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पाठ का संपूर्ण हिंदी अनुवाद

 [PAGE 54] :(बचपन से ही भोली की उसके घर में अवहेलना की जाती थी I उसकी अध्यापिका उस में विशेष रुचि क्यों लेती थी ? क्या भोली अपनी अध्यापिका की आशाओं पर पूरी उतरी ?)
उसका नाम सुलेखा था, लेकिन बचपन से सभी उसे भोली, अर्थात बुद्धू कहा करते थे I
वह नंबरदार रामलाल की चौथी बेटी थी I  जब वह दस महीने की थी, वह अपनी चारपाई से सिर के बल नीचे गिर गई थी और शायद उससे उसके दिमाग का कोई भाग क्षतिग्रस्त हो गया हो I यही कारण था कि वह एक पिछड़ी हुई बच्ची रही और उसका नाम भोली पड़ गया, जिसका अर्थ है सादी I
जन्म के समय, बच्ची बहुत अधिक सुंदर थी I लेकिन जब वह दो वर्ष की थी, तो उसे चेचक की बीमारी हो गई I केवल उसकी आंखें बच पाई, लेकिन सारा शरीर स्थायी रूप से चेचक के गहरे काले दागों के कारण कुरूप हो गया I  पाँच वर्ष की आयु तक, छोटी सुलेखा ने बोलना नहीं सीखा और जब उसने बोलना सीखा तो वह हकलाकर बोलती थी I अन्य बच्चे प्राय: उसका मजाक उड़ाते थे और उसकी नकल उतारते थे I इसके फलस्वरूप बहुत कम बोलती थी I
रामलाल के सात बच्चे थे- तीन बेटे और चार बेटियां, और उन सबमें भोली सबसे छोटी थी I यह एक समृद्ध किसान का घर था और खाने-पीने के लिए काफी था I भोली के अतिरिक्त सभी बच्चे स्वस्थ और शक्तिशाली थे I  बेटों को पढ़ने के लिए शहर के स्कूल में भेजा गया और बाद में कॉलेज भेजा गया I बेटियों में राधा, जो सबसे बड़ी थी, की शादी हो गई थी I दूसरी बेटी मंगला की शादी भी तय हो चुकी थी और उसके संपन्न हो जाने के पश्चात रामलाल अपनी तीसरी बेटी चंपा के बारे में सोचेगा I वे सुंदर दिखाई देने वाली स्वस्थ लड़कियां थी और उनके लिए दूल्हा ढूंढना कोई कठिन काम नहीं था I
                परंतु रामलाल भोली के बारे में चिंतित था I न तो वह सुंदर थी और न ही बुद्धिमान I

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Class 10 for 2025-26

CBSE English Class 10 Notes

[PAGE 55]: जब मंगला की शादी हुई उस समय भोली सात वर्ष की थी  I उसी वर्ष उनके गांव में लड़कियों के लिए एक प्राथमिक विद्यालय खुला I तहसीलदार साहब उसके उद्घाटन समारोह को संपन्न करने आए थे I उन्होंने रामलाल से कहा, “राजस्व अधिकारी होने के नाते आप गांव में सरकार के प्रतिनिधि हो इसलिए आपको गांव वालों के सामने एक उदाहरण रखना चाहिए आपको अपनी बेटियों को स्कूल भेजना चाहिए ?”
                उस रात जब रामलाल ने अपनी पत्नी से परामर्श लिया,वह चिल्ला उठी, “क्या तुम पागल हो गए हो ? यदि लड़कियां स्कूल जाएंगी तो उनसे शादी कौन करेगा ?
                लेकिन रामलाल में तहसीलदार की बात न मानने की हिम्मत नहीं थी I आखिर में उसकी पत्नी ने कहा, “मैं आपको बताऊंगी क्या करना है  I भोली को स्कूल भेज दो  I इस हालत में, उसकी शादी होने के कम अवसर है, क्योंकि उसका चेहरा भद्दा है और बुद्धि की कमी है Iस्कूल में अध्यापकों को उसकी चिंता करने दो I”
[PAGES 55-56]: अगले दिन रामलाल ने भोली का हाथ पकड़ा और कहा, “मेरे साथ आओ I मैं तुम्हें स्कूल ले जाऊंगा I” भोली डर गई I वह नहीं जानती थी कि स्कूल किस तरह का होता है उसे याद था कि कैसे कुछ दिन पहले उनकी बूढ़ी गाय, लक्ष्मी, को घर से बाहर निकाल दिया गया था और बेच दिया गया था I




