The Ailing Planet: the Green Movement’s Role- Summary in Hindi – Full Text

By | July 15, 2023
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           The Ailing Planet: the Green Movement’s Role

                                                  By- Nanipalkhivala

Summary in Hindi

हमारी पृथ्वी की दशा ठीक नहीं हैI यह अस्वस्थ हो रही है , और इसका कारण है हमारी अपनी त्रुटियाँ , अवगुण तथा कुकर्म Iपृथ्वी अनेक बड़ी-बड़ी समस्याओं से जूझ रही हैI मनुष्य ने प्रकृति के सभी संसाधनों को अपनी धरोहर समझ रखा हैI वह प्राकृतिक संसाधनों का दोहन पागलों की भाँति तथा सीमातीत तरीके से कर रहा है Iवह यह सब विकास के नाम पर कर रहा हैI पर असली समस्या है मनुष्य का स्वार्थीपनI वह सोचता है कि पृथ्वी, समुद्र तथा इसके नीचे जो कुछ दबा पड़ा है उस सब पर उसका निरंकुश अधिकार हैI सीमित संसाधनों का अधिक उपयोग तथा उससे पैदा होने वाले दुष्परिणामों ने पृथ्वी को रहने योग्य नहीं छोड़ा हैI यह समस्या वर्तमान पीढ़ी की नहीं है वरन् आने वाली पीढ़ियां को भी झेलनी पड़ेगीI

पिछले 100 वर्षों में हमने पृथ्वी को सर्वाधिक क्षति पहुँचाई है Iहमने वायु तथा जल को प्रदूषित कर दिया है Iहमने अपनी मूलभूत जरूरतों की सभी वस्तुओं का अभाव पैदा कर दिया हैI1972 में पहली बार लोगों ने मानव जाति के अस्तित्व के खतरे को पहचाना Iन्यूजीलैंड में हरित क्रांति का प्रारम्भ हुआ Iभय ने सम्पूर्ण मानव जाति के मन को उद्धेगित कर दिया Iहमारे दृष्टिकोण में परिवर्तन आ गयाI हमने संसार को इकाई मानकर सोचना शुरू किया Iविभिन्न राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से नहींI यह परिवर्तन क्रांतिकारी थाI मानव इतिहास में पहली बार लोगों ने विश्व को एक जैव हो या जीवंत रूप में समझा Iएक शरीर के रूप में उसकी हर जरूरत तथा अवयवों का आदर करना होगाI उनको संरक्षित करके समझदारी से इस्तेमाल करना होगाI आखिरकार हमारी पीढ़ी ही तो इस पृथ्वी की निरंकुश स्वामी नहीं हैI हमारा नैतिक दायित्व है हम इस पृथ्वी को बीमार तथा सभी संसाधनों से रहित न छोड़ जाएँ I

लुसाका, जांबिया,के एक चिड़ियाघर में एक नोटिस सभी आगन्तुकों का ध्यान आकर्षित करता है:‘संसार का सर्वाधिक खतरनाक जीव’Iपिंजरे के अंदर कोई पशु नहीं है; केवल एक दर्पण लटका है जिसमें आपको अपना ही प्रतिबिंब नजर आएगा Iसाफ शब्दों में, मनुष्य ही इस ग्रह अथवा धरती का सबसे बड़ा शत्रु है; वही अपने इस घर को क्षति पहुँचाएगा Iसच्चाई तो यह है कि हम इस पृथ्वी पर लाखों अन्य जीवों के साथ सहभागितापूर्वक रह रहे हैं Iयह जीव छोटे तथा विशालकाय दोनों प्रकार की हैं Iइनमें से अधिकांश तो अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं क्योंकि हम मनुष्यों की संख्या बहुत बढ़ गई हैI




