Global Warming in Hindi – का सबसे बड़ा कारण है बढ़ती जनसंख्या. धरती जीवनदायिनी है. चंद्र-मंगल आदि ग्रहों पर जीवन नहीं है. इसका कारण है – पर्यावरण या वातावरण. धरती पर जलवायु ऐसी है कि इस पर वनस्पति पैदा हो सकी, जल के स्रोत बन सके और जीव पैदा हो सका.

Global Warming in Hindi

ग्लोबल वार्मिंग – धरती जीवनदायिनी है. चंद्र-मंगल आदि ग्रहों पर जीवन नहीं है. इसका कारण है – पर्यावरण या वातावरण. धरती पर जलवायु ऐसी है कि इस पर वनस्पति पैदा हो सकी, जल के स्रोत बन सके और जीव पैदा हो सका. यह जीवन लीला तभी चल सकती है जबकि यहां का प्राकृतिक वातावरण निर्दोष बना रह सके.
प्राकृतिक असंतुलन – दुर्भाग्य से आज पर्यावरण का यह सन्तुलन टूट गया है. जीवन जीने के लिए जितना ताप चाहिए जितना जल चाहिए, जितने वृक्ष-जंगल चाहिए, जितनी बर्फ, जितने ग्लेशियर और नदियां चाहिए, उन सबमें खलल पड़ गया है. धरती पर जितने हिमखंड चाहिए और जितना समुंद्री जल चाहिए, उसका संतुलन बिगड़ गया है. चौकाने वाली बात यह है कि आज हर रोज एकड़ जमीन समुद्र में समाती जा रही है. उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव के बर्फीले पहाड़ पिघल – पिघल कर समुद्र में मिलते जा रहे हैं. इसके कारण समुद्र का जल बढ़ता जा रहा है. भय है कि आने वाले 30-40 सालों में मद्रास, मुंबई आदि के समुद्र-तट अपने किनारे बसे नगरों को लील जाएंगे. जैसे भगवान कृष्ण की द्वारका नगरी समुद्र में समा गई थी, वैसे ही एक दिन सारी धरती जलमग्न हो जाएगी. यह संसार जल-प्रलय में डूब जाएगा. जो जल जीवन देता है वही एक दिन जीवन को नष्ट कर देगा.
वार्मिंग के कारण – जल की इस विनाशलीला का कारण है – पर्यावरण में बढ़ता हुआ ताप. जितनी मात्रा में हम फ्रिज, ए.सी., परमाणु भट्टियां या कार्बन छोड़ने वाले रसायनों का उपयोग कर रहे हैं. वातावरण में डीजल-तेल या खतरनाक रसायनों को जला रहे हैं. साथ ही नहीं पैदा करने वाले जंगलों और वनस्पतियों को काट रहे हैं, उससे गर्मी भीषण रूप से बढ़ रही है. पूरे वायुमंडल में गर्मी का एक गुब्बारा-सा छा गया है. परिणामस्वरूप हमारे पर्यावरण पर कवच की तरह जमी ओजोन गैस की परत में छेद हो गया है. इससे सूर्य की विषैली किरणें तरह-तरह के रोग पैदा कर रही है. आज मनुष्य के लिए खुली हवा और धूप में निकलना भी दूभर हो गया है.
इस ताप को बढ़ाने में आज का मनुष्य दोषी है. वह सुख-सुविधा के मोह में अपनी मौत का सामान इकट्ठा कर रहा है. इसलिए कवि ने लिखा है –

ओ मनुज ! गर ताप को तू यों बढ़ाता जाएगा.
मत समझ यह जग जलेगा, तू भी न बच पाएगा.
आज इस धरती को तूने है बनाया आग – सा.
तू झुलस कर खुद इसी में एक दिन मर जाएगा.

अशोक बत्रा

उपाय – धरती को ताप से बचाने का एक ही उपाय है – अपने पापों का प्रायश्चित करना. जिन-जिन कारणों से हमने ताप बढ़ाया है, कष्ट उठाकर भी उन कारणों को बढ़ने से रोकना. पौधे लगाना, हरियाली उगाना. मशीनी जीवन की बजाए प्रकृति की गोद में लौटना.