा जाता था ताकि वे कठोर अनुशासन द्वारा संस्कार ग्रहण कर सकें.
3.अनु.
4.व्यवहार को सुधारने का सर्वोत्तम समय है – विद्यार्थी – जीवन अर्थात बाल्यकाल. उस समय उनका मन वृक्ष की कोमल शाखाओं जैसा होता है जिसे जिधर चाहो मोड़ा जा सकता है.
5.छात्रावस्था की तुलना वृक्ष की कोमल शाखाओं और सफ़ेद चादर से की गई है जिस प्रकार कोमल शाखाओं को अपनी इच्छानुसार ढाला जा सकता है और सफेद चादर पर मनचाहे रंग चढ़ाए जा सकते हैं, उसी प्रकार बालकों के कोमल मनों पर जैसे चाहे, वैसे संस्कार डाले जा सकते हैं.

9. हाल तक गुरु से मार खाकर लड़के जब तक घर रोते – रोते पहुँचते थे तो माता – पिता यही कहते थे, “जो गुरु से मार खाते हैं उनका भविष्य उज्ज्वल होगा ही.” मगर आज गुरु किसी बच्चे को पीटे तो उन पर अभिभावक मुकद्दमा चला देगा. आज के गुरु में सिर्फ सेवा लेने में ही चतुर है देने में नहीं. उपनिषदों में आचार्य ने कहा, “सेवा देने की चीज है लेने की नहीं,” सेवा लेने के अधिकारी बच्चे, रोगी, असहाय और वृद्ध हैं. बच्चों को परमेश्वर का ही मूर्त रूप समझ सेवा रुपी पूजा से उनकी शक्ति को प्रज्वलित करने की क्षमता और सह्रदयता रखने वाले ज्ञानी और तपस्वी पुरोहित आजकल के गुरु नहीं रह गए हैं. किसी भी देव मंदिर की मूर्ति की शक्ति उतनी मात्रा तक ही संभव है जितनी मात्रा तक उसके पुजारी की भाव पूजा में नैवेद्ध भावना भरी रहती है. मूर्ती में स्वयं कुछ भी नहीं है. पुजारी की शक्ति ही मूर्ती में विकसित होने लगती है. काश, भारतीय संस्कृति का यह रहस्य भारतीय समझ पाते. इसका ज्ञान न होना तो आज हमारे सारे दुखों का कारण है.
प्रश्न –
1.पुराने और आज के गुरुओं में क्या अंतर है ?
2.‘गुण’ शब्द में उपसर्ग लगाकर विलोम बनाइए.
3.भारतीय संस्कृति का कौन सा रहस्य लोग भूल चुके हैं ?
4.देव मंदिर की मूर्ति की शक्ति किस बात पर निर्भर है ?
5.गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए.

उत्तर –
1.आज के गुरुओं और पुराने गुरुओं में अंतर है. पुराने गुरु अपने शिष्य को पूरी निष्ठा से संस्कारित करते थे, सँवारते थे.इसके लिए वे अपने प्रिय शिष्यों को दंड भी दिया करते थे. उनके दंड को शिष्य और उनके माता-पिता स्वीकार करते थे. आज के गुरु अपने शिष्यों के प्रति सेवा भाव नहीं रखते. वे उनकी सेवा करने की वजाय उनसे सेवा लेते हैं.
2.अवगुण.
3.भारतीय संस्कृति का रहस्य है कि यहां शक्ति भगवान की मूर्ति में नहीं अपितु उसके पुजारी की भाव – पूजा में होती है. पुजारी जितनी निष्ठा और समर्पण से आराधना करता है, वही शक्ति मूर्ति में प्रतिष्ठित होने लगती है.
4.देव मंदिर की मूर्ति उसके पुजारी की भाव – भक्ति पर निर्भर है.
5.भारत में गुरु – शिष्य संबंध.

