We are providing a detailed explanation of “From the Diary of Anne Frank” in Hindi, for Class 10 students following the syllabus of the First Flight Book. Word-to-word Hindi explanation is given to ensure that you understand it in Hindi also.
प्रस्तुत है “From the Diary of Anne Frank” का हिंदी अनुवाद । यह पाठ कक्षा 10 की ”First Flight ‘ किताब से लिया गया है। हमने इसे कक्षा 10 के छात्रों के लिए विशेष रूप से तैयार किया है। यदि आप को हिंदी में अधिक समझ आता है तो यह आप के लिए यह From the Diary of Anne Frank Hindi Explanation बहुत अच्छा रिसोर्स है। आइये पेज वाइज शुरू करते हैं-
From the Diary of Anne Frank Hindi Explanation
ऐनिलिज मेरी ‘ऐनी फ्रेंक ‘(1, जून 1929-फरवरी/मार्च 1945) जर्मनी में पैदा हुई एक यहूदी लड़की जिसने, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब जर्मनी नीदरलैंड पर कब्ज़ा कर रहा था, अपने परिवार तया चार अन्य मित्रों के साथ एम्सटर्डम में अपने लेख लिखे ।
जब नाजियों ने जर्मनी में सत्ता हासिल की तो उसका परिवार एम्सटर्डम चला गया, परंतु जब नाजियों का अधिकार नीदरलैंड तक बढ़ गया तो वे सभी उसके जाल में फंस गए । जब यहूदी जनसंख्या के विरुद्ध अकुंश बढ़ गए तो परिवार जुलाई, 1942 में अज्ञात स्थान पर चला गया और ऐनी के पिता के ओटो फ्रेंक के कार्यालय के कमरों में शरण ली ।
दो वर्ष के अज्ञातवास के बाद इस समूह को धोखा दे दिया गया और उसे यातना शिविर में ले जाया गया जहाँ पर बर्गन -बेल्सन में टाइपस रोग के कारण ऐनी की मृत्यु हो गई, उसकी बहन मार्गट फ्रैंक के आगमन के कुछ ही दिनों के भीतर । उसके पिता ओटो हो समूह से अकेले जीवित बचे और वे युद्ध की समाप्ति के बाद एम्सटर्डम वापिस लौट आए यह देखने के लिए कि ऐनी की डायरी सुरक्षित भी है या नहीं । इस बात से विश्वश्त होकर कि वह एक विशिष्ट रिकॉर्ड है, उसने इसे अग्रेजी भाषा में ‘The Dairy of a Young Girl ’शीर्षक के तहत छपवाने के लिए कदम उठाए ।
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ऐनी फ्रैंक को डायरी उसके तेरहवें जन्मदिन पर दी गई थी । इसमें 12 जून, 1912 से लेकर 1 अगस्त 1944 तक की प्रमुख घटनाओं का विवरण है । इसे स्पष्ट रूप से वास्तविक डच भाषा से अनेक भाषाओं में अनुवादित किया गया और यह दुनिया की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली किताब बन गई और इस डायरी पर आधारित अनेक फिल्मों , टेलीविजन और सिनेमा के लिए अनेक कार्यक्रम और यहाँ तक कि एक संगीत कार्यक्रम का भी निर्माण किया गया ।
इसे एक परिपक्व और अन्तर्दूष्टि दिमाग का कार्य बताते हुए यह डायरी नाजियों के अधिकार के जीवन में सबसे निकट परीक्षण का वर्णन है । ऐनी फ्रैंक एक प्रसिद्ध लेखिका है और उसने नाज़ी अत्याचार से पीड़ित लोगों का वर्णन किया है ।