[PAGE 56]: “न-न-न-न नहीं,नहीं-नहीं-नहीं,” वह डर के मारे चिल्लाई और उसने पिता की पकड़ से अपना हाथ खींच लिया I “तुम्हें क्या हुआ, अरे मूर्ख ?” रामलाल चिल्लाया I  “मैं तुम्हें केवल स्कूल ले जा रहा हूं I” तब उसने अपनी पत्नी से कहा, “इसे आज कुछ अच्छे कपड़े पहनने दो, नहीं तो अध्यापिका और स्कूल की लड़कियां इसे देखकर क्या सोचेंगे ?”

भोली के लिए कभी भी नए वस्त्र नहीं बनवाए गए थे I उसकी बहनों के पुराने वस्त्र उसे पहना दिए जाते थे I कोई भी उसके वस्त्रों की मरम्मत करने और उन्हें धोने की चिंता नहीं करता था I लेकिन आज वह साफ वस्त्र प्राप्त करके बहुत भाग्यशाली लग रही थी जबकि वे वस्त्र बार-बार धुलाई के पश्चात सिकुड़ गए थे और चंपा को ठीक नहीं आते थे I उसे स्नान भी कराया गया और उसकी सूखे और उलझे हुए बालों में तेल भी लगाया गया I  केवल तब उसने विश्वास करना आरंभ किया कि उसे उसके घर से अच्छे किसी स्थान पर ले जाया जा रहा है I

                जब भी स्कूल पहुंचे, बच्चे पहले से ही अपनी कक्षाओं में थे I रामलाल ने अपनी बेटी को मुख्याध्यापिका के सुपुर्द कर दिया I अकेली छोड़े जाने पर, बेचारी लड़की ने भयभीत नजरों से इधर-उधर देखा I वहां कई कमरे थे, और प्रत्येक कमरे में उस जैसी लड़कियां चटाईयों पर पालथी मारकर बैठी हुई थी, पुस्तकों में से पढ़ रही थी और स्लेटों पर लिख रही थी I मुख्याध्यापिका ने भोली को कक्षा के एक कमरे में एक कोने में बैठ जाने के लिए कहा I
[PAGE 57]: भोली को यह नहीं पता था कि वास्तव में स्कूल क्या होता है और वहां क्या होता है, लेकिन वह लगभग अपनी आयु की बहुत सारी लड़कियों को वहां देखकर प्रसन्न थीं I  उसे आशा थी इन लड़कियों में से शायद कोई लड़की उसकी सहेली बन जाए I

कक्षा में जो महिला अध्यापक थी वह लड़कियों को कुछ कह रही थी लेकिन भोली कुछ भी नहीं समझ सकी I  वह दीवार पर तस्वीरों को देख रही थी I उनके रंगों ने उसको आकर्षित किया-घोड़ा उसी प्रकार से भूरा था जैसे घोड़े पर तहसीलदार उनके गांव के दौरे पर आया था; बकरी उनके पड़ोसी की बकरी की तरह ही काली थी; तोता उसी प्रकार से हरा था जैसे उसने आम के बगीचों में देखा था; और गाय बिल्कुल उनकी लक्ष्मी के समान थी I और अचानक की भोली ने देखा कि अध्यापिका उसके पास खड़ी थी, और उस पर मुस्कुरा रही थी I
“ छोटी बच्ची, तुम्हारा नाम क्या है ?”
“भ-भो-भो- I” वह इससे अधिक नहीं हकला सकी I
तब उसने रोना शुरू कर दिया और विवश बाढ़ के रूप में उसकी आंखों से आंसू बहने लगे I वह सिर नीचे किए हुए कोने में बैठी रही, उसमें उन लड़कियों की ओर देखने का साहस नहीं हुआ,जिन्हें वह जानती थी,अभी तक उस पर हंस रही थीं I

जब स्कूल की घंटी बजी, सभी लड़कियां तेज गति से कक्षा से बाहर भाग गई, लेकिन भोली में अपने उस कोने को छोड़ने का साहस नहीं हुआ I उसका सिर अभी भी झुका हुआ था, वह अभी भी सुबक कर रही थी I
“भोली I”
अध्यापिका की आवाज़ इतनी नर्म और शांत थी कि अपने पूरे जीवन में उसने इस प्रकार की आवाज कभी नहीं सुनी थी I

