NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

By | June 3, 2022
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! यहाँ सरल शब्दों में दिया जा रहा है.  Class 10 Kritika Chapter 4 Question Answer को आसानी से समझ में आने के लिए हमने प्रश्नों के उत्तरों को इस प्रकार लिखा है की कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक बात कही जा सके.

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

प्रश्नअभ्यास

प्रश्न 1.हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?

उत्तर: इसमें कोई संदेह नहीं कि आजादी की लड़ाई में सभी वर्गों या तबकों का बराबर योगदान था | सभी अपनी-अपनी क्षमतानुसार स्वतंत्रता आंदोलन में ख़ुद को झोंका था | प्रस्तुत कहानी में लेखक ने टुन्नू और दुलारी जैसे किरदारों के माध्यम से उस वर्ग-विशेष को उभारने की कोशिश की है, जो समाज में हीन या उपेक्षित निगाह से देखे जाते हैं | दोनों किरदारों का कजली गायन में महारत हासिल है | टुन्नू ने आज़ादी के लिए निकाले गए जुलूसों में भाग लेकर और अपने प्राणों की आहूति देकर ये साबित कर दिया कि वह मात्र नाचने या गाने के लिए पैदा नहीं हुआ है | उसके मन में भी आज़ादी प्राप्त करने का जोश व जुनून है | इसी तरह दुलारी द्वारा रेशमी साड़ियों का त्याग करना भी एक बहुत बड़ा और सराहनीय कदम था | हर प्रकार की पीड़ा और गम सहकर दुलारी का जलसे में जाना व उसमें नाचना-गाना उसके महत्वपूर्ण योगदान की ओर इशारा करता है | लेखक ने इस प्रकार समाज के उपेक्षित वर्गों के योगदान को प्रस्तुत कहानी में उभारा है |

प्रश्न 2.कठोर हृदय समझी जाने वाली दलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?

उत्तर: दुलारी को कठोर-हृदय समझा जाता था। वैसे भी वह जिस पेशे में थी, हृदयहीन होना उसका एक गुण माना जाता है, कमजोरी नहीं। वही कठोर दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर विचलित हो उठती है क्योंकि उसके मन में टुन्नू का एक अलग ही स्थान था। उसने जान लिया था कि टुन्नू उसके शरीर का नहीं, बल्कि उसकी आत्मा अर्थात् उसकी गायन-कला का प्रेमी था। शरीर से हटकर उसकी आत्मा को प्रेम करने वाले टुन्नू की मृत्यु पर गौनहारिन दुलारी का विचलित हो उठना स्वाभाविक था।

प्रश्न 3.कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और परंपरागत लोकआयोजनों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: कजली लोकगायन की एक शैली है। इसे भादों की तीज पर गाया जाता है। कजली दंगल में दो कजली-गायकों के बीच प्रतियोगिता होती थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसके आयोजन के अवसर पर बड़ी भीड़ जुटा करती थी। इसके आयोजन का मुख्य उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना होता था। इसके माध्यम से जन-प्रचार भी किया जाता था। स्वतंत्रता-पूर्व इन अवसरों पर लोगों के बीच देश-भक्ति की भावना का प्रसार किया जाता रहा होगा। जिस प्रकार आज इस प्रकार के आयोजनों पर सामाजिक बुराइयों, जैसे-नशा, दहेज, भ्रूण-हत्या के विरुद्ध प्रचार किया जाता है। कजली दंगल जैसे कुछ परंपरागत लोक-आयोजन हैं-त्रिंजन (पंजाब), आल्हा-उत्सव (राजस्थान), रागनी-प्रतियोगिता (हरियाणा), फूल वालों की सैर (दिल्ली) आदि। इन सब आयोजनों में क्षेत्रीय लोक-गायकी का प्रदर्शन होता है। लोक-गायक इनमें बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।