[PAGE 50]: डायरी में लिखना मेरे जैसे व्यक्ति के लिए सचमुच एक अजीब अनुभव है । केवल इसलिए नहीं कि मैंने पहले कभी क्यों कुछ नहीं लिखा है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि मुझें लगता है कि बाद में न मैं न ही अन्य कोई तेरह साल की स्कूली छात्रा के विचारों में कोई रूचि लेगा । खैर, इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता । मुझे लिखने का शौक है और इससे बढ़कर मुझे अपने दिल से बहुत-सी चीजों के बोझ को हटाने की आवश्यकता है ।
“कागज़ में अंगों से अधिक धैर्य होता है ।” मैंने इस कहावत के बारे में उन दिनों में से एक दिन सोचा जब मैं कुछ उदास थी और मैं घर पर अपनी ठुड्डी को अपने हाथ पर रखकर बैठी थी , मैं उकताई हुई एवं लापरवाह थी और हैरान हो रही थी कि घर पर रुकूँ या बाहर चली जाऊँ । अंत में, मैं वहीं रही जहाँ थी, और सोचती रहीं ।
हाँ , कागज में अधिक धैर्य होता है, और क्योंकि मैं इस सख्त जिल्द वाली कॉपी जिसे चाव से ‘डायरी’ कहा जाता है, उसे किसी को नहीं पढने दूँगी , हाँ, अगर मुझे कोई सच्चा मित्र मिल गया तो और बात है, इससे शायद जरा भी फर्क नहीं पड़ता ।
अब मैं उस बात पर लौटकर आती हूँ जिसने पहले ता मुझे डायरी रखने के लिए प्रेरित किया, मेरा कोई मित्र नहीं है ।
लाओ, मैं इस बात को अधिक स्पष्ट रूप से कहूँ क्योंकि कोई भी व्यक्ति इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि एक तेरह साल की लड़की इस संसार में पूरी तरह अकेली हो सकती है । और मैं नहीं हूँ। मेरै माता-पिता बहुत स्नेही हैं और लगभग एक 16 वर्षीय बहन और तीस लोग ऐसे हैं जिन्हें मैं अपना मित्र कह सकती हूं। मेरा एक परिवार है, प्रिय चाचियाँ हैं और एक अच्छा
घर है । नहीं, शहरी तीर पर तो ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे पास सब कुछ है, सिवाय एक सच्चे मित्र के । मैं जब अपने मित्रों के साथ होती हूँ ओंर वे आनंद उठा रहे होते हैं तो बहुत कुछ सोचती हूँ । मैं रोज के जीवन की साधारण वस्तुओं के अतिरिक्त किसी अन्य के बिषय के बारे में बात नहीं का पाती । ऐसा नहीं लगता कि हम एक-दूसरे के निकट आ रहे हैं और यही मेरी समस्या है ।
शायद यह मेरा कसूर है कि हम एकदूसरे को दिल की बात नहीं बता पाते । जो भी है, मामला ऐसा ही है और दुर्भाग्य से इसके बदलने के आसार भी नहीं हैं । इसलिए मैंने डायरी लिखना आरंभ किया है । इस चिर –प्रतीक्षित मित्र की छवि को अपनी कल्पना में सुधारने के लिए, मैं अपनी डायरी में तथ्यों को इस प्रकार नहीं लिखना चाहती जैसे अधिकतर लोग करते हैं, मगर मैं चाहती हूँ कि डायरी मेरी मित्र बन जाए और मैं इस मित्र को ‘किट्टी’ ,कहूँगी ।
[PAGE 51] : क्योंकि अगर मैंने एकदम लिखना आरंभ कर दिया तो कोई भी व्यक्ति मेरे द्वारा किट्टीको कहा गया कोई भी शब्द नहीं पाएगा,अच्चा होगा में अगर अपने जीवन का संक्षिप्त वृतांत दूँ, यधपि मुझे ऐसा करना अच्छा नहीं लगता ।
