NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 सपनों के से दिन गुरदयाल सिंह

By | June 4, 2022
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 सपनों के से दिन गुरदयाल सिंह

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 सपनों के से दिन गुरदयाल सिंह यहाँ सरल शब्दों में दिया जा रहा है.  Sapno Ke Se Din Gurudayal Question Answer को आसानी से समझ में आने के लिए हमने प्रश्नों के उत्तरों को इस प्रकार लिखा है की कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक बात कही जा सके.

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 सपनों के से दिन गुरदयाल सिंह

प्रश्नअभ्यास

प्रश्न 1.कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनतीपाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?

उत्तर पाठ के लेखक श्री गुरदयाल सिंह जी बताते हैं कि बचपन में उनके आधे से अधिक साथी हरियाणा या राजस्थान से व्यापार के लिए आए परिवारों से संबंधित थे। उनके कुछ शब्द सुनकर लेखक व उसके अन्य साथियों को हँसी आ जाती थी। बहुत से शब्द समझ में नहीं आते थे। किंतु जब वे सब मिलकर खेलते थे तब सभी को एक-दूसरे की बातें खूब अच्छी तरह समझ में आ जाती थीं। पाठ के इसी अंश से यह बात सिद्ध होता है कि कोई भी भाषा आपसीव्यवहार में बाधक नहीं होती है |

प्रश्न 2.पीटी साहब की ‘शाबाश’ फ़ौज के तमगोंसी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर पीटी साहब प्रीतमचंद बहुत कड़क इनसान थे। उन्हें किसी ने न हँसते देखा न किसी की प्रशंसा करते। सभी छात्र उनसे भयभीत रहते थे। वे मार-मारकर बच्चों की चमड़ी तक उधेड़ देते थे। छोटे-छोटे बच्चे यदि थोड़ा-सा भी अनुशासन भंग करते तो वे उन्हें कठोर सजा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पीटी साहब बच्चों के द्वारा गलती न करने पर अपनी चमकीली आँखें हल्के से झपकाते हुए उन्हें शाबाश कहते थे। उनकी यह शाबाश बच्चों को फौज़ के सारे तमगों को जीतने के समान लगती थी।

प्रश्न 3.नई श्रेणी में जाने और नई कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक को बालमन क्यों उदास हो उठता था?

उत्तरअक्सर होशियार बच्चों को नयी श्रेणी में मिलने वाली कापियों व किताबों की गंध उत्साहित करती है। लेकिन नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन उदास हो उठता था। इसके निम्नलिखित कारण थे-नई श्रेणी की मुश्किल पढ़ाई का भय लेखक के बालमन को भयभीत करता था।नए मास्टरों की मारपीट का भय भी इस अरुचि का एक कारण था। नए अध्यापकों के साथ-साथ पुराने अध्यापकों की भी छात्रों से उपेक्षाएं बढ़ जाती थी और उनकी आशाओं पर खरा न उतरने पर वे चमड़ी उधेड़ने को तैयार रहते थे।

प्रश्न 4.स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्त्वपूर्ण ‘आदमी’ फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता था?

उत्तर बच्चों में फ़ौजी जवान के प्रति विशेष आकर्षण होता है। वे उसकी वर्दी, देशभक्ति और साहस के कारनामों और परेड से सदा प्रेरित होते हैं। लेखक ने अपने बालपन के जीवन को याद करते हुए बताया है कि वे स्काउट के साफ-सुथरे कपड़े, जुराबें, छोटे-छोटे बूट पहनकर ठक-ठक करते हुए अकड़कर चलते तो समझते कि वे भी फ़ौजी जवान है।

प्रश्न 5.हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया?

उत्तर- पीटी साहब चौथी कक्षा के लड़कों को फ़ारसी पढ़ाते थे। वे विद्यार्थियों को शब्द रूप पढ़ने पर बल दिया करते थे। एक दिन जब कक्षा के विद्यार्थी दिए गए शब्द रूप याद करके न आए तो पीटी साहब ने उन्हें क्रूरतापूर्ण ढंग से मुर्गा बनाकर पीठ ऊँची करने का आदेश दिया। सजा के कारण कई लड़के गिर गए तभी हेडमास्टर साहब वहाँ आ गए और उन्होंने यह सारा दृश्य अपनी आँखों से देख पीटी सर की बर्बरती पर उत्तेजित होकर उन्हें तत्काल मुअत्तल अर्थात् निलंबित कर दिया।

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प्रश्न 6.लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?