10.हमारे देश के त्योहार चाहे धार्मिक दृष्टि से मनाए जा रहे हो या नए वर्ष के आगमन के रूप में, फसल की कटाई एवं खलिहानों के भरने की खुशी में हो या महापुरुषों की याद में, सभी अपनी विशेषताओं एवं क्षेत्रीय प्रभाव से युक्त होने के साथ ही देश की राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक एकता और अखंडता को मजबूती प्रदान करते हैं. ये त्यौहार जहां जनमानस में उल्लास, उमंग एवं खुशहाली भर देते हैं. वही हमारे अंदर देशभक्ति एवं गौरव की भावना के साथ-साथ विश्व – बंधुत्व एवं समन्वय की भावना भी बढ़ाते हैं. इनके द्वारा महापुरुषों के उपदेश हमें बार-बार इस बात की याद दिलाते हैं कि सद्विचार एवं सद्भावना द्वारा ही हम प्रगति की ओर बढ़ सकते हैं. इन त्योहारों के माध्यम से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि वास्तव में धर्मों का मूल लक्ष्य एक है, किंतु उस लक्ष्य तक पहुंचने के तरीके अलग-अलग हैं.
प्रश्न –
1.देश की राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक एकता और अखंडता को कौन मजबूती प्रदान करता है ?
2.त्योहारों से हमें क्या लाभ हैं ?
3.हम सदभावना पूर्वक उन्नति की ओर किस प्रकार बढ़ सकते हैं ?
4.त्योहारों के माध्यम से हमें धर्म के विषय में क्या प्रेरणा मिलती है ?
5.इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए.
6.देश की राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक एकता और अखंडता को कौन मजबूती प्रदान करता है?

(क)देश की प्रगति
(ख)धार्मिक उपदेश
(ग)त्यौहार
(घ)जनमानस
7. त्योहारों से हमें क्या लाभ है?
(क)महापुरुषों की याद दिलाते हैं
(ख)देश की एकता और अखंडता मजबूत करते हैं
(ग)देशभक्ति की भावना बनाते हैं
(घ)उपरोक्त सभी
8. हम उन्नति की और किस प्रकार बढ़ सकते हैं?
(क)सद्विचारों से
(ख) सद्विचारो एवं सद्भावना से
(ग) देश की अखंडता से
(घ) महापुरुषों के उद्देश्य से
9. त्यौहार के माध्यम से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ?
(क) सभी धर्मों का मूल लक्ष्य एक है
(ख) ईश्वर – प्राप्ति के तरीके अलग-अलग हैं
(ग) अपने – अपने धर्म पर चलना चाहिए
(घ) देश – भक्ति और देश के गौरव की
10. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है.
(क) धर्म का मार्ग
(ख) देशभक्ति
(ग) त्योहारों का महत्व
(घ) हमारे त्योहार अलग-अलग हैं.
उत्तर –
1.विविध प्रकार के त्यौहार देश की राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक एकता और अखंडता को मजबूती प्रदान करते हैं.
2.त्योहार जनमानस में उल्लास, उमंग और खुशहाली भरते हैं. ये हमारे मन में देशभक्ति और विश्वबन्धुता का भाव भरते हैं. ये सदभावनापूर्ण प्रगति का संदेश देते हैं तथा सभी धर्मों एकता स्थापित करते हैं.
3.विविध त्योहारों में सम्मलित होकर ही हम सदभावना पूर्ण प्रगति की ओर बढ़ सकते है.
4.त्योहार हमें यह प्रेरणा देते हैं कि विश्व के सभी धर्म मूल रूप से एक हैं किन्तु उनके रूप अलग – अलग हैं.
5.त्योहारों का महत्व.
6.(ग)
7. (घ)
8. (ख)
9. (क)
10. (ग)

11. साहस की जिंदगी सबसे बड़ी जिंदगी होती है. ऐसी जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बिल्कुल निडर, बिल्कुल बेख़ौफ़ होती है. साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं. जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला आदमी दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है. अड़ोस – पड़ोस को देख कर चलना, यह साधारण जीव का काम है. क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य करते हैं और न अपनी चाल देखकर मद्धिम बनाते हैं. साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता, वह अपने विचारों में रमा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है. झुंड में चलना यह भैंस और भेड़ का काम है. सिंह तो बिल्कुल अकेला होने पर ही मन ही रहता है.
प्रश्न –
1.साहस की जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान क्या होती है ?
2.दुनिया की असली ताकत कैसा आदमी होता है ?
3.साधारण जीव क्या करता है ?
4.सिंह की असली पहचान क्या है ?
5.इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक क्या है ?
6.साहस की जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान क्या होती है ?