यह उसके ह्रदय को गई I




“उठो,” अध्यापिका ने कहा I यह आदेश नहीं था, परंतु मात्र एक मित्रतापूर्वक सुझाव था I भोली उठ गई I
“अब मुझे अपना नाम बताओ I
उसके सारे शरीर पर पसीना आ गया I क्या उसकी हकलाती होई जुबान उसे पुनः अपमानित करवाएगी ? उसे दयालु महिला के लिए, फिर भी, एक बार उसे प्रयास करने का निर्णय किया I उसकी आवाज इतनी शांत थी; वह उस पर नहीं हंसेगी I
“भ-भ-भो-भो-” उसने हकलाकर बोलना शुरू किया I
“शाबाश,शाबाश I” अध्यापिका ने उसका साहस बढ़ाया I “आइए, अब-पूरा नाम ?”
“भ-भ-भो-भोली” आखिरकार वह उसे कह पाई और उसने राहत महसूस की जैसे कि यह महान उपलब्धि हो I
“शाबाश I” अध्यापिका ने उसे स्नेहपूर्वक थपथपाया और कहा, “अपने हृदय से डर को बाहर निकाल दो और तुम भी दूसरों की तरह बोलने में सक्षम हो जाओगी I”
भोली ने ऊपर की ओर देखा जैसे पूछना चाहती है, “सचमुच ?”
[PAGE 58] : “हां,हां,यह बहुत आसान होगा I तुम सिर्फ हर रोज स्कूल आओ I क्या तुम आओगी ?”
भोली ने हां में सिर हिलाया I
‘नहीं, इसे चिल्लाकर कहो I’
“ह-ह-हाँ” और भोली स्वयं हैरान थी कि वह यह सही बोल पाई थी I




 “क्या मैंने तुम्हें नहीं बताया ? अब यह किताब ले लो I”
किताब सुंदर तस्वीरों से भरी हुई थी और तस्वीरें रंगीन थीं- कुत्ता,बिल्ली,बकरी,घोड़ा,तोता,बाघ और बिल्कुल लक्ष्मी जैसी गाय I और प्रत्येक तस्वीर के साथ काले बड़े अक्षरों में एक शब्द लिखा था I
“ एक महीने में तुम इस किताब को पढ़ने में सक्षम हो जाओगी I तब मैं तुम्हें एक बड़ी किताब दूंगी, और तब उससे भी बड़ी किताब I समय आने पर तुम गांव में अन्य किसी से भी अधिक शिक्षित हो जाओगी I  तब कोई भी तुम पर नहीं हस पाएगा I लोग तुम्हारी बात को सम्मानपूर्वक सुनेंगे और तुम बिना थोड़ी-सी भी हकलाहट के बोल सकोगी I समझी ? अब घर जाओ और कल सुबह जल्दी आ जाना I”
                भोली को ऐसा लगा मानो अचानक गांव की मंदिर की सभी घंटियां बज रही थी और स्कूल के सामने वाले घर के सामने खड़े वृक्षों में बड़े-बड़े लाल रंग के फूल खिल गए  I  उसका ह्रदय एक नई आशा और एक नए जीवन से धड़क रहा था I 
इसी प्रकार बर्षों बीत गए I
गांव एक छोटा कस्बा बन गया I छोटा-सा प्राथमिक विद्यालय, उच्च विद्यालय बन गया I अब लोहे के शैड के नीचे एक छोटा सिनेमा और रूई धुलने की एक मिल लग गई I डाक गाड़ी ने उनके रेलवे स्टेशन पर ठहरना आरंभ कर दिया I
                एक रात, रात्रि भोजन के पश्चात रामलाल ने अपनी पत्नी से पूछा, “तब क्या मैं विशंबर का प्रस्ताव स्वीकार कर लूं ?”
“हां,अवश्य ही,” उसकी पत्नी ने कहा I  “भोली ऐसा समृद्ध दूल्हा पाकर बहुत भाग्यशाली रहेगी I एक बड़ी दुकान, एक उसका अपना घर और मैंने सुना है कि उसके कई हजार रुपए बैंक में भी हैं I साथ ही वह दहेज की भी मांग नहीं कर रहा है I”
“वह तो ठीक है, लेकिन वह इतना जवान नहीं है-आपको पता है- लगभग उतनी उम्र का है जितनी का मैं हूं-  और वह लंगड़ाता भी है I साथ ही, उसकी पहली पत्नी के बच्चे भी काफी बड़े हैं I”
[PAGE 59] : “तो इससे क्या फर्क पड़ता है ?” उसकी पत्नी ने उत्तर दिया I  “पैतालीस या पचास- यह  आदमी के लिए अधिक आयु नहीं है  I  हम भाग्यशाली है कि वह दूसरे गांव का है और वह उसके चेचक के दागों और उसकी बुद्धि के अभाव को नहीं जानता I  यदि हम इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं, तो वह सारी जिंदगी कुंवारी रह सकती है I”
“हां, लेकिन मैं हैरान हूं कि भोली क्या कहेगी I”
“वह पागल लड़की क्या कहेगी ? वह तो एक गूंगी गाय के समान है I”
“हो सकता है कि तुम ठीक कह रही हो I” रामलाल बुड़बुड़ाया I
आंगन की दूसरे कोने में भोली अपनी चारपाई पर जागती हुई पड़ी थी, अपने माता-पिता की कानाफूसी वाली बातचीत को सुन रही थी I