उत्तर: लेखक को उस समय के अध्यापकों की क्रूर ढंग से की जाने वाली पिटाई के कारण लगता था कि स्कूल खुशी-खुशी जाने की जगह नहीं लगती है फिर भी उसे स्कूल जाना उस समय अच्छा लगने लगता जब पीटी मास्टर उन्हें स्काउटिंग का अभ्यास करवाते। पीटी मास्टर के वन-टू-श्री कहने पर झंडियाँ ऊपर-नीचे दाएँ-बाएँ करना अच्छा लगता था। स्काउट की परेड के समय पूरी वरदी और गले में दो रंगा रूमाल लटकाए बिना गलती के परेड करने पर पीटी मास्टर द्वारा दी गई ‘शाबासी’ के कारण स्कूल उसे अच्छा लगने लगता था

प्रश्न 7.लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टयों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्याक्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना किया करता था?

उत्तर लेखक के छात्र जीवन में गरमी की छुट्टियाँ डेढ़ या दो महीने की होती थी। इसके आरंभ के दो-तीन हफ़्तों तक खूब खेलकूद और मस्ती करते हुए लेखक अपने साथियों संग समय बिताता फिर नानी के घर चला जाता। जब एक महीने की छुटियाँ बचती तो लेखक अध्यापक द्वारा दिए गए दो सौ सवालों के बारे में गणना करता और सोचता कि एक दिन में । दस सवाल हल करने पर बीस दिन में पूरे हो जाएँगे। एक-एक दिन गिनते खेलकूद में दस दिन और बीत जाते तब पिटाई का डर बढ़ने लगता। तब वह डर भगाने के लिए सोचता कि एक दिन पंद्रह सवाल भी हल किए जा सकते हैं पर सवाल न होते और छुट्टियाँ समाप्त होने को आ जाती, तब वह मास्टरों की पिटाई को सस्ता सौदा समझकर बहादुरी से पिटना स्वीकार कर लेता। इस तरह वह बहादुर बनने की कल्पना किया करता।

प्रश्न 8.पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : पाठ के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि पीटी सर प्रीतमचंद बहुत सरल अध्यापक थे। उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ इस प्रकार हैं

1.बाह्य व्यक्तित्व पीटी सर अर्थात् प्रीतमचंद ठिगने कद के थे, उनका शरीर दुबला-पतला पर गठीला था। उनका चेहरा चेचक के दागों से भरा था। उनकी आँखें बाज की तरह तेज़ थीं। वे खाकी वर्दी, चमड़े के पंजों वाले बूट पहनते थे। उनके बूटों की ऊँची एड़ियों के नीचे खुरियाँ लगी रहती थीं। बूटों के अगले हिस्से में पंजों के नीचे मोटी सिरों वाले कील ठुके रहते थे।

2. आंतरिक व्यक्तित्व

1.कुशल अध्यापक- प्रीतमचंद एक कुशल अध्यापक थे। वे चौथी श्रेणी के बच्चों को फ़ारसी पढ़ाया करते थे। वे मौखिक अभिव्यक्ति एवं याद करने पर बल दिया करते थे। वे छात्रों को दिन-रात एक करके पढ़ाई करने की शिक्षा दिया करते थे।

2.कुशल प्रशिक्षक- वे कुशल प्रशिक्षक थे। वे छात्रों को स्काउट और गाइड की ट्रेनिंग दिया करते थे वे छात्रों से विभिन्न रंग की झंडियाँ पकड़ाकर हाथ ऊपर-नीचे करके अच्छी ट्रेनिंग दिया करते थे। उनके इस प्रशिक्षण कार्य से छात्र सदा प्रसन्न रहा करते थे। वे उस पर छात्रों द्वारा सही काम करने पर शाबाशी भी देते थे।

3.कठोर अनुशासन प्रिय- प्रीतमचंद अनुशासन प्रिय होने के कारण कठोर अनुशासन बनाए रखते थे। वे छात्रों को भयभीत रखते थे। यदि कोई लड़का अपना सिर इधर-उधर हिला लेता था तो वे उस पर बाघ की तरह झपट पड़ते थे। प्रार्थना करते समय भी वह अनुशासनहीन छात्रों को दंडित करते थे।