(क)मस्त और स्वार्थी होना
(ख)परोपकारी और भला होना
(ग)निडर और बेखौफ होना
(घ)चालाक और चतुर होना
7.दुनिया की असली ताकत कैसा आदमी होता है ?
(क)दूसरों की परवाह न करने वाला
(ख)अनुशासन हीन जीवन जीने वाला
(ग)अपने हिसाब से जीने वाला
(घ)जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला
8.साधारण जीव क्या करता है ?
(क)अड़ोस पड़ोस को देख कर चलता है
(ख)दूसरों की नकल करता है
(ग)आंख मूंदकर चलता है
(घ)सोच – समझ कर चलता है
9.सिंह की असली पहचान क्या है –
(क)वह बेधड़क और निडर होता है
(ख)वह हिंसक और आक्रमक होता है
(ग)वह जंगल का राजा है
(घ)वह अकेला होने पर भी मग्न रहता है
10.इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक क्या है ?
(क)मस्त जिंदगी
(ख)लापरवाह जिंदगी
(ग)बेकार जिंदगी
(घ)चाहत भरी जिंदगी
उत्तर –
1.साहस की जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान निडर और बेखौफ होना है साहसी मनुष्य किसी की देखा देखी काम नहीं करता. वह जनमत की उपेक्षा करके अपनी ही चाल से चलता है.
2.दुनिया की असली ताकत जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला आदमी होता है. वह दूसरों की देखा देखी अपनी चाल को मद्धिम नहीं बनाता.
3.साधारण जीव अड़ोस – पड़ोस को देख कर चलता है.
4.सिंह की असली पहचान यह है कि वह अकेला होने पर भी मग्न रहता है.
5.साहस भरी जिंदगी.
6.(ग)
7. (घ)
8. (क)
9. (घ)
10. (घ)

12.आजकल दूरदर्शन पर आने वाले धारावाहिक देखने का प्रचलन बढ़ गया है. बाल्यावस्था में यह शौक अच्छा नहीं है. दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों का स्तर बहुत ही घटिया होता है. उनमे अश्लीलता, अनास्था, फैशन तथा नैतिक बुराइयां ही अधिक देखने को मिलती हैं. अभी बालक मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होते. इस उम्र में जो भी वे देखेंगे उनका प्रभाव निश्चित ही उनके दिमाग पर अंकित हो जाएगा. बुरी आदतों को वे शीघ्र ही अपना लेंगे. समाजशास्त्रियों के एक वर्ग का मानना है कि समाज में चारों ओर फैली बुराइयों का एक बड़ा कारण दूरदर्शन तथा चलचित्र ही हैं. सब इस बात से भलीभांति परिचित हैं. इतना सब ज्ञान होने के बाद भी यदि वे इसी तरह राह पर आगे बढ़ते रहे तो उनसे बड़ा मूर्ख और कोई नहीं है. बिना समय ही पाबंदी के घंटो दूरदर्शन के साथ चिपके रहना बिल्कुल गलत है. इससे मानसिक विकास रुक जाता है. दृष्टि में कमजोरी आ सकती है और तनाव बढ़ सकता है.
प्रश्न –
1.गद्धांश का उपयुक्त शीर्षक क्या होगा ?
2.दूरदर्शन का दुष्प्रभाव बच्चों पर अधिक क्यों पड़ता है ?
3.आजकल दूरदर्शन के धारावाहिक किस प्रकार के हैं ?
4.दूरदर्शन से चिपके रहने के क्या – क्या दुष्परिणाम होते हैं ?
5.समाजशास्त्री क्यों मानते हैं ?
6.बाल्यावस्था का संधि विच्छेद कीजिए.
उत्तर –

1.बुराइयों की जड़ – दूरदर्शन.
2.दूरदर्शन के धारावाहिकों का असर बच्चों पर अधिक पड़ता है. कारण यह है कि वे मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होते. अतः वे धारावाहिकों में दिखाई जाने वाली बुराइयों के शिकार जल्दी हो जाते हैं.
3.आजकल के धारावाहिक बहुत घटिया स्तर के हैं. उनमे अश्लीलता, अनास्था, फैशनपरस्ती तथा नैतिक बुराइयों की भरमार होती है.
4.दूरदर्शन से अधिक समय तक चिपके रहने से बच्चों का मानसिक विकास रुक जाता है उनकी आंखें कमजोर हो जाती हैं और मानसिक तनाव बढ़ जाता है.
5.समाजशास्त्री मानते हैं कि सामाजिक बुराइयों के बढ़ने का एक बड़ा कारण दूरदर्शन और चलचित्र हैं.
6.बाल्य + अवस्था.