मेरे पिता जी जो मेरे देखे गए पिताओं सबसे प्रिय थे, उन्होंने तब तक शादी नहीं की जब तक वे छत्तीस साल के नहीं हुए और मेरी माता जी पच्चीस साल की नहीं हुई । मेरी बहन मार्गट का जन्म 1926 में जर्मनी में फ्रैंकफर्ट में हुआ । मेरा जन्म 12 जून, 1929 को हुआ ।
मैं तब तक फ्रैंकफर्ड में रही जब तक मैं चार वर्ष की नहीं हो गई । मेरे पिता जी 1933 को हॉलैंड चले गए । मेरी माता, एडिथ हॉलैंडर फ्रैंक, उनके साथ हाँलैंड सितम्बर में गई और मुझे एवं मार्गट को हमारी दादी के साथ रहने के आवेदन पत्र भेज दिया । मार्गट हॉलैंड दिसंबर में गई और मैं फरवरी में, जब मुझे जल्दी से पेज पर मार्गट के जन्मदिन के उपहार में रखा गया ।
मैंने फौरन माँन्टेसरी नर्सरी स्कूल में पढाई आरंभ की । मैं छह साल का होने तक वहाँ रही जब मैंने पहली कक्षा में प्रवेश लिया । छठी कक्षा में मेरी आध्यापिका थी मिसेज क्यूपरस,जो मुख्याध्यापिका थी । साल समाप्त होने पर हम दोनों आसुओं से भरी थी जबकि हमने एक –दूसरे से ह्रदय विदारक विदाई ली ।
1941 की गर्मियों में दादी बीमार पड़ गई और उसका ऑप्रेशन करना पड़ा , इसलिए मेरा जन्मदिन बिना मनाए बीत गया ।
दादी की मृत्यु 1942 में हो गई । कोई नहीं जानता कि मैं उनके बारे में कितना अधिक सोचती हूँ और अभी भी उनसे प्यार करती हूँ । 1942 का यह जन्मदिन उस अन्य व्यक्ति की कमी को पूरा करने के लिए मनाया गया था और अन्य मोमबत्तियों के साथ दादी की मोमबत्ती भी जलाई गई ।
हम चारों अभी भी ठीकठाक है और यह बात मुझे 20 जून, 1942 की वर्तमान तारीख तक और मेरी डायरी के गंभीर समर्पण की ओर ले जाती है ।
[PAGE 52]:
शानिवार 20 जून, 1942
प्रियतम किट्टी
हमारी सारी कक्षा बुरी तरह काँप रही है । निसन्देह कारण है हमारी आने वाली मीटिंग जिसमें अध्यापक यह फैसला करेंगे कि किसको अगली कक्षा में भेजा जाएगा और किसको इसी कक्षा में रखा जाएगा । आधी कक्षा शर्त लगा रहीँ है । G.N. और मैं हमारे पीछे दो लड़के C.N. और
जैक्स पर हँस-हँसकर पागल हुई जा रही हैं जिन्होंने इस शर्त पर अपनी छुट्टियों की पूरी बचत दाँव पर लगा दी सुबह से रात तक यही होता रहता है, “तुम पास हो जाओगे”, “नहीं ,मैं नहीं होऊँगा ,” “हाँ ,तुम हो जाओगे””नहीं ,मैं नहीं होऊँगा ,” यहाँ तक कि ‘G’ की प्रार्थना करती हुई नज़रें एवं मेरा गुस्से से फूट पड़ना भी उन्हें शांत नहीं कर सकते ।
अगर तुम मुझसे पूछो तो इतने बुद्धू छात्र हैं कि लगभग एक-चौथाई कक्षा को इस श्रेणी में रखा जाना चाहिए, मगर अध्यापक इस दुनिया में सबसे अधिक ऐसे प्राणी हैं जिनके बारे में अनुमान नहीं लगाया जा सकता ।
मुझे अपनी एवं अपनी सहेलियों की अधिक चिंता नहीं है । हम पास हो जाएँगी । एकमात्र विषय जिसके बारे में मैं निश्चित नहीं हूँ वह गणित है । खैर, हम जो कुछ कर सकते हैं, वह है इंतजार करना । तब तक, हम एक-दूसरे से कहते रहते हैं कि हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए ।
