हरि सिंह पंद्रह साल का एक नौजवान लड़का था मगर बह चोर और धोखेवाज था एक कुश्ती के मैच में उसकी मुलाकात अनिल से हुई उसने अनिल का विश्यास जीत लिया और उसके घर में नौकर के तौर पर आ गया
अनिल एक लेखक था और अधिक पैसा नहीं कमाता था इसलिए हरि सिंह ने केवल भोजन के बदले में बहां काम करना स्यीकार कर लिया हरि सिंह को भोजन बनाना आता था अनिल के लिए जो पहला भोजन उसने बनाया बह इतना बुरा था कि अनिल ने उसे कुत्तो के सामने डाल दिया मगर हरि सिंह की आग्रह भरी मुस्कराहटों ने अनिल को मजबूर कर दिया कि बह हरि को निकालने का निर्हररए त्याग दे
हरि सिंह अनिल के छोटे – मोटे काम करने लगा सुबह बह चाय बनाता था और तब बाजार से दिनभर के लिए सामान लाता था कई बार इन सामान की खरीददारी में से बह एक रूपया रोज कमा लेता था

अनिल की कोई नियमित आय नहीं थी यह पत्रिकाओं के लिए लेख और कहानियाँ लिखकर कुछ कमा लेता था मगर एक दिन अनिल नोटों का बंडल लेकर घर आया उसने हरि सिंह को बताया कि उसने अपनी एक पुस्तक बेचकर ६०० रुपए कमाए है पैसा देखकर हरि सिंह के मुहं में पानी आ गया उसने बह पैसा चुराने का फैसला किया अनिल ने पैसे गद्दे के नीचे रखे और सो गया
अब हरि सिंह कमरे में गया और चुपके से गद्दे के नीचे से पैसे निकाल लिए बह लखनऊ की  गाढ़ी पकढ़ने के लिए स्टेशन पर गया मगर उसकी गाढ़ी छूट गयी और बह बाजारों में घूमता रहा शीघ्र ही बरसात आरम्भ हो गयी और हरि सिंह पूरी तरह भीग गया
तब हरि सिंह को अनिल की याद आयी उसने कल्पना की कि पैसे को चोरी हुआ पाकर अनिल कितना उदास होगा हरि सिंह को याद आया कि अनिल उसे पढ़ाया करता था उसने सोचा कि बिना शिछा के बह केवल चोर रहेगा मगर शिछा उसे इंसान बना सकती है इसलिए उसने बापस लौटने तथा पैसा बापस रखने का फैसला किया बह घर पंहुचा और उसने चुपके से पैसे गद्दे के नीचे रख दिए


अगली सुबह अनिल ने हरि सिंह को ५० रूपए का नोट दिया नोट अभी भी गीला था हरि सिंह ने सोचा कि उसका अपराध हो गया मगर अनिल ने उससे कहा कि उसने कुछ पैसा कमाया है अब बह उसे नियमित रूप से वेतन दिया करेगा