विशंबर नाथ एक समृद्ध पंसारी था I वह शादी के लिए मित्रों और रिश्तेदारों की एक बड़ी बरात लेकर आया I बारात के आगे-आगे पीतल का बैंड एक भारतीय फिल्म की लोकप्रिय धुन बजा रहा था, और दूल्हा एक सजी हुई घोड़ी पर सवार था I रामलाल इतनी शानो-शौकात को देखकर अत्यधिक प्रसन्न हो रहा था  I उसने कभी स्वप्न भी नहीं लिया था कि उसकी चौथी बेटी की शादी इतनी शानदार होगी I भोली की बड़ी बहनें, जो उस अवसर पर आई हुई थीं, उसके भाग्य से ईर्ष्या कर रही थीं I




जब शुभ घड़ी आई पंडित ने कहा, “दुल्हन को लाइए I”
भोली, लाल रंग की रेशमी, दुल्हन वाली पोशाक पहने, पवित्र अग्नि के पास बने दुल्हन वाले स्थान तक लाई गई I
“दुल्हन के गले में माला डाल दो,” विशंबर के एक मित्र ने उससे आग्रह करते हुए कहा I
दूल्हे ने पीले रंग के गेंदों की माला उठाई I एक महिला ने दुल्हन के चेहरे पर से रेशमी घूंघट को पीछे सरका दिया I विशंबर ने तेजी से नजर डाली I माला उसके हाथों में अटकी हुई रह गई  I दुल्हन ने धीरे से अपना घूंघट नीचे कर लिया I
“क्या तुमने उसे देख लिया है ?” विशंबर ने अपने से अगले मित्र से पूछा I“उसके चेहरे पर चेचक के दाग हैं I”
“तो क्या हुआ? तुम भी तो जवान नहीं हो”
“हो सकता है I लेकिन यदि मैं इससे शादी करूंगा तो, इसके पिता को मुझे पांच हजार रुपए देने होंगे I”
रामलाल आगे बढ़ा और पगड़ी-अपना सम्मान-विशंबर के पैरों में रख दिया I ‘मुझे इस तरह अपमानित मत कीजिए I दो हजार रुपए ले लीजिए I”
“नहीं I पांच हज़ार वरना हम वापस जाते हैं I अपनी बेटी को रखिए I”
“कृपया, थोड़ा-सा विचारशील बनो I यदि आप वापिस चले गए, तो मैं गांव में कभी भी अपना मुंह नहीं दिखा सकूंगा I”
“तब पांच हजार रूपए  निकालो I”
चेहरे से आंसू गिराते हुए रामलाल अंदर गया, तिजोरी खोली और नोटों को गिना I उसने बंडल को दूल्हे के कदमों में रख दिया I
[PAGE 60]: बिशंबर के लालची चेहरे पर एक विजयी मुस्कान चमकी I उसने जुआ खेला था और जीत गया था “मुझे माला दीजिए,” उसने घोषणा की I
                एक बार फिर दुल्हन के चेहरे से घूंघट हटाया गया, लेकिन इस बार उसकी नजरें नीचे की ओर नहीं झुकी थी I वह ऊपर की ओर देख रही थी, सीधे अपने होने वाले पति की ओर देख रही थी और उसकी आंखों में ना तो गुस्सा था ना ही घृणा, केवल ठंडा तिरस्कार था I
विशम्बर ने दुल्हन के गले में डालने के लिए माला उठाई; लेकिन इससे पहले वह ऐसा कर पाता, भोली का हाथ बिजली की रेखा की तरह बाहर निकला और माला अग्नि में जा गिरी I वह उठ कर खड़ी हो गई और उसने घूंघट को उतार कर फेंक दिया I
“पिताजी !” भोली ने स्पष्ट ऊंची आवाज में कहा: और उसके पिता, माता, बहनें, भाई, रिश्तेदार और पड़ोसी उसे बिना जरा-सी हकलाहट के बोलते हुए सुनकर हैरान रह गए I
“पिताजी ! अपना धन वापस ले लीजिए I मैं इस आदमी से शादी करने वाली नहीं हूं I”
[PAGE 61] : रामलाल हक्का-बक्का रह गया I  मेहमानों ने कानाफूसी करनी शुरू कर दी “इतनी बेशर्म ! इतनी कुरूप और इतनी बेशर्म !”
“ भोली, क्या तुम पागल हो ?” रामलाल चिल्लाया “तुम अपने परिवार को अपमानित करना चाहती हो ? हमारी इज्जत का कुछ तो ख्याल करो !”
“आपकी इज्जत की खातिर” भोली ने कहा, “मैं इस लंगड़े, बूढ़े आदमी से शादी करने को तैयार हो गई थी I लेकिन मैं ऐसी कमीने,लालची और घृणित कायर को अपने पति के रूप में स्वीकार नहीं करूंगी I मैं नहीं, मैं नहीं, मैं नहीं I”
“कितनी बेशर्म लड़की है I हम भी सोच रहे थे कि वह तो हानि रहित गूंगी गाय हैं I”
भोली बूढ़ी महिला की ओर हिंसक रूप से मुड़ी, “हां,आंटी, आप ठीक कह रही हो I आप भी सोचते थे- मैं एक गूंगी गाय हूं I इसलिए आप मुझे इस हृदय विहीन प्राणी को सौंपना चाहते थे I लेकिन अब गूंगी गाय, हकलाकार बोलने वाली मूर्ख, बोल रही है I क्या आप कुछ और सुनना चाहते हो ?”