13. ‘देहदान’ शब्द सुनते या पढ़ते ही सबसे पहला विचार जो दिमाग में आता है, वह है – ‘मृत्यु’ अवश्यंभावी है. आज नहीं तो कल, कोई पहले तो कोई बाद में मृत्यु को प्राप्त करता है. मृत्यु के नाम से ही मन में भय का संचार होने लगता है. मानव – शरीर – धारी भगवान राम और कृष्ण को भी समय आने पर यह शरीर त्यागना पड़ा था. जो जन्म के साथ ही निर्धारित है, उसमें भय कैसा. इससे बचने का कोई उपाय नहीं है, चाहे कोई कितना ही बलवान, धनवान और तपस्वी हो से बच नहीं पाया. सारे संसार के पुराण – इतिहास इस बात के गवाह हैं. प्राचीन या वर्तमान विज्ञान कितना ही उन्नत हो गया हो, लेकिन मृत्यु पर विजय हासिल करना एक सपना ही है. फिर इस क्षण – भंगुर और अंत में राख के ढेर में बदलने वाले – शरीर या उसके अंगों किसी जरूरतमंद के लिए समर्पित कर देने में क्या हर्ज है. और फिर इसे पाने के लिए आपने स्वयं कोई प्रयास नहीं किया है या धन भी खर्च नहीं किया.
प्रश्न –
1.‘देहदान’ शब्द सुनते ही सबसे बड़ा विचार क्या आता है ?
2.मृत्यु के बारे में कौन – सी बात सत्य है ?

हमें अपना अंगदान क्यों कर देना चाहिए ?
4.देहदान करने से हमारा कुछ भी नहीं जाता – क्यों
5.‘देहदान’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए.
6.इस गद्धांश से एक संस्कृत तथा एक उर्दू शब्द चुनिए.
उत्तर –

1.‘देहदान’ शब्द सुनते ही सबसे बड़ा विचार यह आता है कि मृत्यु अवश्य अवश्यंभावी है.
2.मृत्यु के बारे में सत्य यही है एक न एक दिन सबको मरना है. आज तक कोई भी मृत्यु पर विजय नहीं पा सका. बड़े-बड़े तपस्वी, महात्माओं को भी अंततः मरना पड़ा है.
3.मरने के बाद हमारा शरीर व्यर्थ हो जाता है. दूसरे, हमें यह शरीर बिना कोई मूल्य चुकाए मिला है. ऐसे निस्वार्थ रूप से पाए शरीर को औरों के कल्याण के लिए मृत्यु के बाद दान कर देना हमारा कर्तव्य बनता है.
4.हमारी यह देह अंत में समाप्त हो जानी है और राख के ढेर में बदल जानी है. इसीलिए इसे किसी जरूरतमंद के लिए अर्पित करने में कोई हर्ज नहीं है.
5.मानव कल्याण के लिए अपने शरीर का दान कर देना.
6.संस्कृत – प्रयास
उर्दू – हर्ज.

14. मानव जीवन में अवसर का अत्यधिक महत्व है. जो व्यक्ति उचित अवसर को नहीं पहचानता तथा अवसर के अनुकूल कार्य नहीं करता, वह जीवन में कभी भी सफलता अर्जित नहीं कर पाता. बुद्धिमान व्यक्ति की अवसर को पहचानता है तथा सफलता के स्वर्ण पथ पर अग्रसर होता रहता है. संसार में जो व्यक्ति धन, वैभव तथा ख्याति प्राप्त करते हैं, वे अवसर का सर्वोत्तम उपयोग करना जानते हैं. यदि व्यक्ति अवसर का उपयोग न करके टालमटोल करता रहता है, पेट भरने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर पाता. हमें स्मरण रखना चाहिए कि बीता हुआ अवसर कभी लौटकर नहीं आता. कई बार व्यक्ति ज्यादा अच्छी नौकरी पाने की लालसा में भटकते रहते हैं और उनकी आयु अधिक हो जाती है. ऐसी स्थिति में जीवन भर भटकते रहना ही उनकी नियति बन जाती है. बुद्धिमान व्यक्ति ही अवसर का लाभ उठाते हैं. जीवन में सफलता का मन्त्र अवसर का सदुपयोग ही है. जो व्यक्ति अवसर को पहचान कर तत्परता से कार्य करता है, वह साधारण लोगों के लिए एक आदर्श बन जाता है.
प्रश्न –
1.मानव जीवन में सबसे अधिक महत्व किस चीज का है ?
2.आशय स्पष्ट कीजिए – बीता हुआ कल कभी लौटकर नहीं आता.
3.कौन से व्यक्ति जीवन में सफल नहीं हो पाते ?
4.बुद्धिमान किसे कहा गया है ?
5.इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक दीजिए.
6.रचना की दृष्टि से वाक्य का प्रकार बताइए –हमें स्मरण रखना चाहिए कि बीता हुआ अवसर कभी लौटकर नहीं आता.
उत्तर –