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प्रश्न 4.दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिकसांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर: दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अपनी विशिष्टताओं जैसे-कजली गायन में निपुणता, देशभक्ति की भावना, विदेशी वस्त्रों का त्याग करने जैसे कार्यों से अति विशिष्ट बन जाती है। दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1- कजली गायन में निपुणता-दुलारी दुक्कड़ पर कजली गायन की जानी पहचानी गायिका है। वह गायन में इतनी कुशल है कि अन्य गायक उसका मुकाबला करने से डरते हैं। वह जिस पक्ष में गायन के लिए खड़ी होती है, वह पक्ष अपनी जीत सुनिश्चित मानता है।

2- स्वाभिमानी-दुलारी भले ही गौनहारिन परंपरा से संबंधित एवं उपेक्षित वर्ग की नारी है पर उसके मन में स्वाभिमान की उत्कट भावना है। फेंकू सरदार को झाड़ मारते हुए अपनी कोठरी से बाहर निकालना इसका प्रमाण है।

3- देशभक्ति तथा राष्ट्रीयता की भावना-दुलारी देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता की भावना के कारण विदेशी साड़ियों का बंडल होली जलाने वालों की ओर फेंक देती है।

4- कोमल हृदयी-दुलारी के मन में टुन्नू के लिए जगह बन जाती है। वह टुन्नू से प्रेम करने लगती है। टुन्नू के लिए उसके मन में कोमल भावनाएँ हैं।

इस तरह दुलारी का चरित्र देश-काल के अनुरूप आदर्श है।

प्रश्न 5.दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?

उत्तर: टुन्नू व दुलारी का परिचय भादों में तीज़ के अवसर पर खोजवाँ बाज़ार में हुआ था। जहाँ वह गाने के लिए बुलवाई गई थी। दुक्कड़ पर गानेवालियों में दुलारी का खासा नाम था। उससे पद्य में ही सवाल-जवाब करने की महारत हासिल थी। बड़े-बड़े गायक उसके आगे पानी भरते नज़र आते थे और यही कारण था कि कोई भी उसके सम्मुख नहीं आता था। उसी कजली दंगल में उसकी मुलाकात टुन्नू से हुई थी। उसने भी पद्यात्मक शैली में प्रश्न-उत्तर करने में कुशलता प्राप्त की थी। टुन्नू दुलारी की ओर हाथ उठकर चुनौती के रूप में ललकार उठा। दुलारी मुस्कुराती हुई मुग्ध होकर सुनती रही। टुन्नू ने दुलारी को भी अपने आगे नतमस्तक कर दिया था

प्रश्न 6.दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था– ”तें सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखले लोट? ::::दुलारी के इस आपेक्ष में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: दुलारी का टुन्नू को यह कहना उचित था – “तैं सरबउला बोल ज़िन्दगी में कब देखने लोट?…! ” क्योंकि टुन्नू अभी सोलह सत्रह वर्ष का है। उसके पिताजी गरीब पुरोहित थे जो बड़ी मुश्किल से गृहस्थी चला रहे थे। टुन्नू ने अब तक लोट (नोट) देखे नहीं। उसे पता नहीं कि कैसे कौड़ी-कौड़ी जोड़कर लोग गृहस्थी चलाते है। यहाँ दुलारी ने उन लोगों पर आक्षेप किया है जो असल ज़िन्दगी में कुछ करते नहीं मात्र दूसरों की नकल पर ही आश्रित होते हैं। उसके अनुसार इस ज़िन्दगी में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता। इस ज़िन्दगी में कब नोट या धन देखने को मिल जाए कोई कुछ नहीं जानता। इसलिए हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।

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प्रश्न 7.भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?

उत्तर: भारत के स्वाधीनता आंदोलन में टुन्नू और दुलारी ने अपने-अपने ढंग से अपना योगदान दिया। टुन्नू जो महँगे मलमल के कपड़े पहनता था, उसे छोड़कर खादी के कपड़े पहनने लगा। वह विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के लिए विदेशी कपड़े एकत्र करने वालों के जुलूस में शामिल होकर यह काम करता रहा और इसी कारण पुलिस जमादार की पिटाई का शिकार हुआ, जिससे उसकी जान चली गई। इस प्रकार देश की आजादी के लिए उसने अपना बलिदान दे दिया। टुन्नु की देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता से प्रभावित होकर दुलारी ने अपनी विदेशी साड़ियों का बंडल जलाने के लिए फेंक दिया तथा उसने सूती साड़ी पहनकर अपने ढंग से योगदान दिया।

प्रश्न 8.दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। यह प्रेम दुलारी को देशप्रेम तक कैसे पहुँचाता है?