हमारे सामने सबसे महत्वपूर्ण समस्या यह है कि क्या हम इस धरती को अपने वंशजों के लिए ऐसी स्थिति में छोड़ जाएँगे जिसमें मरुस्थल बढ़ता जाएगा, तथा पर्यावरण प्रदूषित होता जाएगा, हमारी सारी आर्थिक व्यवस्था के चार स्तम्भ या स्रोत हैं–मछली वन, घास के मैदान तथा कृषि योग्य भूमि Iयह हमें भोजन सुलभ कराते हैं तथा हमारे उधोगों के लिए कच्चा माल भी देते हैं I इसके अलावा धरती के नीचे खनिज तथा कच्चा तेल भी दबा है Iविश्व के अधिकांश भागों में इन स्रोतों का दोहन इस स्तर तक हो गया है कि वे अब समाप्त होने की कगार पर पहुँच गए हैंI मछलियाँ हमारी नदियों और समुद्र से कम होती जा रही हैIवनकट-कटकर गायब हो रहे हैंIचरागाह बंजर भूमि में बदलते जा रहे हैं, तथा कृषि मरणासन्न हो रही है I अनेक प्रकार की प्रजातियाँ तेज गति से वनों के कटाव के कारण विलुप्त होती जा रही हैं ;वन काटे जाने का कारण है अधिक खुली जगह की जरूरत तथा ईंधन की लकड़ी की माँगIज्यों –ज्यों वन छोटे होते जा रहे हैं, रेगिस्तान बढ़ता जा रहा है लोग गोबर के उपले बनाकर उसे जलावन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं जिसके कारण खेतों को प्राकृतिक खाद नहीं मिल पा रही हैI




आज के समय हम हर सेकण्ड में लगभग डेढ़ एकड़ बन की कटाई करते जा रहे हैंI हमारा संविधान कहता है कि राज्य पर्यावरण, वनों तथा वन्य जीवो की रक्षा करेगा Iपर कानूनों का भारत में न कभी आदर किया जाता है न ही उन्हें लागू किया जाता है इनकी दशा वैसे ही है जैसे छुआछूत निवारण,बँधुआ मजदूर तथा जातिवाद को रोकने वाले कानूनों की है I

संयुक्त राष्ट्र संघ के एक सर्वेक्षण में हमें चेतावनी दी है कि 88 देशों में जहाँजाँच-पड़ताल की गई, वहाँ  पर्यावरण की दशा सोचनीय है Iमानव समाज के भविष्य को खतरे में डालने वाले कौन कौन से कारण हैं ? सबसे ऊपर है जनसंख्या वृद्धि Iहर चारदिन में विश्व की जनसंख्या में 10 लाख लोग जुड़ जाते हैं I1800में कुल जनसंख्या की 100 करोड़I100 वर्ष पश्चात 1900 में यह दोगुनी होकर 200 करोड़ हो गईI पर 2000 के अंत तक यह बढ़कर लगभग 600 करोड़ हो गईI इस वृद्धि को रोकने का एकमात्र उपाय है सर्वागीण विकास- शिक्षा प्रसार तथा बेहतर आय Iपर सारा विकास तो जनसंख्या वृद्धि की चूस लेती हैI धनी तो अधिक धनवान हो रहे हैं ; गरीब लोग अधिक बच्चे पैदा करके दरिद्रता में डूबते जा रहे हैं Iतो क्या पुरुषों की जबरन नसबन्दी कर दी जाए ? बेहतर तरीका है स्वेच्छा से अपनाया गया परिवार नियोजनIजनसंख्या में ठहराव हमारे अस्तित्व की रक्षा के लिए अत्यावश्यक हैI

हमें अपने पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने की जरूरत है Iयह हमारे भविष्य का एकमात्र पासपोर्ट हैIउधोग भी हमारी वायु तथा जल एवं जमीन को साफ रखने में मदद कर सकते हैंI किसी भी पीढ़ी के नाम धरती का स्थायी पट्टा नहीं लिख दिया गया है Iहमें तो अपने जीवन काल की किरायेदारी मिली हैI हमने पृथ्वी को अपने पूर्वजों से विरासत में नहीं पाया हैI हमेंतो यह अपने बच्चों से उधार में मिली हैI




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