1.मानव – जीवन में सबसे अधिक महत्त्व अवसर का है.
2.आशय यह है कि उचित अवसर ए चूक जाने पर सफलता हाथ नहीं लगती. उचित अवसर एक बार आता है. एक बार अवसर छूट गया तो अवसर फिर – से नहीं आता.
3.जो व्यक्ति उचित अवसर का लाभ उठाना भूल जाते हैं, वे कभी सफल नहीं हो पाते. धन, वैभव और ख्याति पाने वाले लोगों ने अवसर का सदुपयोग किया, टालमटोल नहीं की.
4.बुद्धिमान वही है जो उचित अवसर को पहचानता है और उसका उचित उपयोग करता है.
5.अवसर का सदुपयोग.
6.मिश्र वाक्य.

15.दैनिक जीवन में हम अनेक लोगों से मिलते हैं जो विभिन्न प्रकार के काम करते हैं – सड़क पर ठेला लगाने वाला, दूध वाला, नगर निगम का सफाईकर्मी, बस कंडक्टर, स्कूल – अध्यापक, हमारा सहपाठी और ऐसे ही कई अन्य लोग. शिक्षा, वेतन, परंपरागत चलन और व्यवसाय के स्तर पर कुछ लोग निम्न स्तर पर कार्य करते हैं तो कुछ उच्च स्तर पर. एक माली के कार्य को सरकारी कार्यालय के किसी सचिव के कार्य से अति निम्न स्तर को माना जाता है, किंतु यदि यही अपने कार्य को कुशलतापूर्वक करता है और उत्कृष्ट सेवाएं प्रदान करता है तो उसका कार्य उस सचिव के कार्य से कहीं बेहतर है जो अपने काम में ढिलाई बरतता है तथा अपने उत्तरदायित्यों का निर्वाह नहीं करता. क्या आप ऐसे सचिव को एक आदर्श अधिकारी कह सकते हैं ? वास्तव में पद महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि महत्वपूर्ण होता है कार्य के प्रति समर्पण भाव और कार्यप्रणाली में पारदर्शिता.
प्रश्न –
1.उपयुक्त शीर्षक दीजिए
2.किसी भी काम में महत्वपूर्ण क्या है ?
3.एक माली का कार्य सरकारी सचिव के कार्य से भी बेहतर है, कैसे ?
4.सरल वाक्य बनाइए –
दैनिक जीवन में हम अनेक लोगों से मिलते हैं जो विभिन्न प्रकार के काम करते हैं
5.‘बेहतर’ के लिए हिंदी पर्याय क्या होगा ?

उत्तर –
1.उपयुक्त शीर्षक छांटिये –
(क)स्तर – भेद
(ख)काम की महिमा
(ग)ऊँच – नीच
(घ)कर्म निष्ठा की महिमा
2.‘कार्यप्रणाली में पारदर्शिता’ का तात्पर्य है –
(क)काम करने के ढंग में बरती गई चालाकी
(ख)काम करने के ढंग में बरती गई कुशलता
(ग)काम करने के ढंग में बरती गई द्रणता
(घ)काम करने के ढंग में बरती गई स्वच्छ सोच
3.एक माली का कार्य सरकारी सचिव के कार्य से भी बेहतर है, यदि –
(क)माली अपने काम को कुशलता से करें
(ख)सचिव अपने काम को कुशलता से करें
(ग)माली अपने काम को कुशलता से करें किंतु सचिव ढिलाई बरते
(घ)दोनों के काम की तुलना उनके पद – वेतन से न की जाए
4.सरल वाक्य बनाइए –
दैनिक जीवन में हम अनेक लोगों से मिलते हैं जो विभिन्न प्रकार के काम करते हैं.
(क)दैनिक जीवन में हम ऐसे अनेक लोगों से मिलते हैं जो विभिन्न प्रकार के काम करते हैं
(ख)दैनिक जीवन में अनेक लोगों से मिलते हैं और वे विभिन्न प्रकार के काम करते हैं
(ग)दैनिक जीवन में हम विभिन्न प्रकार के काम करने वाले लोगों से मिलते हैं
(घ)दैनिक जीवन में हम ऐसे विभिन्न प्रकार के काम करने वाले लोगों से मिलते हैं
5.‘बेहतर’ के लिए हिंदी पर्याय क्या होगा ?
(क)उत्कृष्ट
(ख)उत्कृष्टतर
(ग)उत्कृष्टतम
(घ)अच्छा.