उत्तर: दुलारी टुन्नू की काव्य प्रतिभा और मधुर स्वर पर मुग्ध थी। यौवन के अस्ताचल पर खड़ी दुलारी के हृदय में कहीं उसने अपना स्थान बना लिया था। टुन्नू भी उस पर आसक्त था परंतु उसके आसक्त होने का संबंध शारीरिक न होकर आत्मिक था। अतः दोनों के मध्य संबंध का कारण कला और कलाकार मन ही थे । दुलारी के मन में टुन्नू के प्रति करुणा थी। टुन्नू ने आबरवाँ की जगह खद्दर का कुरता, लखनवी दोपलिया की जगह गाँधी टोपी पहनना शुरू कर दिया। और दुलारी को गाँधी आश्रम की बनी धोती देता है। अंत में देश के दीवानों की टोली में सम्मिलित हो प्राण न्योछावर कर देता है। इन सबसे दुलारी भी प्रेरित हो उठती है। दुलारी का देश के दीवानों को विदेशी नए वस्त्र देना, टुन्नू की मृत्यु पर विचलित हो उसकी दी हुईखादी की धोती पहनकर उसके मरने के स्थान पर जाना और टाउन हॉल में उसकी श्रद्धांजलि में गाना-सभी देश-प्रेम की भावना को व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 9.जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फर्टपुराने थे परंतु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?

उत्तर: विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार के लिए वस्त्रों का संग्रह कर रहे देश के सेवकों की चादर पर वस्त्र-कमीज, धोतियाँ, कुर्ता, साडी आदि की जो वर्षा हो रही थी, उनमें अधिकांश फटे और पुराने थे परंतु दुलारी ने विदेशी मिलों में बनी कोरी साडियों का वह बंडल फेंका जो एकदम नया था और जिनकी साड़ियों की तह भी नहीं खुली थी। उसका ऐसा करना देशभक्ति की उत्कट भावना और सच्ची राष्ट्रीयता की अभिव्यक्ति करता है। इसके अलावा इससे टुन्नू के प्रति प्रेम की मानसिकता भी दिखाई देती है।

प्रश्न 10.“मन पर किसी का बस नहीं; वह रूप या उमरे का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?

उत्तर : बेशक, टुन्नू दुलारी से प्रेम करने लगा था | वह दुलारी से उम्र में बहुत छोटा था | दुलारी को उसका प्रेम उसकी उम्र की नादानी के अलावा कुछ नहीं लगता था | इसलिए वह उसके प्रेम को अनदेखा करते रहती थी | बाद में दुलारी को इस बात का यकीन हो गया था कि टुन्नू उसके शरीर का नहीं, बल्कि उसकी गायन-कला का प्रेमी था | वह दुलारी को सच्चे भाव और आत्मा से प्रेम करता था | टुन्नू के द्वारा दुलारी को कहा गया यह कथन कि “मन पर किसी का बस नहीं ; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता |” दुलारी के अंदर टुन्नू के प्रति श्रद्धा का स्थान दे दिया | अब उसका स्थान अन्य कोई व्यक्ति नहीं ले सकता था |

प्रश्न 11.‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए।

उत्तर‘एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’-लोकभाषा में रचित इस गीत के मुखड़े का शाब्दिक भाव है-इसी स्थान पर मेरी नाक की लोंग खो गई है। इसका प्रतीकार्थ बड़ा गहरा है। नाक में पहना जाने वाला लोंग सुहाग का प्रतीक है। दुलारी एक गौनहारिन है। वह किसके नाम का लोंग अपने नाक में पहने। लेकिन मन रूपी नाक में उसने टुन्नू के नाम का लोंग पहन लिया है और जहाँ वह गा रही है; वहीं टुन्नू की हत्या की गई है। अतः दुलारी के कहने का भाव है-यही वह स्थान है जहाँ मेरा सुहाग लुट गया है।