Paropkar par Nibandh – परोपकार को धर्म कहा गया है और करुणा, सेवा सब परोपकार के ही पर्यायवाची हैं. जब किसी व्यक्ति के अन्दर करुणा का भाव होता है तो वो परोपकारी भी होता है. एक परोपकारी व्यक्ति ही समय का सदुपयोग करना भी जनता है.

Paropkar par Nibandh

परोपकार का महत्व – परोपकार अर्थात दूसरों के काम आना इस सृष्टि के लिए अनिवार्य है. वृक्ष अपने लिए नहीं, औरों के लिए फल धारण करते हैं. नदियां भी अपना जल स्वयं नहीं पीतीं. परोपकारी मनुष्य संपत्ति का संचय भी औरों के कल्याण के लिए करते हैं. सारी प्रकृति निस्वार्थ समर्पण का संदेश देती है. सूरज आता है, रोशनी देकर चला जाता है. चंद्रमा भी हमसे कुछ नहीं लेता, केवल देता ही देता है. कविवर पंत के शब्दों में –

हंसमुख प्रसून सिखलाते
पल भर है, जो हँस पाओ.
अपने उर की सौरभ से
जग का आँगन भर जाओ.

परोपकार से प्राप्त अलौकिक सुख – परोपकार का सुख लौकिक नहीं, अलौकिक है. जब कोई व्यक्ति निस्वार्थ भाव से किसी घायल की सेवा करता है तो उस क्षण उसे अपने देवत के दर्शन होते हैं. वह मनुष्य नहीं, दीनदयालु के पद पर पहुंच जाता है. वह दिव्य सुख प्राप्त करता है. उस सुख की तुलना में धन दौलत कुछ भी नहीं है.
परोपकार के विविध उदाहरण – भारत में परोपकारी महापुरुषों की कमी नहीं है. यहां दधीचि जैसे ऋषि हुए जिन्होंने अपनी जाति के लिए अपने शरीर की हड्डियां दान में दे दीं. यहां सुभाष जैसे महान नेता हुए जिन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपना तन-मन-धन और सरकारी नौकरी छोड़ दी. बुद्ध, महावीर, अशोक, गांधी, अरविंद जैसे महापुरुषों के जीवन परोपकार के कारण ही महान बन सके हैं.
परोपकार में ही जीवन की सार्थकता – परोपकार दीखने में घाटे का सौदा लगता है. परंतु वास्तव में हर तरह से लाभकारी है. महात्मा गांधी को परोपकार करने से जो गौरव और सम्मान मिला ; भगत सिंह को फांसी पर चढ़ने से जो आदर मिला ; बुद्ध को राजपाट छोड़ने से जो ख्याति मिली, क्या वह एक भोगी राजा बनने से मिल सकती थी ? कदापि नहीं. परोपकारी व्यक्ति सदा प्रसन्न, निर्मल और हंसमुख रहता है. उसे पश्चाताप या तृष्णा की आग नहीं झुलसाती. परोपकारी व्यक्ति पूजा के योग्य हो जाता है. उसके जीवन की सुगंध सब और व्याप्त हो जाती है. अतः मनुष्य को चाहिए कि वह परोपकार को जीवन में धारण करे. यही हमारा धर्म है.