  विशंबर नाथ, पंसारी ने बारात के साथ वापस चलना शुरू कर दिया  I घबराए हुए बैंड वालों ने सोचा कि शादी की रस्म पूरी हो गई है और उन्होंने रस्म का अंतिम गीत बजाया I
                रामलाल जमीन में गड़ा हुआ-सा खड़ा था, उसका सिर दु:ख और लज्जा के बोझ से झुका हुआ था I
पवित्र अग्नि की लपटें धीरे-धीरे बुझ गई  I सभी जा चुके थे I रामलाल भोली की ओर मुड़ा और कहा, “लेकिन अब तेरा क्या होगा, अब कोई भी तुमसे शादी नहीं करेगा I  हम तेरा क्या करेंगे ?”
                और सुलेखा ने शांत और स्थिर आवाज में कहा, “आप चिंता मत कीजिए, पिताजी ! बुढ़ापे में मैं आपकी और माता जी की सेवा करूंगी I
                और मैं उसी स्कूल पढ़ाया करूंगी जहां पर मैंने इतना सीखा है I क्या यह ठीक नहीं है, मैडम ?”
इस समूचे समय अध्यापिका एक कोने में खड़ी हुई थी, इस नाटक को देख रही थी I “हां, भोली, नि:संदेह,” उसने उत्तर दिया और उसकी मुस्कुराती हुई आंखों में गहरी संतुष्टि की चमक थी जो कि एक कलाकार उस समय महसूस करता है जब वह अपनी सर्वोत्तम कलाकृति को पूर्ण करने का विचार करता है I

Read and Find out (Page 54)

Q1. Why is Bholi’s father worried about her?

Ans. Bholi’s father was really worried about Bholi. All her children except Bholi were healthy and strong. All his daughters, except Bholi, were good-looking. It was not difficult to find bridegrooms for them. Bholi was really a pathetic case.

She had black pock-marks all over her body. She had neither good looks nor intelligence. No one would ever many such a girl.

Ans. Bholi’s father was the least worried about her education. His wife thought: “If girls go to school, who will marry them?” However, Bholi was sent to a school for an unusual reason. A primary school for girls was opened in the village.

The Tehsildar came to inaugurate it. He asked Ramlal that being a `number’ he should set an example before the villagers. He must send his daughters to school. Ramlal didn’t have the courage to disobey the Tehsildar and he had to decide to send Bholi to school.

Read and Find Out (Page 55)

Read And Find Out (Page 58)

Think About It (Page 62)

Talk About It (Page 62)

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