4.कोमल हृदयी- प्रीतम चंद बाहर से कठोर किंतु अंदर से कोमल थे। उन्होंने अपने घर में तोते पाल रखे थे, वे उससे बात करते थे और उसे भीगे हुए बादाम भी खिलाया करते थे। इसके अलावा वे छात्रों द्वारा सही काम किए जाने पर उन्हें शाबाशी भी देते थे।

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प्रश्न 9.विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर पाठ में अनुशासन रखने के लिए कठोर दंड, मार-पीठ जैसी युक्तियाँ अपनाई गई हैं परन्तु वर्तमान में यह निंदनीय माना गया है। आजकल अध्यापकों को प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे बच्चे की भावनाओं को समझें, उनके कामों के कारण को समझे, उन्हें उनकी गलती का एहसास कराए तथा उनके साथ मित्रता व ममता का व्यवहार रखें। इससे बच्चे स्कूल जाने से डरेंगे नहीं बल्कि खुशी खुशी आएँगे।

प्रश्न 10.बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली दिनों की। अपने अब तक के स्कूली जीवन की खट्टीमीठी यादों को लिखिए।

उत्तर बचपन की और विशेषकर स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादें मन को गुदगुदाती रहती हैं। ये यादें सभी की निजी होती हैं। मेरी भी कुछ ऐसी यादें मेरे साथ हैं। मैं जब नवीं कक्षा में पढ़ती थी मेरी माँ किसी कारणवश बाहर गई थीं। इसलिए मैं बिना गृहकार्य किए और बिना लंच लिए स्कूल पहुँची। पहले तो अध्यापिका से खूब डॉट पड़ी, फिर आधी छुट्टी में मुझे अध्यापिका ने खिड़की के पास खड़ा पाया तो डॉट लगा दी। अगले पीरियड में मुझे बहुत बेचैनी हुई कि अध्यापिका मेरे बारे में क्या सोच रही होंगी, मैं अध्यापिका कक्ष में उनसे मिलने गई। उन्हें देखते ही मेरा रोना छूट गया। उन्होंने रोने का कारण पूछा तो मैंने रोते-रोते उन्हें कारण बताया कि मेरी माता जी घर पर नहीं हैं। उन्होंने मुझे सांत्वना दी फिर मुझे अपने डिब्बे से खाना खिलाया। आज भी मैं इस घटना को याद करती हूँ तो अध्यापिका के प्रति भाव-विभोर हो उठती हूँ।

प्रश्न 11.प्रायः अभिभावक बच्चों को खेलकूद में ज्यादा रुचि लेने पर रोकते हैं और समय बरबाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए

1.खेल आपके लिए क्यों जरूरी हैं?

2. आप कौन से ऐसे नियमकायदों को अपनाएँगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो ?

उत्तर-1.खेल प्रत्येक उम्र के बच्चे के लिए जरूरी हैं। खेल की बच्चे के शारीरिक-मानसिक विकास में अहम भूमिका होती है। खेल बच्चे की सोच को विस्तृत तथा विकसित करते हैं। इनसे बच्चे में सामूहिक रूप से काम करने की भावना का संचार होता है। बच्चे में प्रतिस्पर्धा तथा प्रतियोगिता हेतु आगे बढ़ने की होड़ और दौड़ में भाग लेने की इच्छा पैदा होती है। खेलों में भाग लेने से बच्चे को अपना तथा अपने देश का नाम रोशन करने का सुअवसर प्राप्त होता है।

2. मैं अपने अभिभावकों के लिए वही नियम और कायदों को अपनाऊँगा, जिनसे उनकी भावनाओं को ठेस न पहुँचे इसलिए मैं समय पर खेलूंगा और समय पर खेलकर वापस आऊँगा। खेलने के साथ पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दूंगा। मैं खेलने में उतना ही समय खर्च करूँगा, जितना आवश्यक होगा। अर्थात् मैं केवल वही नियम और कायदे अपनाऊँगा, जिनसे मेरे अभिभावकों को सुख-शांति मिलेगी।