Ladka Ladki Ek Saman – भारतीय समाज पुरुष-प्रधान है. इसमें पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाता है. लड़कियों को मात्र ‘खर्चा’ माना जाता है क्योंकि हमारे देश में दहेज – प्रथा बहुत ही प्रचलित है.

Ladka Ladki Ek Saman

लड़का-लड़की की समानताओं को समझने से पहले उनकी असमानताओं को समझना अनिवार्य है. उनका जन्म, खान-पान, पाचन-तंत्र, बीमारी, इलाज, मृत्यु आदि लगभग एक-समान हैं. अंतर मात्र प्रजनन-तंत्र का है. उसमें भी वे दोनों सहयोगी हैं. दोनों में से किसी के बिना सृष्टि-तंत्र नहीं चल सकता.
चुनाव में अंतर – लड़का-लड़की के मन में एक जैसे भाव होते हैं. नारी में कोमलता, भावुकता, व्यवहार-कुशलता अधिक होती है. पुरुष में कठोरता, उग्रता तार्किकता अधिक होती है. इस अंतर का मुख्य कारण उनके कर्म हैं. नारी को संतान-पालन का कर्म करना पड़ता है ; इसलिए ईश्वर ने उसे शारीरिक कोमलता और सुकुमारता प्रदान की है. पुरुष को रक्षण और पालन का कर्म करना पड़ता है, इसलिए उसमें कठोरता अधिक होती है. परंतु यह अंतर मूलभूत नहीं है.
लड़के को महत्व मिलने का कारण – भारतीय समाज पुरुष-प्रधान है. इसमें पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाता है. लड़कियों को मात्र ‘खर्चा’ माना जाता है. इसलिए वे ‘कामधेनु’ जैसी होती हुई भी ‘बोझ’ मानी जाती हैं. धर्म-क्षेत्र में यह धारणा प्रचलित है कि पुरुष योनि में ही मोक्ष मिल सकता है. इसलिए लड़के को अनिवार्य माना जाता है. परिवारों में यह धारणा भी प्रचलित है कि लड़के से ही वंश चलता है. व्यावहारिक कारण यह है कि लड़की को ‘पराया धन’ माना जाता है. उसे विवाह के बाद पति के घर जाना पड़ता है. अतः हर माता-पिता अपने बुढ़ापे के लिए लड़का चाहते हैं.
लड़की को समान महत्त्व मिलना चाहिए – लड़के को हर प्रकार अपने लिए उपयोगी मानकर अनेक माता-पिता लड़के के लालन-पालन, शिक्षा पर आर्थिक व्यय करते हैं, लड़की पर कम. यह अन्याय है. सौभाग्य से शिक्षित परिवारों में यह अंतर मिटता जा रहा है. आर्थिक दबाव को समझते हुए आज की नारियों ने भी कमाना आरंभ कर दिया है. इसलिए आज वे मात्र ‘बोझ’ या ‘खर्चा’ नहीं रहीं. लड़का-लड़की का अंतर करके लड़की को दबाना उचित नहीं. दोनों को अपनी–अपनी अभिरुचि के अनुसार फलने-फूलने का अवसर दिया जाना चाहिए.