मेरी मेरे शिक्षकों के साथ काफी अच्छी बनती है । हमारे यहाँ नौ अध्यापक हैं, सात पुरुष एवं दो महिलाएँ । श्री कीलिंग बूढ़े व्यक्ति जो हमें गणित पढ़ाते है, मेरे साथ काफी लंबे समय तक नाराज रहे क्योकिं मैं बहुत बोलती थी । काफी चेतावनियों के बाद उन्होंने मुझे अतिरिक्त गृहकार्य दे दिया । ‘बातूनी’ विषय पर एक निबध । बातूनी-आप इसके बारे से क्या लिख सकते हैं । मैंने फैसला किया कि इस बात की चिंता मैं बाद में करुँगी । मैंने अपनी काँपी से शीर्षक नोट किया, उसे अपने बैग में डाला और शांत रहने का प्रयत्न किया।
उस शाम, जब मैं बाकी का गृह-कार्य समाप्त कर चुकी तो निबंघ के बारे में नोट मेरी नजरों में आया । पेन के कोने को बचाते हुए मैंने इस विषय के बारे में सोचना आरंभ कर दिया । हर व्यक्ति इधर-उधर की बातें बोल सकता है और शब्दों के बीच में बड़े-बड़े खाली स्थान छोड़ सकता है । मगर असली बात थी कि बात कऱने की आवश्यकता को सिद्ध करने के लिए विश्वास पूर्ण तर्क दिए जाएँ । मैं सोचती रही और अचानक मुझे एक विचार आया । मैंने वे तीन प्रष्ठ लिखे जो श्री किसिंग ने मुझे कहा था और संतुष्ट हो गई । मैंने तर्क दिया बातें करना एक छात्र का गुण हैं और मैं इसे नियंत्रण में रखने का पूरा प्रयत्न करुँगी ।
[PAGE 53-54]: लेकिन मैं अपनी इस आदत को पूरी तरह दूर कभी नहीं कर पाऊँगी ,क्योंकि मेरी माता जी अगर अधिक नहीं तो कम-से-कम इतना जरूर बोलती थीं जितना मैं बोलती हूँ आप विरासत में मिले गुणों के बारे में अधिक कुछ नहीं कर सकते ।
श्री किसिंग मेरे तर्कों को पड़कर हँसे , लेकिन जब मैं अपने अगले पाठ के बीच बोलने लगी तो उन्होंने मुझे दूसरा निबंध दे दिया। इस बार यह था, ” एक ठीक न हो सकने वाली बातूनी लड़की ।”मैंने यह भी लिखकर दे दिया और श्री किसिंग के पास अगले दो पाठों तक मुझे शिकायत करने के लिए कुछ नहीं था । लेकिन तीसरे पाठ के दौरान उसका धैर्य जवाब दे गया । “ऐनी फ्रैंक,मेरी कक्षा में बातें करने की सज़ा के रूप में निबंध लिखों”, “क्वैक, क्वैक, क्वैक मिस बातूनी ने कहा ।”
कक्षा जोर से हँसी । मुझे भी हँसना पढ़ा , यद्यपि बातूनी लोगों के विषय पर मेरा ज्ञान समाप्त हो गया था। अब समय था कि मैं कुछ और लिखूँ कुछ मौलिक । मेरी सहेली सेन , जिसकी कविता अच्छी थी , उसने पेशकश की कि वह सारे निबंध को शुरू से लेकर अंत तक कविता में लिखने में मेरी सहायता करेगी । मैं खुशी से कूदने लगी । इस हास्यास्पद विषय के द्वारा श्री कीसिंग मुज पर मज़ाक करने का प्रयत्न कर रहे थे, मगर मैं निश्चित रुप से उन पर मजाक करुँगी ।
मैंने अपनी कविता पूरी की और यह शानदार थी । यह एक बत्तख माता और हंस पिता के बारे में थी जिनके तीन बच्चे थे जिन्हें पिता ने मार डाला क्योंकि वे बहुत अधिक बोलती थीं । सौभाग्यवश श्री कीसिंग ने मजाक को सही रूप में लिया । उसने कविता को कक्षा में पढा, उस पर अपनी टिप्पणियाँ जोड़ी और कई अन्य कक्षाओं में उसे पढ़ा । उसके बाद से मुझे बात करने की इजाजत है और कभी अतिरिक्त गृहकार्य भी नहीं मिला । इसके विपरीत आजकल श्री कीसिंग आजकल सदा मजाक करते रहते हैं ।
तुम्हारी, ऐनी ।